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हड्डी उपकरण के नाम पर हो रहा खेल, चार गुना तक पैसे वसूल रहे हैं रांची के अस्पताल

राजीव पांडेय रांची : झारखंड के निजी अस्पतालों के साथ- साथ रिम्स में भी हड्डी उपकरणों के नाम पर मरीजों से मनमाना पैसा वसूला जा रहा है. मरीजों को उपकरण के वास्तविक मूल्य से तीन से चार गुना अधिक पैसे देने पड़ रहे हैं. उन्हें तो उपकरणों के वास्तविक मूल्य का पता भी नहीं चल […]

राजीव पांडेय
रांची : झारखंड के निजी अस्पतालों के साथ- साथ रिम्स में भी हड्डी उपकरणों के नाम पर मरीजों से मनमाना पैसा वसूला जा रहा है. मरीजों को उपकरण के वास्तविक मूल्य से तीन से चार गुना अधिक पैसे देने पड़ रहे हैं. उन्हें तो उपकरणों के वास्तविक मूल्य का पता भी नहीं चल पाता. मरीज या उनके परिजन अगर डॉक्टर या अस्पताल प्रबंधन से पूछताछ करते हैं, तो उन्हें कहीं और इलाज करा लेने की धमकी दी जाती है. एक सप्लायर ने बताया कि डॉक्टरों को हड्डी के उपकरण 30 से 40 प्रतिशत की मार्जिन पर दिये जाते हैं. पर डॉक्टर, मरीजों से मनमानी रकम वसूलते हैं.
वास्तविक कीमत है कम : मेडिकल क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि इन उपकरणों की कीमत काफी कम होती है. मरीजों को कीमत की जानकारी दिये बिना ही उनसे एक मुश्त पैसा लिया जाता है. उदाहरण के लिए एक बोल्ट (स्टेनलेस स्टील) की कीमत 254 रुपये (एमआरपी) है. डॉक्टरों को यह 180 रुपये से भी कम मेें मिल जाता है. पर इसके लिए मरीजों से हजारों रुपये लिये जाते हैं. इसी तरह इंटर लाकिंग सेट डॉक्टर को 2,800 रुपये में मिलता है, पर रिम्स में मरीजों से इसके लिए सात से नौ हजार रुपये वसूले जाते हैं.
फीस, अन्य चार्ज अलग से : निजी अस्पतालों में तो मरीजों को और लूटा जा रहा है. निजी अस्पताल डाइनेमिक हिप स्क्रू (डीएचएस) के पूरे उपकरण (भारतीय) 2500 से 3000 रुपये में खरीदते हैं. पर मरीजों से 30 से 40 प्रतिशत की मार्जिन रख कर पैसे वसूलते हैं. आॅपरेशन का खर्च, बेड, नर्सिंग व ओटी चार्ज और डॉक्टर की फीस अलग से ली जाती है.
इसी तरह टोटल नी रिप्लेसमेंट के उपकरण (विदेशी कंपनी डेप्यू के) डॉक्टरों या अस्पतालों को 70 हजार रुपये में मिलते हैं. पर मरीजों से पूरे ऑपरेशन के लिए डेढ़ लाख तक वसूले जाते हैं. स्पाइन में फ्रैक्चर ठीक करने या रॉड लगाने का पूरा खर्च आठ से 15 हजार रुपये पड़ता है. पर मरीजों से इसके लिए 45,000 रुपये तक वसूले जाते हैं.
ऐसी सूचना हमारे पास नहीं है कि मरीजों से ज्यादा पैसे लिये जा रहे हैं. विभाग के चिकित्सक ही बेहतर बतायेंगे. यह गंभीर मामला है, इसकी जांच की जायेगी. अगर चिकित्सक इंडेंट करेंगे, तो हम इंप्लांट के उपरकण खरीद सकते हैं.
– डॉ बीएल शेरवाल, निदेशक रिम्स
अभी तक हड्डी इंप्लांट से संबंधित कोई शिकायत नहीं आयी है. अगर मरीजों से अधिक पैसे लिये जा रहे हैं या बिल नहीं दिया जाता, तो इसकी जांच की जायेगी.
– सुरेंद्र प्रसाद, संयुक्त निदेशक औषधि
सारा खेल एमआरपी का
हड्डी के उपकरणों की वास्तविक कीमत उस पर लिखी एमआरपी से 30 से 40 प्रतिशत कम होती है. डॉक्टरों को इसी मार्जिन पर उपकरण उपलब्ध कराये जाते हैं. डॉक्टर या अस्पताल प्रबंधन मरीजों को एमआरपी दिखा कर पैसे वसूलते हैं. साथ ही मरीजाें के परिजनों को ऑपरेशन की जटिलता दिखा कर उन्हें भयभीत किया जाता है और अधिक राशि वसूली जाती है.
पैकेज के नाम पर भी लूट : निजी अस्पताल मरीजों से पैकेज के नाम पर भी मोटी रकम वसूलते हैं. पैकेज में उपकरण, आॅपरेशन, नर्सिंग, बेड, दवा व डॉक्टरों की फीस शामिल होते हैं. पैकेज में उपकरण की एमआरपी दिखायी जाती है. अन्य चार्ज भी मनमाने तरीके से वसूले जाते हैं.
नहीं दिया जाता बिल
रिम्स के हड्डी विभाग में इलाज कराने वाले मरीज के परिजनों को उपकरण के खर्च का बिल नहीं दिया जाता है. इससे मरीज को यह पता नहीं चलता है कि क्या-क्या उपकरण लगा. उसकी कीमत कितनी है. इसी का लाभ उठा कर मरीज से मोटी रकम वसूली जाती है.
बीपीएल मरीजों को अधिक परेशानी : रिम्स में बीपीएल मरीजों का इलाज नि:शुल्क होता है. उन्हें दवा और जांच के भी पैसे नहीं देने पड़ते. पर हड्डी के उपकरणों के लिए उन्हें पैसे चुकाने पड़ते हैं. ऐसी स्थिति में उन्हें पैसे की व्यवस्था करने में काफी परेशानी होती है.
िरम्स में नहीं बताया उपकरण का दाम
रिम्स के हड्डी विभाग में दिसंबर 2016 में गढ़वा के एक मरीज रामसूरत भरती हुए. मरीज के पैर में फ्रैक्चर था. चिकित्सक ने ऑपरेशन की सलाह दी. परिजन ने बताया : पैर में रॉड लगाया गया.
इसके लिए नौ हजार रुपये लिये गये. डॉक्टर जब सलाह देकर बाहर निकले थे, तो एक व्यक्ति आया. उसने पैसों की मांग की और बताया कि उपकरण सीधे ऑपरेशन थियेटर में पहुंचा दिये जायेंगे. जब उससे कहा गया कि हमें उपकरण दे दीजिए, ऑपरेशन के दिन डॉक्टर दे देंगे, तो वह भड़क गया. बाद में हमलोग शांत हो गये. अब अॉपरेशन हो गया है. मरीज की छुट्टी भी हो गयी है. लेकिन हमें पता नहीं चला कि उपकरण की कीमत कितनी है.
गलत इंप्लांट िकया पैसे भी अिधक लिये
राजधानी के एक निजी अस्पताल में मेदिनीनगर का एक मरीज ऑपरेशन खराब होने के बाद री-कंस्ट्रक्शन के लिए आया. चिकित्सक ने उसका इलाज गलत तरीके से कर दिया था. रांची के अस्पताल के डॉक्टर ने बताया कि इंप्लांट के नाम पर वहां के डॉक्टर ने ज्यादा पैसा ले लिया और सही से इलाज भी नहीं किया.
क्या है सरकारी प्रावधान : हड्डी का इंप्लांट ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट में, फिर भी नहीं होती जांच
स्वास्थ्य व कल्याण विभाग ने छह अक्तूबर 2005 को आर्थोपेडिक सीमेंट व आर्थोपेडिक इंप्लांट को ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के तहत रखा है. भारत सरकार की अधिसूचना संख्या S.O. 1468 (E) में इसका उल्लेख है. पर राज्य औषधि निदेशालय इसकी जांच नहीं करती. औषधि निरीक्षक इस बात का पता भी नहीं लगाते कि अस्पताल विभिन्न मानकों को पूरा करते हैं या नहीं, मरीजों से कितने पैसा लेते हैं.

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