25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पढ़ने की जगह काम करते हैं बच्चे, सोने को बिस्तर भी नहीं

कल्याण विभाग. आवासीय स्कूलों में चला सहपाठी अभियान देश के विभिन्न भाग 36 विद्यार्थियों ने बच्चों के साथ गुजारे 38 दिन रांची : राज्य में कल्याण विभाग द्वारा चलाये जा रहे आवासीय विद्यालयों में 10 वर्ष पहले तय बजट के आधार पर खाना दिया जा रहा है. बच्चों को सोने के लिए सही बिस्तर नहीं, […]

कल्याण विभाग. आवासीय स्कूलों में चला सहपाठी अभियान
देश के विभिन्न भाग 36 विद्यार्थियों ने बच्चों के साथ गुजारे 38 दिन
रांची : राज्य में कल्याण विभाग द्वारा चलाये जा रहे आवासीय विद्यालयों में 10 वर्ष पहले तय बजट के आधार पर खाना दिया जा रहा है. बच्चों को सोने के लिए सही बिस्तर नहीं, खाने के मीनू में भी अंतर है. कर्मियों की कमी से बच्चे पढ़ने की जगह खाना बनाने, सफाई करने और शिक्षकों के निजी काम में व्यस्त रह जा रहे. शिक्षकों की संख्या भी कम है, साथ ही पढ़ाई का तरीका भी पारंपरिक है. इस कारण उनकी पढ़ाई उस स्तर पर नहीं हो पा रही जिस स्तर पर होनी चाहिए.
यह निष्कर्ष देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के 36 विद्यार्थियों ने निकाला है. सनद रहे कि प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज व रीतिका खेरा, आकाश रंजन तथा अपूर्वा बॉमेजाई के संयोजन में कल्याण विभाग के सहयोग से राज्य के गुमला, रांची, लातेहार, लोहरदगा और खूंटी जिले के आठ आवासीय विद्यालयों में वर्ष 2016 के जून-जुलाई महीने में सहपाठी 2016 नामक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में वाेलेंटियर के रूप में आये देश के कई ख्याति प्राप्त कॉलेजों के 37 छात्र-छात्राओं ने 18 जून से 16 जुलाई तक अपना समय दिया. यह कार्यक्रम आम लोगों से ली गयी दान राशि व कल्याण विभाग के सहयोग से चला.
स्कूल के बच्चों के लिए किताबें, खिलौने और खेल के अन्य सामान उपलब्ध कराने के लिए भी एक दान ड्राइव भी चलाया गया था. कल्याण विभाग के आदेश पर आवासीय विद्यालयों में ही उन विद्यार्थियों के लिए रहने और खान-पीने की व्यवस्था की गयी थी. इस अभियान के दौरान कई गंभीर खामियां सामने आयीं. स्कूल में रहने के अलावा बच्चों के साथ समय गुजार चुके वाेलेंटियरों ने खामियों को लेकर कई अहम सुझाव दिये हैं. उन लोगों ने न सिर्फ समस्याएं गिनायी, बल्कि समाधान भी सुझाया है. इसकी रिपोर्ट शिक्षा विभाग को सौंप दी गयी है.
जिन जिलों के स्कूलों में चला सहपाठी 2016 अभियान
इस अभियान में रांची और आसपास के जिलों के आठ विद्यालयों को लिया गया था. इनमें शामिल था गुमला जिले के चापाटोली, जोभीपाट और सखुआपानी स्थित आवासीय विद्यालय, रांची जिले के बारीडीह और तमाड़ प्रखंड, लातेहार जिले के नेतरहाट, लोहरदगा जिला मुख्यालय और खूंटी के कुंडी स्थित आवासीय विद्यालय में सहपाठी 2016 कार्यक्रम चलाया गया. प्रत्येक विद्यालय में तीन से चार वाेलेंटियर भेजे गये थे.
सहपाठी 2016 में जिन संस्थानों के छात्र शामिल थे
प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय (कोलकाता), लेडी इरविन कॉलेज (दिल्ली), कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय, जनजागरण शक्ति संगठन (बिहार), अदामास विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इसलामिया, आइआइटी (बीएचयू), मिरांडा हाउस (दिल्ली विश्वविद्यालय), आइजीआइडीआर (मुंबई), निर्मला कॉलेज (रांची), लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वीमेन (नयी दिल्ली), इग्नु, अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय, मुरलीधर गर्ल्स काॅलेज, संत जेवियर रांची, फर्गुसन काॅलेज (पुणे), टीआइएसएस (गुवाहाटी), ब्रह्मपुर विश्वविद्यालय, अोड़िशा, गवर्नमेंट लॉ काॅलेज (मुंबई), नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (जोधपुर).
कैसी समस्याएं, क्या सुझाया समाधान
समस्या : बिजली, पानी व चालू हालत वाले शौचालयों की कमी, भवन का रख-रखाव सही नहीं, बच्चों के सोने के लिए अपर्याप्त पलंग.
समाधान : हर विद्यालय में एक रख-रखाव अधिकारी नियुक्त किया जाये. दूरस्थ इलाकों के इन विद्यालयों के निरीक्षण के लिए विभाग से बाहर के भी कुछ लोगों को शामिल करना चाहिए. इसके अलावा एक खुला फंड या मरम्मत के लिए पैसा स्कूल प्रशासन को दिया जाना चाहिए, ताकि हर छोटा-मोटा जरूरी काम अनुमोदन के अभाव में नहीं रुके.
समस्या : खान-पान में कठिनाई. खाने का बजट अपर्याप्त. 10 साल पहले तय बजट पर अब भी खाना मिल रहा. बच्चों के भोजन के बीच लंबे अंतराल व निर्धारित मीनू का पालन नहीं होने के साथ-साथ पोषक तत्वों की कमी है. पहले एफसीआइ से राशन की होती थी खरीद, अब निजी आपूर्तिकर्ताओं से खरीदा जा रहा, जो बाजार दर पर बेचते हैं, ऐसे में कम बजट में दिक्कत.
समाधान : तत्काल प्रभाव से भोजन के बजट में वृद्धि हो. भोजन से संबंधित खातों का एक स्वतंत्र ऑडिट भी हो, ताकि भ्रष्टाचार, निजी आपूर्तिकर्ताओं द्वारा धोखाधड़ी आदि मुद्दे सुलझाये जा सकें.
समस्या : विषयवार शिक्षकों, वार्डन, क्लर्क व चौकीदारों की कमी है. बच्चे अपना आधा समय सफाई, खाना बनाने, पानी भरने और शिक्षकों के व्यक्तिगत काम में ही निकाल देते हैं.
इस कारण न सिर्फ उनकी पढ़ाई रुकती है, बल्कि वो बेवजह थक भी जाते हैं.समाधान : छात्रावास प्रशासन, सामान्य प्रशासन और शिक्षण की जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से अलग किया जाना चाहिए. सभी गैर शैक्षणिक रिक्तियों को भी जल्द से जल्द भरनी चाहिए, ताकि शिक्षक व छात्र दोनों ही केवल पढ़ाई पर ध्यान दे सकें. शिक्षा के अधिकार अधिनियम में निर्धारित शिक्षक-छात्र अनुपात 1-30 पहुंचाने के लिए शिक्षकों की संख्या में वृद्धि हो. अभिभावकों की अधिक से अधिक भागीदारी तय करना स्कूलों की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है. शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुसार स्कूल प्रबंध समितियां बनायी जानी चाहिए.
समस्या : लड़कियों की पढ़ाई होती है प्रभावित.
समाधान : लड़कियों के स्कूल के लिए महिला प्रिंसिपल का होना तय हो. जो विद्यालय केवल प्राथमिक स्तर तक ही हैं, उन्हें माध्यमिक या उच्च विद्यालय बनाया जाये. बालिका विद्यालयों के लिए ये बहुत जरूरी है, क्योंकि देखा गया है कि नये स्कूल में भरती कराने की दिक्कत के कारण छट्ठी कक्षा के बाद कई लड़कियों की पढ़ाई छूट जाती है. हर विद्यालय में साल में दो हेल्थ चेकअप कैंप आयोजित कर हर बच्चे का स्वास्थ्य रिकॉर्ड ठीक से रखा जाना चाहिए.
समस्या : शिक्षक व छात्र की गुणवत्ता का नहीं हो पाता आकलन.
समाधान : शिक्षकों और बच्चों, दोनों का ही सतत मूल्यांकन होते रहना चाहिए. इससे कमियों को समय पर ही पूरा किया जा सकेगा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें