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खेती-बाड़ी छोड़ बैंक और एटीएम का चक्कर लगा रहे हैं किसान
प्रधानमंत्री ने 8 नवंबर की रात नोटबंदी की घोषणा की थी. तब से लेकर अब तक कुल 38 दिन बीत चुके हैं, लेकिन हालात अब भी सामान्य नहीं हुए हैं. शहरी इलाकों में तो पैसों की किल्लत है ही, ग्रामीण इलाकों में भी हालात बेहद खराब हैं. सबसे ज्यादा परेशानी उन किसानों को हो रही […]
प्रधानमंत्री ने 8 नवंबर की रात नोटबंदी की घोषणा की थी. तब से लेकर अब तक कुल 38 दिन बीत चुके हैं, लेकिन हालात अब भी सामान्य नहीं हुए हैं. शहरी इलाकों में तो पैसों की किल्लत है ही, ग्रामीण इलाकों में भी हालात बेहद खराब हैं. सबसे ज्यादा परेशानी उन किसानों को हो रही है, जिन्हें रबी की फसल उगानी है. बैंक से पैसे निकालने में परेशानी है, क्योंकि वहां पर्याप्त कैश नहीं है, जबकि गिने चुने एटीएम से दो हजार के नोट निकल रहे हैं. वहीं रोज-खाने कमाने वालों को भी संकट है. हालांकि, गांवों के किसानों और व्यापारियों को पुराने नोट खपाने की चिंता नहीं सता रही है क्योंकि इनका कहना है कि बैंक खाता हो या घर की अलमारी, उनके पास जरूरत भर ही पैसे रहते हैं. ग्रामीण इलाकों में नोटबंदी के प्रभाव पर ‘प्रभात खबर’ की पड़ताल.
कोडरमा
बैंकों और एटीएम के चक्कर लगाने में पिछड़ गयी खेती
जयनगर. नोटबंदी के बीच ग्रामीण इलाकों का बुरा हाल है. इन इलाकों के बैंकों में आज भी कैश की किल्लत है. ऐसे में किसान कई बार बैंकों से खाली हाथ लौटना पड़ रहा है. बैंक के चक्कर लगाने में खेती-बाड़ी का काम काज भी पिछड़ गया है. धान की कटनी तो प्रभावित हुई ही, रबी की फसल भी प्रभावित है. एटीएम से भी 25 सौ से ज्यादा नहीं निकल रहा, इसलिए सवाल उठना लाजमी है कि किसान बीज और खाद कैसे खरीदेंगे? ग्रामीण इलाकों में एटीएम भी गिने-चुने हैं, जिनमें एक या दो में ही पैसे निकल रहे हैं. खेडोबर के रंजीत यादव कहते हैं कि नोटबंदी का फैसला सही है, लेकिन बाजार में पर्याप्त कैश न होने से काफी परेशानी हो रही है. रामदेव यादव कहते हैं : एटीएम से दो हजार व पांच सौ के नये नोट निकलते हैं. इन नोटों के रहते 100-50 की खरीदारी मुश्किल हो गयी है. बासुदेव यादव कहते हैं : सरकार कैशलेस की बात करती है, लेकिन आज भी कई लोगों को मोबाइल चलाना भी नहीं आता है. शिविर लगाकर लोगों को जागरूक करने की जरूरत है.
रामगढ़
दुकानदारी हुई प्रभावित तीन माह से नहीं मिल रही मजदूरी
गोला. नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर गरीबों पर पड़ा है. समय पर मजदूरी नहीं मिल रही, जिससे घर चलना मुश्किल हो रहा है. हुप्पू गांव का राजदीप रविदास, उसका बेटे और बहू गांव में निर्माणाधीन महिला इंजीनियरिंग कॉलेज में मजदूरी करते हैं. पहले जहां 15 दिनों में नगद मजदूरी मिल जाती थी. नोटबंदी के बाद से अब तक की मजदूरी बकाया है. प्रबंधन के कहने पर इन लोगों ने बैंक पासबुक जमा कराया था, लेकिन अब तक उनके खाते में मजदूरी के पैसे नहीं आये. इसी गांव के दुकानदार रंजीत कुमार उपाध्याय ने बताया कि नोटबंदी से पहले हर दिन दो से तीन हजार रुपये की आमदनी होती थी, जो फिलहाल आधे से भी कम हो गयी है. कई लोग दो हजार के नये नोट लेकर आते हैं. खुदरा नहीं होने के कारण उन्हें या तो उधार राशन देना पड़ता है, या उन्हें खाली हाथ लौटाना पड़ता है. वह कहते हैं कि ऑनलाइन लेन-देन करने का विज्ञापन टीवी और अखबार में तो देखते हैं और पढ़ते हैं. लेकिन इसकी जानकारी नहीं होने के कारण नगद कारोबार ही कर रहे हैं.
गुमला
पैसे की किल्लत से कई परिवार गांव से पलायान कर गये
गुमला. शहर से सटे करौंदी नायकटोली गांव में नायक जाति के 70 परिवार रहते हैं. सभी गरीबी रेखा से नीचे वाले (बीपीएल) हैं. कोई मजदूरी करता है, तो कोई रिक्शा चलाता है. नोटबंदी के बाद से इनका जीवन दूभर हो गया है. नोटबंदी से जीविका प्रभावित होता देख 15 से अधिक परिवार काम की तलाश में दूसरे राज्य चले गये हैं. गांव की सुचित्र नायक, केदार नायक, तिजू नायक, मनोज नायक, डहरी देवी, मुन्नू देवी, राधिका देवी, रैनी देवी, आशा देवी, अनीमा देवी कहती हैं कि प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए नोटबंदी की थी, लेकिन इसमें गरीब पिस रहे हैं. वहीं, कालाधन रखने वाले किसी ने किसी के माध्यम से अपने धन को सफेद करने में लगे हैं. इन महिलाओं ने बताया कि नोटबंदी के बाद से काम मिलना मुश्किल हो गया है. अगर काम मिलता है, तो छुट्टे नोट नहीं मिल रहे. दो हजार के नोट मिल भी जाये, तो उसका छुट्टा कराने में पूरा दिन निकल जाता है. सरकार को हम गरीबों की पीड़ा समझना चाहिए.
मेदिनीनगर
अब तो घर चलाना भी मुश्किल हो गया
मेदिनीनगर. नोटबंदी को 38 दिन हो गये, लेकिन सबिता देवी के खाते में पैसे नहीं आये. शुरुआती कुछ दिनों में तो काम चल गया, लेकिन अब परेशानी बरदाश्त से बाहर हो रही है. पलामू के हैदरनगर थाना क्षेत्र की कुकही गांव की रहनेवाली सबिता के पति योगेंद्र शर्मा बाहर काम करते हैं. सबिता का बैंक में खाता है, जिसमें प्रतिमाह योगेंद्र पैसा जमा करता था और सबिता बैंक जा कर पैसा निकाल कर परिवार की परवरिश करती थी, लेकिन अब यह काम आसान नहीं रह गया. कुकही गांव हैदरनगर प्रखंड मुख्यालय से लगभग पांच किलोमीटर दूर है. गांव की आबादी लगभग साढ़े तीन हजार है. इस गांव में अनूसूचित जाति व पिछड़ी जाति की बहुलता है. गांव के लोग बाहर जा कर काम करते हैं और वहीं से बैंक के माध्यम से पैसा भेजते हैं, लेकिन नोटबंदी के बाद न सिर्फ सबिता बल्कि कई लोग ऐसी ही परेशानी से जूझ रहे हैं. स्थिति यह है कि शुक्रवार को सबिता ने रोजमर्रा की जरूरत के सामान खरीदने के लिए मायके का सहारा लेना पड़ा.
लोहरदगा
इनके लिए तो नोटबंदी कोई मायने नहीं रखती
लोहरदगा. कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहां के लोगों के लिए नोटबंदी कोई मायने नहीं रखती है. लोहरदगा प्रखंड के हरमू पंचायत के नदिया गांव के रघुनाथ यादव ने बताया कि नोटबंदी से हम रोज कमाने-खानेवालों को कोई फर्क नहीं पड़ता है. नदिया गांव के अधिकांश लोग खेती बारी एवं मजदूरी कर अपना जीवन यापन करते हैं. अभी खेती का समय है और लोग धान की मिसनी में लगे हैं. नदिया गांव की 62 वर्षीय पति देवी का कहना है कि उनका बैंक में जनधन योजना के तहत 0 बैलेंस में खाता खोला गया है. नोटबंदी से उन्हें कोई लेना-देना नहीं है. उनका स्पष्ट कहना है कि ये बड़े लोगों का मामला है और सरकार ने कोई काम किया है तो वह अच्छा ही होगा. ये पूछने पर कि क्या वो एटीएम या पेटीएम का उपयोग करती हैं, तो उन्होंने कहा कि वो इस तरह का कोई काम नहीं करती हैं. नदिया गांव निवासी बेबी देवी का कहना है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए यदि नोटबंदी की गयी है तो निश्चित रूप से परेशानी भ्रष्ट लोगों को ही होगी. हरमू पंचायत के नदिया गांव निवासी रघुनाथ यादव का कहना है कि नोटबंदी के बाद उनके पास 500-500 रुपये के पांच नोट थे, जिसे अपने खाते में जमा करा दिया. अभी लोहरदगा के डीसी डाॅ भुवनेश प्रताप सिंह ने कैशलेस का प्रशिक्षण दिया है, तो अब एसबीआई बड्डी से किसी भी चीज का लेन-देन कर रहे हैं. लेकिन, सामनेवाले के पास जब इसकी व्यवस्था नहीं होती है, तो परेशानी होती है. नोटबंदी के बाद धान बेचने वालों को खासा नुकसान उठाना पड़ रहा है. चुंकि लोहरदगा में अभी तक सरकारी स्तर पर धान की खरीददारी नहीं शुरू हुई है और गांव में बिचौलिये नोट बंदी की बात कह 8-9 रुपये की दर से धान भोले भाले किसानों से खरीद रहे हैं. जबकि जो समझदार लोग हैं वे लोग धान क्रय केंद्र खुलने के इंतजार में हैं.
हटिया
ग्रामीणों के पास बैंक खाता नहीं, कैशलेस में परेशानी
हटिया. नोटबंदी के बाद कैशलेस के कारण ग्रामीण क्षेत्र के दुकानदारों की बिक्री काफी कम हो गयी है. ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी 50 प्रतिशत लोगों का बैंक में खाता नहीं है. जिनके बैंक खाते हैं, उनमें से अब भी कई लोग दूसरों से अपना फाॅर्म भरवाकर अपना पैसे निकालते हैं. सिलास सोय गांव में अपनी छोटी से गुमटी चलाते हैं. वह कहते हैं कि मैं रोज 500 से 700 का समान खरीद-बिक्री करता हूं. कैशलेस के बारे में मुझे पता भी नहीं है. लखी देवी भी अपने गांव में किराने की दुकान चलाती हैं. कैशलेस के बारे में पूछने पर कहती हैं : कैशलेस केके कहल जाला? जब से नोटबंदी के बाद से दुकानो नाहीं चलेला़ पुतरी देवी तुपुदाना बस्ती की रहनेवाली है. वह प्रतिदिन सब्जी बेच कर अपना घर चलाती है. कैशलेस के बारे में पूछने पर कहती है कि जब से सरकार नया-नया नियम लागू किया है तब से कमाना-खाना मुश्किल हो गया है़ कुम्बा टोली की रहनेवाली 60 वर्षीय बलमदीना गाड़ी का भी औने-पौने दाम में अपने सामान बेच कर घर चली जाती है.
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