रांची : राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल को केंद्र सरकार की अोर से करोड़ों की मशीनें उपलब्ध करायी गयी हैं, लेकिन उनका उपयोग नहीं हाे रहा है. ऐसे में जरूरतमंद मरीजों काे इनका लाभ नहीं मिल पा रहा है. मजबूरन मरीजों को निजी जांच घरों में अधिक पैसा दे कर जांच या इलाज कराना पड़ रहा है.
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रिम्स में बेकार पड़ी हैं पौने दो करोड़ की मशीनें
रांची : राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल को केंद्र सरकार की अोर से करोड़ों की मशीनें उपलब्ध करायी गयी हैं, लेकिन उनका उपयोग नहीं हाे रहा है. ऐसे में जरूरतमंद मरीजों काे इनका लाभ नहीं मिल पा रहा है. मजबूरन मरीजों को निजी जांच घरों में अधिक पैसा दे कर जांच या इलाज कराना […]
रिम्स के दो विभाग बायोकेमेस्ट्री एवं यूरोलॉजी विभाग में दो उपयोगी मशीनें पड़ी हैं. बायोकेमेस्ट्री विभाग में एटोमिक एब्जॉर्बप्सन एस्पेक्टो फोटोमीटर मशीन करीब साल भर पहले मंगायी गयी थी.
इसकी कीमत करीब डेढ़ करोड़ रुपये बतायी जा रही है. वहीं, यूरोलॉजी में एक्सट्राकारपोरल शॉक वेस लिथोट्रॉप्सी (इएसडब्लूएल) मशीन करीब दो माह पहले मंगायी गयी है, जिसकी कीमत करीब 20 लाख रुपये है. हालांकि, इन दोनों मरीजों का उपयोग नहीं हो रहा है.
एटॉमिक एब्जॉर्बप्सन एस्पेक्टो फोटोमीटर : मशीन से पानी में फ्लोराइड, कॉपर, मैगनिशियम आदि की मात्रा की जांच की जा सकती है. इससे यह पता किया जा सकता है कि पानी में लेड की मात्रा कितनी है? इससे किडनी एवं लिवर पर क्या असर पड़ सकता है?
खाद्य पदार्थ में उपयोग किये गये लेड की मात्रा की जांच भी हो सकती है.
एक्सट्राकारपोरल शॉक वेस लिथोट्रॉप्सी : इएसडब्लूएल का उपयोग बिना ऑपरेशन के किडनी स्टोन निकालने के लिए किया जाता है. मशीन रिम्स में आ चुकी है, लेकिन कंपनी ने इसे इंस्टॉल नहीं किया है. इसे चलाने के लिए टेक्निशियन भी नहीं है. यूरोलॉजी विभाग में इएसडब्लूएल से इलाज मात्र पांच हजार रुपये में हो जायेगा. जबकि, निजी अस्पतालों में इसके लिए 40 हजार रुपये तक खर्च होते हैं.
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