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पॉलिथीन गंदगी का सबसे बड़ा कारण

गंभीर समस्या. शुरू हो चुका है स्वच्छता सर्वेक्षण, आम लोगों को भी करनी होगी पहल देश भर के 500 शहरों का स्वच्छता सर्वेक्षण शुरू हो चुका है. स्वच्छता के मामले में रांची की छवि को बेहतर बनाने के लिए रांची नगर निगम कई कोशिशें भी शुरू कर दी हैं. हालांकि, राजधानीवासियों को इस मामले में […]

गंभीर समस्या. शुरू हो चुका है स्वच्छता सर्वेक्षण, आम लोगों को भी करनी होगी पहल
देश भर के 500 शहरों का स्वच्छता सर्वेक्षण शुरू हो चुका है. स्वच्छता के मामले में रांची की छवि को बेहतर बनाने के लिए रांची नगर निगम कई कोशिशें भी शुरू कर दी हैं. हालांकि, राजधानीवासियों को इस मामले में और गंभीर होने की जरूरत है. क्योंकि, शहर को गंदा करने में सबसे बड़ी भूमिका पॉलिथीन की होती है. नाली हो, सड़क हो या पार्क हर जगह पॉलिथीन, प्लास्टिक पाउच बिखड़े नजर आते हैं. निगम के कर्मचारी सफाई कर जाते हैं और अगले दिन दोबारा वहां वैसी ही स्थिति हो जाती है.
रांची : नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव अरुण कुमार सिंह का कहना है कि रांची नगर निगम लाख सफाई कर ले, लेकिन जब तक शहरवासी पॉलिथीन का इस्तेमाल करते रहेंगे, राजधानी कभी साफ नहीं हो सकेगी. नालियां जाम होने की सबसे बड़ी वजह है पॉलिथीन. लोग इसका इस्तेमाल करते हैं और नालियों अथवा सड़क पर फेंक देते हैं. निगम तो अपना काम कर ही रहा है, लेकिन लोगों को भी अपनी जिम्मेवारी समझनी होगी. आखिर ये शहर उन्हीं का तो है.
इधर, झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद द्वारा जून 2013 में 50 माइक्रोन से कम मोटाई वाले पॉलिथीन के इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है. इसके बावजूद रांची समेत राज्य के सभी हिस्सों में 20 माइक्रोन से भी कम वाले पॉलिथीन का इस्तेमाल दुकानदार से लेकर सब्जी विक्रेता तक करते हैं.
प्रतिबंध लगाते समय कहा गया था कि ऑन स्पॉट फाइन वसूला जायेगा. 50 से कम माइक्रोन के पॉलिथीन बेचने, खरीदने और इस्तेमाल करने वालों पर भी जुर्माना लगाया जाना था. लेकिन यह प्रतिबंध पूरी तरह से कागजी साबित हो रहा है. राजधानी में कई दुकानदार 20 से कम माइक्रॉन की पॉलीथिन का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन न तो जिला प्रशासन और न ही नगर निगम की ओर से कोई कार्रवाई हो रही है. इससे प्रतिबंधित पॉलिथीन का उपयोग बढ़ गया है. रांची नगर निगम द्वारा टीम गठित कर दुकानों की जांच करने का आदेश दिया गया था. पर यह कार्रवाई अब ठप हो गयी है. किसी दुकानदार की जांच नहीं की गयी और न ही की जा रही है.
60 टन पॉलिथीन की खपत हर रोज
झारखंड में में प्रति व्यक्ति दो किलो पॉलिथीन प्रतिवर्ष उपयोग में लाया जाता है. इस लिहाज से पूरे रारज्य में हर रोज 60 टन और राजधानी रांची में हर रोज 10 टन पॉलिथीन की खपत होती है. कहा जाता है कि झारखंड में रोज निकाले जानेवाले कूड़े का 20 फीसदी प्लास्टिक होता है, जबकि राज्य में प्लास्टिक रीसाइकिल का कोई उपाय नहीं है. फेंके गये कुल पॉलिथीन का 0.2 फीसदी ही रीसाइकिल हो पाता है.
सजा का है प्रावधान
राज्य में 50 माइक्रॉन से कम मोटाई के पॉलिथीन बैग के निर्माण उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध है. नियम का पालन न करने वालों को आइपीसी की धारा 133 (बी) के तहत सजा दी जा सकती है. इसके अलावा झारखंड म्युनिस्पैलिटी एक्ट की धारा 155 के तहत नियम का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ जुर्मानेे का प्रावधान है.
खतरनाक है पॉलिथीन का इस्तेमाल
जानकार बताते हैंकि पॉलिथीन को फेंकना भी कम खतरनाक नहीं है. जमीन में दबाने पर भूमि को बंजर बनाने के साथ यह स्वच्छ जल के स्रोत (कुआं, चापानल आदि) को प्रदूषित करता है. पॉलिथीन से दूषित पानी पीने से खांसी, सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन, चक्कर आना, मांसपेशियों का शिथिल होना, हृदय रोग से पीड़ित हो सकते हैं. फेंका गया पॉलिथीन पूरे पर्यावरण पर असर डालता है.
जल संकट का कारण है पॉलिथीन
झारखंड में 50 से 55 फीसदी क्षेत्र पठारी है. बारिश का पानी ज्यादातर जगहों पर बहते हुए ही निकलता है. पिछले कुछ वर्षों से राज्य में पॉलिथीन का प्रयोग बेतहाशा बढ़ा है. राज्य के तकरीबन सभी शहरों में ग्राउंड वाटर लेबल काफी नीचे चला गया है. विशेषज्ञ हाल के दिनों में बढ़े जल संकट का प्रमुख कारण पॉलिथीन को ही मानते हैं

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