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प्रकृति संरक्षण के लिए अर्थव्यवस्था के साथ राजनीति में भी परिवर्तन जरूरी

पूर्वी भारत में पर्यावरण और विकास की स्थिति पर सेमिनार, गोविंदाचार्य ने कहा रांची : पूर्वी भारत में पर्यावरण और विकास की स्थिति, मुद्दे और चुनौतियां विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का समापन रविवार को हुआ. समापन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रख्यात चिंतक और विचारक गोविंदाचार्य ने कहा […]

पूर्वी भारत में पर्यावरण और विकास की स्थिति पर सेमिनार, गोविंदाचार्य ने कहा
रांची : पूर्वी भारत में पर्यावरण और विकास की स्थिति, मुद्दे और चुनौतियां विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का समापन रविवार को हुआ. समापन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रख्यात चिंतक और विचारक गोविंदाचार्य ने कहा कि प्रकृति संरक्षण के लिए अर्थव्यवस्था के साथ राजनीति में भी परिवर्तन आवश्यक है.
समय आ गया है जब प्रकृति केंद्रित विकास की समीक्षा होनी चाहिए. मुद्दों पर संघर्ष करने वाले समूहों को एकजुट होना चाहिए. मुद्दों पर राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठ कर एकजुटता दिखायी जानी चाहिए. राज्य के प्रबंधन में बदलाव होना चाहिए. केवल जीडीपी के आधार पर विकास का चिह्न ढूंढ़ने के प्रयास की जगह मूल्य रहित जीडीपी तैयार करने से विकास होगा. नया युग परिवर्तनकारी होगा. मूल्य, नैतिकता और समाज के अंतिम व्यक्ति के हित को ध्यान में रखने वाला प्रबंधन ही दुनिया के हित में होगा.
युगांतर भारती द्वारा रांची, कोल्हान, विनोबा भावे व सिदो-कान्हू विश्वविद्यालय और नेचर फाउंडेशन के साथ मिल कर आयोजित की गयी कार्यशाला में श्री गोविंदाचार्य ने कहा कि ग्लोबलाइजेशन के जमाने में अपने राज्य या देश को देखने की जगह समूचे विश्व की परिकल्पना कर विकास कार्य करने होंगे. मानव केंद्रित विकास बनाम प्रकृति केंद्रीय विकास युद्ध का परिणाम भयावाह होता जा रहा है. युद्ध की बदली परिस्थितियों में नये तरीकों की जरूरत है.
पूरा संसार परिवर्तन की दिशा में बढ़ रहा है. विश्व को नेतृत्व देने की सबसे अधिक क्षमता भारत में है. उन्होंने कहा : पिछले 500 वर्षों में मानव द्वारा किये गये विकास की गति गुजरे पांच हजार वर्षों में हुए विकास से भी कहीं ज्यादा तेज रही है, लेकिन उसकी कीमत क्या रही. 20 वर्ष पहले दुनिया में 65 करोड़ लोगों को एक डॉलर से कम पर जीवन यापन करना पड़ता था. आज 135 करोड़ लोग एक डॉलर से कम पर जीवन बसर कर रहे हैं.
दुनिया की 30 फीसदी संपत्ति 20 फीसदी लोगों के पास थी. आज 80 फीसदी संपत्ती 20 फीसदी लोगों के पास है. भारत की बात करें तो यहां सात प्रतिशत लोगों के पास देश की 58 फीसदी संपत्ति है. हमारे देश में 45 करोड़ लोग केवल सवा डॉलर मासिक की आमदनी पर जीवित हैं. 50 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं. खुली अर्थव्यवस्था में पूर्वी भारत की स्थिति लगातार बिगड़ रही है. पूर्वी भारत का लाभ देश का पश्चिमी हिस्सा उठा रहा है.
उन्होंने कहा कि मानव हर समय प्रकृति और परमात्मा की नजर में हैं. वह सब देखते हैं और बिना किसी डर और पक्षपात के चलते रहते हैं. जल, जंगल, जमीन और जानवर के साथ मानव भी प्रकृति का हिस्सा है. हमें प्रकृति के साथ किया जा रहा व्यवहार बंद कर उसके अनुकूल जीवन जीना हाेगा.
शरीर और मन में बड़ा अंतरंग संबंध है. जैसा भित्त, वैसा चित्त. गलत काम करने वाले लोगों का चित्त कभी खुश नहीं होता. इन्ही कारणों से स्वास्थ्य आज दुनिया का सबसे बड़ा विषय बन गया है. ऐसे में राजनीति और अर्थशास्त्र को फिर से डिजाइन करने की जरूरत है.
गोविंदाचार्य ने कहा कि परिवारवाद, सरकारवाद और बाजारवाद में मंदी के बाद अब दुनिया भर में सोचा जा रहा है कि आगे क्या होगा. मानव का विकास प्रकृति के साथ मेल नहीं बैठा पा रहा है. दुनिया भर में भय का माहौल बन रहा है. मानव ने उपभोग सामर्थ्य को ही विकास का मानक बना लिया है. इंद्रीय व शारीरिक सुख की मानसिकता बना ली है.
अब तक विकास के लिए मानव ने केवल अपने समुदाय को देखा. सोचा कि प्रकृति भी मानव के उपभोग के लिए ही है. हमने विकास के लिए प्रकृति का मूल स्वभाव बदल डाला. अब बात समझ में आ रही है. प्रकृति का संपोषण ही असली विकास है. मानवों को जल, जंगल, जमीन और जानवर के साथ ही जीना होगा. प्रकृति को समझना होगा.
जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ी तो हमारा विकास, जल स्तर बढ़ा तो विकास, जंगल और जानवर बढ़े तो विकास. हमें मानना होगा कि प्रकृति में कोई चीज बेकार नहीं होती. प्रकृति में स्थिति व गति है. उसके संतुलन का अपना विज्ञान है. पर, मानव खुद को बुद्धिमान समझ कर प्रकृति से लड़ता है. हमें प्रकृति का आदर करना सीखना होगा. ऐसा संस्कार व शिक्षा से ही संभव है. राज्य का गठन ही निर्बल की सहायता के लिए हुआ है. राज्य अपना कर्म ठीक से करे, तो इसका लाभ निर्बल पशुओं और बेजुबान पौधों को होगा.
रांची : राष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिन खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय के व्यक्तित्व पर लिखी गयी पुस्तक ‘सरयू राय: एक नाम कई आयाम’ का विमोचन किया गया. प्रख्यात चिंतक व विचारक केएन गोविंदाचार्य की उपस्थिति में सांसद निशिकांत दुबे, पत्रकार हरिवंश समेत अन्य विभूतियों ने पत्रकार आनंद कुमार द्वारा संकलित व संपादित पुस्तक का विमोचन किया. प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक में श्री राय द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में किये गये कार्यों का का संकलन है. पुस्तक की प्रस्तावना हरिवंश ने लिखी है.
रांची : सेवा भारती रांची महानगर के बाल संस्कार केंद्र व सिलाई प्रशिक्षण केंद्र की आचार्या का प्रशिक्षण सह वन विहार कार्यक्रम रविवार को कांके में हुआ. मौके पर स्वदेशी जागरण मंच के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य के गोविंदाचार्य ने कार्यक्रम में जल, जंगल, जमीन व जानवर की रक्षा का आह्वान किया.
उन्होंने कहा कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ करेंगे, तो हम संकट में पड़ जायेंगे. प्रकृति के संग चलने में ही मानव की सुरक्षा है. आज हमारे जीने का तरीका बदल गया है, जिससे भयावह बीमारियां आ रही हैं. उन्होंने कहा कि देश में सेवा संस्कार का जन मानस बनायें. मौके पर ओम प्रकाश केजरीवाल, रामरतन, ऋषि पांडेय, रमाकांत दुबे, जय प्रकाश, कमल सिंघानिया, रचना सिंघानिया, माया सिंह सिसोदिया, कंचन प्रभा, निशि जायसवाल, आरती शरण आदि मौजूद थे.
वरिष्ठ पत्रकार व सांसद हरिवंश ने कहा कि विकास के वर्तमान मॉडल से विनाश तय है. नोटबंदी के बाद देश के मध्य वर्ग का चरित्र उजागर हो रहा है. साफ दिख रहा है कि समर्थ वर्ग ही नियम तोड़ रहे हैं. सूख रही नदियों को ठीक करने के नाम पर करोड़ों-अरबों रुपये खर्च किये गये हैं.
पर्यावरण बेहतर बनाने के नाम पर सालाना दो हजार करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं. यह राशि कहां जा रही है. लोग पहाड़ तक गायब कर दे रहे हैं. इन सब पर कोई आवाज नहीं उठती. जब तक लोग जागरूक नहीं होंगे, तब तक कुछ नहीं होगा. आज हर अच्छे कार्य का भी विरोध होता है. इसे ठीक करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे.
कड़ाई से कानून लागू करने होंगे. मौजूदा परिवेश में लगता है कि आजादी के बाद देश चलाने के लिए व्यवस्था का चुनाव ही गलत था. हमने विकास का गलत मॉडल चुन लिया, लगता है. उन्होंने कहा कि मानव की सुविधाओं के साथ धरती नहीं बनी रह सकती है. हमें प्रकृति को देखना-समझना ही होगा. आदिवासियों की परंपरा में अदभुत चीजें हैं. जीवन में संस्कृति के अंश रहें, तो सब ठीक हो सकता है.
लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे ने बताया कि देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई हस्तियों को भाजपा में लाने का श्रेय गोविंदाचार्य हो ही जाता है. 1987-88 में लालकृष्ण अाडवाणी के राजनीतिक सलाहकार के रूप में काम करते हुए गोविंदाचार्य नरेंद्र मोदी को पार्टी में लेकर आये थे.
उन्होंने कहा कि देश के खनिजों का 40 फीसदी हिस्सा झारखंड से और 80-85 फीसदी पूर्वी भारत से आने के बावजूद यहां की स्थिति बदतर है. क्षेत्र में रेल कॉरीडोर तक विकसित नहीं किया जा सका. जनप्रतिनिधियों के लिए भी पर्यावरण संरक्षित करते हुए विकास की परिकल्पना मुश्किल साबित हो रही है.
ऐसे में विकास के मॉडल और जनप्रतिनिधियों की भूमिका पर चिंतन की जरूरत है. समापन समारोह में मंत्री सरयू राय, रांची विवि के कुलपति डॉ रमेश पांडेय, श्रीमती मधु, आरके सिन्हा, डॉ उदय, आरडीपी सिंह, आर सुकुमार, आरपीपी सिंह समेत कई गणमान्य लोग मौजूद थे. सफल आयोजन के लिए सरयू राय ने सबका आभार जताया.

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