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मुर्गी के दरबे जैसे घर में रहता है चार लोगों का परिवार
रांची: राजधानी रांची के आसपास के इलाकों का शहरीकरण तेजी से हो रहा है, जिसमें रातू भी शामिल है. सरकारी स्तर पर इस प्रखंड के गांवों के विकास को लेकर कई दावे किये जाते रहे हैं. दावा किया जाता है कि कई लोगों को इंदिरा आवास बना कर दिया गया है. हालांकि, रातू प्रखंड के […]
रांची: राजधानी रांची के आसपास के इलाकों का शहरीकरण तेजी से हो रहा है, जिसमें रातू भी शामिल है. सरकारी स्तर पर इस प्रखंड के गांवों के विकास को लेकर कई दावे किये जाते रहे हैं. दावा किया जाता है कि कई लोगों को इंदिरा आवास बना कर दिया गया है. हालांकि, रातू प्रखंड के तिगरा गांव स्थित बसाइर टोली में रहने वाले शत्रुघ्न गोप की कहानी सरकारी दावों की पोल खोलने के लिए काफी है.
रिक्शा चलानेवाले शत्रुघ्न गोव अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ यहां जिस घर में पिछले तीन साल से रह रहा है, वह मुर्गी के दरबे से ज्यादा नहीं है. सीमेंट के एसबेस्ट से बना उसका घर सुनसान खेत में है. ढाई से तीन फीट ऊंचे आैर आठ से नौ फीट चौड़े इस घर में घुटने मोड़ कर भी खड़ा होना मुश्किल है. यहां केवल बैठा या सोया जा सकता है. इसी घर में शत्रुघ्न का पूरा परिवार रहना, सोना, बैठना, खाना बनाना, खाना, बेटियों का पढ़ना-लिखना होता है. रोशनी के नाम पर इनके पास ढिबरी का सहारा है. खाना बनाते समय लकड़ी का जो धुआं उठता है, उसमें इनकी पूरी रात गुजरती है.
हर मौसम में करनी होती है बचने की जद्दोजहद
बरसात में इनका जीवन नारकीय हो जाता है. लगातार बारिश होने की वजह से इन्हें पूरा समय यो तो सो कर या बैठ कर गुजारनी पड़ती है. कपड़े इस डर से नहीं धोते कि सुखायेंगे कहां? गरमी में पूरा परिवार किसी पेड़ की शरण लेता है. ठंड में परिवार का कोई न कोई सदस्य बीमार पड़ता है सो अलग. एसबेस्टस की छत और दीवार पर बोरियां डाल कर ठंडी हवा को रोकने की कोशिश करते हैं.
रोज पेट पालने के लिए शहर आता है शत्रुघ्न
शत्रुघ्न गोप हर दिन रिक्शा लेकर रांची आता है. इसी रिक्शे से वह पत्नी सुगली देवी (43 वर्ष), बेटी सुनीता (14 वर्ष) और करमी ( 12 वर्ष) का भरण-पोषण करता है. पत्नी सुगली देवी भी शहर आ जाती है, जो चुनने-बीछने का काम कर घर चलाने में सहयोग करती है. वहीं बेटियां पूरे दिन घर में अकेले रहती हैं.
बेटियां हो रहीं बड़ी, रोजाना सता रहा डर
शत्रुघ्न कहते हैं बेटियां बड़ी हो रही हैं, इस सुनसान जगह पर रहने में उसे डर लगता है. रात को यह डर और बढ़ जाता है क्योंकि घर में दरवाजा नहीं है. बच्चियां कभी स्कूल जा पाती हैं, तो कभी नहीं. शत्रुघ्न के पास थोड़ा-बहुत खेत है, जो दूसरे को खेती के लिए दी है. इससे कुछ सब्जियां मिल जाती है. तीन साल पहले कुछ मदद के लिए ब्लॉक गये थे, लेकिन कुछ हुआ नहीं. दिक्कत यह है कि रोज कमाने जाये या ब्लॉक के चक्कर लगाये?
सरकार से कुछ भी सहयोग नहीं मिलता
शत्रुघ्न को सरकारी स्तर से भी कोई सहयोग नहीं मिला. हालत यह है कि उसका बीपीएल नंबर व राशन कार्ड तक नहीं बना है. जन प्रतिनिधियों द्वारा कंबल या वस्त्र वितरण किया जाता है, इसमें भी ये चूक जाते हैं, क्योंकि ये बस्ती-गांव में नहीं, बल्कि कुछ दूर खेत में हैं. इनके तक कुछ नहीं पहुंच रहा. ब्लॉक के अफसर-कर्मचारी आते-जाते देखते हैं, लेकिन किसी की उन पर नजर नहीं पड़ती है.
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