राज्य सरकार ने आयकर विभाग की रिपोर्ट के आधार पर इस अधिकारी के खिलाफ निगरानी जांच का आदेश दिया था. इसके बाद निगरानी ने आरके सिन्हा के खिलाफ आइपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत प्राथमिकी(52/2010) दर्ज की. मामले की जांच के बाद 21 मई 2015 को निगरानी ने सरकार को लिखा कि अभियुक्त आरके सिन्हा के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं.
इसलिए सरकार इस अधिकारी के खिलाफ आइपीसी की धारा 409, 406, 420, 423, 467, 468, 471,109,120बी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7/13(2) सह पठित धारा 13(1)(डी)(सी)के तहत अभियोजन स्वीकृति दे. निगरानी के अनुरोध पर विचार-विमर्श के बाद सरकार ने आरके सिन्हा के विरुद्ध 24 जून 2015 को अभियोजन स्वीकृति दी. साथ ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अभियोजन स्वीकृति देने के लिए केंद्र सरकार से अनुरोध किया. केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सरकार के अनुरोध पर विचार करने के बाद यह लिखा कि किसी अधिकारी के पास अधिक बैंक खाता होने, पैसा या संपत्ति होने के आधार पर ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अभियोजन स्वीकृति देना उचित नहीं होता है. इसलिए निगरानी जांच कर यह बताये कि इस अधिकारी के पास मिली संपत्ति का स्रोत सही है या गलत.
केंद्रीय वन मंत्रालय का पत्र मिलने के बाद राज्य सरकार ने निगरानी को पत्र भेज कर केंद्र सरकार द्वारा उठाये सवालों का जवाब देने का निर्देश दिया. केंद्र सरकार का पत्र मिलने के बाद निगरानी ने नवंबर 2016 में सरकार को पत्र लिख कर यह कहा कि इस अधिकारी के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में मुकदमा चलाने के लिए अब अभियोजन स्वीकृति की जरूरत नहीं है. निगरानी का पत्र मिलने के बाद सरकार ने इसका विस्तृत कारण जानना चाहा है.