वित्तीय मामलों में वह चेक सहित अन्य दस्तावेज रांची लाकर प्रभारी गव्य विकास पदाधिकारी अजीत कुमार से हस्ताक्षर कराते रहे. यह सिलसिला दो साल से अधिक समय तक चलता रहा. मुख्यमंत्री द्वारा की गयी गव्य विकास की योजना की समीक्षा के दौरान इस बात का खुलासा हुआ कि लोहरदगा में तकनीकी पदाधिकारी गव्य विकास पदाधिकारी की तरह काम कर रहा है.
राजपत्रित पद पर अराजपत्रित कर्मचारी के काम करने के इस मामले में मुख्यमंत्री ने कार्रवाई करने का आदेश दिया. इसके बाद विभाग ने लोहरदगा के उपायुक्त से इस मामले में रिपोर्ट मांगी. उपायुक्त ने जून 2016 में इस मामले में अपनी रिपोर्ट सरकार को भेजी. इस रिपोर्ट के आधार पर सहायक निदेशक और तकनीकी पदाधिकारी दोनों को ही निलंबित करते हुए विभागीय कार्यवाही शुरू की जानी थी, पर विभाग में इस मामले में टाल-मटोल होता रहा. सात माह तक फाइल विभागीय मंत्री और विभाग के बीच घूमती रही. इस स्थिति से नाराज मुख्यमंत्री ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए अपने स्तर से दोनों को निलंबित करने का आदेश जारी किया. इसके बाद विभाग ने दोनों को जनवरी 2017 में निलंबित किया और विभागीय कार्यवाही का आदेश जारी किया.