मजदूरी कर पेट पालने वाले भूमिहीन लोग एसटी समुदाय (13.23 फीसदी) से अधिक एससी समुदाय (29.7 फीसदी) से ताल्लुक रखते हैं. एक कमरे के कच्चे मकान में रहनेवाले परिवार भी एसटी समुदाय (15.79 फीसदी) से अधिक एससी समुदाय (19.62 फीसदी) के हैं. वहीं ऐसे परिवार जहां 25 वर्ष या अधिक उम्र वाला कोई वयस्क शिक्षित नहीं है, इनकी संख्या भी एसटी समुदाय (33.95 फीसदी) से अधिक एससी समुदाय (41.03 फीसदी ) में है. यानी अशिक्षा, गरीबी या मुफलिसी झारखंड के एससी समुदाय में अधिक है. एक कमरे के कच्चे मकान में रहनेवाले तथा अशिक्षित वयस्क मामले में झारखंड के एससी की हालत राष्ट्रीय अौसत (क्रमश: 17.24 व 31.15 फीसदी) से भी खराब है. फिर भी इस समुदाय के लोग एसटी समुदाय से अधिक सरकारी नौकरियों में हैं तथा उनसे अधिक लोग अायकर भी चुकाते हैं. कुल 5.1 फीसदी एससी परिवार का कोई न कोई सदस्य सरकारी नौकरी में है.
वहीं ऐसे एसटी परिवार 3.49 फीसदी ही हैं. प्राइवेट सेक्टर में भी नौकरी के मामले में एससी (1.6 फीसदी) एसटी (0.9 फीसदी) से आगे हैं. खान-खनिज वाले तथा अौद्योगिक जिलों जैसे रामगढ़, हजारीबाग, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम, बोकारो व गिरिडीह में सरकारी तथा निजी दोनों नौकरियां अधिक हैं. एससी-एसटी को नौकरी देने वाले टॉप फाइव शहरों में रांची सिर्फ एसटी लोगों को प्राइवेट नौकरी देने के मामले में पांचवें स्थान पर है. नौकरियों में अधिक रहने की वजह से ही टैक्स देने वाले एसटी परिवार जहां 3.31 फीसदी है. वहीं एससी में ऐसे लोगों की संख्या 4.84 फीसदी है. सरकारी व निजी नौकरी में तथा टैक्स देनेवाले राज्य के एससी परिवारों का आंकड़ा राष्ट्रीय अौसत (क्रमश: 3.95 तथा 3.49 फीसदी) से भी अधिक है.