रांची : झारखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा विधायक दल के नेता हेमंत सोरेन ने मंगलवार को यहां आरोप लगाया कि राज्य सरकार अब खुल्लम खुल्ला विधानसभा के संचालन में भी हस्तक्षेप कर रही है. झारखंड विधानसभा के 17 जनवरी को प्रारंभ हुए वर्तमान बजट सत्र में सीएनटी एवं एसपीटी भूमि अधिनियमों में संशोधन के विरोध में सदन हंगामेभरा रहने के कारणों पर विधानसभा परिसर में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए सोरेन ने यह आरोप लगाये.
एक सवाल के जवाब में सोरेन कहा कि जब उनकी पार्टी के तीन और कांग्रेस के एक विधायक के निलंबन की वापसी के मुद्दे पर विधानसभाध्यक्ष दिनेश उरांव एवं अन्य सभी दलों के नेताओं ने सकारात्मक रुख दिखाया, लेकिन स्वयं मुख्यमंत्री ने सदन के भीतर इसका विरोध किया जिसके कारण अब तक इसपर फैसला नहीं हो सका है. हेमंत ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार स्वयं नहीं चाहती कि सदन शांति पूर्वक चले। सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के बारे में एक सवाल पर पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि इस संबन्ध में कोई फैसला विधानसभा की प्रक्रिया के नियमों पर चर्चा करके उनकी पार्टी करेगी.
उन्होंने सवाल किया, ‘‘आखिर जनता के चुने हुए प्रतिनिधि सदन के भीतर जन मुद्दों पर अपना विरोध नहीं दर्ज करायेंगे तो कहां विरोध दर्ज करायेंगे।” सोरेन ने कहा, ‘‘सीएनटी एवं एसपीटी अधिनियमों पर सदन के भीतर शीतकालीन सत्र में 23 नवंबर को किये गये विरोध प्रदर्शन के कारण विधायकों का 31 मार्च तक के लिए निलंबन, उनके वेतन, भत्ते और सभी सुविधाएं रोकना सरासर नाइंसाफी है.”
हेमंत सोरेन ने कहा कि सदन में हुई चर्चा के आधार पर जब विधानसभाध्यक्ष के कक्ष में इस मामले पर विचार विमर्श किया गया था तो भी सब कुछ सकारात्मक दिखा था। लेकिन अब न जाने क्यों सदन में इन विधायकों पर हुई कार्रवाई के बारे में कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया जा रहा है? सोरेन ने आरोप लगाया कि इन स्थितियों में स्पष्ट है कि सरकार सदन की कार्यवाही में हस्तक्षेप कर रही है. यह पूछने पर कि क्या, विधानसभाध्यक्ष कमजोर हैं या वह अपने संवैधानिक अधिकारों को उचित प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं, सोरेन ने कहा, ‘‘इस बारे में मेरा कुछ कहना उचित नहीं होगा, आप हमारे द्वारा बताये गये तथ्यों के अनुसार स्थिति को स्वयं समझ सकते हैं.” उन्होंने यह भी आह्वान किया कि आदिवासी हितों पर सभी आदिवासी नेताओं को एकजुट होना चाहिए.
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने आदिवासी भूमि से जुडे सीएनटी एवं एसपीटी अधिनियमों में जो संशोधन किये हैं उनके चलते अब ये दोनों अधिनियम जिंदा लाश बन कर रह गये हैं.