रांची : पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन को लेकर मुख्यमंत्री रघुवर दास को पत्र लिखा है. पत्र में सबसे पहले उल्लेख किया है कि भगवान बिरसा मुंडा के वंशज इस विषय पर अपनी चिंता और विरोध प्रकट करने राज्यपाल महोदय से मिलने गये़ इससे मन व्यथित हो उठा़ मन में चल रहे अंतरद्वंद्व साझा करने का विचार जागृत हुआ़ उन्होंने लिखा है : इस भरोसे के साथ पत्र भेज रहा हूं कि मुझे अपना व झारखंड का शुभचिंतक समझ कर आप मेरी बातों पर गंभीरता से चिंतन करेंगे़.
उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखा है कि मेरे विचार से संशोधन इतने संवेदनशील और दूरगामी परिणामों वाले हैं कि उनके लागू होने से न केवल आदिवासी हितों की हानि होगी, बल्कि प्रदेश के डेमाग्राफी स्वरूप में ही आमूल परिवर्तन होने की प्रबल आशंका बन जायेगी़ यह राज्य आदिवासी बहुल होने के कारण संविधान में शेड्यूल पांच के राज्यों में शामिल किया गया है़ कई तरह के संवैधानिक सुरक्षा कवच प्रदान किये गये है़ं पूर्व मुख्यमंत्री ने लिखा है कि ऐसी आशंका है कि दुष्परिणाम इतना व्यापक और भयावह होगा कि झारखंड का स्वरूप ही बदल जायेगा़ आदिवासी और मूलवासी सिमटते चले जायेंगे़ आदिवासी लोग हाशिए पर चले जायेंगे और उनका विकास-समृद्धि तो दूर, उनका जीना दूभर हो जायेगा़ यह भारत के संविधान के प्रावधानों और सीएनटी व एसपीटी एक्ट की मूल भावना के भी प्रतिकूल है़.
पत्र में अर्जुन मुंडा ने मुख्यमंत्री से कहा है कि 2000 में झारखंड बनने के बाद प्रदेश की सरकारों ने अनेक कार्यों के लिए बिना किसी व्यवधान के जमीन अधिग्रहण की है़ सीएनटी एक्ट की धारा 50 और एसपीटी की धारा 53 में सरकार को जनोपयोगी कार्यों के लिए जमीन लेने का अधिकार प्राप्त है. तो फिर ऐसे प्रावधानों के रहने के बावजूद इस संशोधन की क्या आवश्यकता उठ खडी हुई़ ऐसी जल्दबाजी क्यो़ं हमारी पार्टी ने 2014 के चुनाव के समय जारी घोषणा पत्र में इन संशोधनों के बाबत कोई भी जिक्र नहीं किया था़ प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी जी ने भी अभी अक्तूबर के अंतिम सप्ताह में दिल्ली में आयोजित ऑल इंडिया ट्राइबल कार्निवल में काेने-कोने से आये आदिवासी भाई-बहनों के विकास और खुशहाली के लिए कार्य करने की अपनी प्रतिबद्धता का दृढ़ सकंल्प लिया था़.
अर्जुन मुंडा ने अपने पत्र में कहा है कि यदि सरकार आदिवासियों का भला और उनका विकास चाहती है, तो उनकी कठिनाइयों को अध्ययन कर उन्हें दूर करने उनके साथ खड़ी रह सकती है़ आज जमीन से जुड़ी आदिवासियों की मुख्य समस्याएं है़ं गृह निर्माण व अन्य कार्यों को लिए ऋण नहीं मिलता, थाना के अंतर्गत ही खरीद-बिक्री की पाबंदी आदि है़ इन समस्याओं का कैसे समाधान हो, इस पर सरकार को मंथन करना चाहिए़ सरकार को आदिवासियों से गैरकानूनी तरीके से छीनी गयी जमीन वापस दिलाने के लिए भी ईमानदार प्रयास करना चाहिए़ अपनी स्वथ्य नीतियों से उनका विश्वास जीतने का काम करना चाहिए न कि उनकी नाराजगी और संशय बढ़ाने का़ पत्र में अर्जुन मुंडा ने समझाने का प्रयास किया है कि कैसे सरकार के प्रति संशय हुआ़ .
उन्होंने लिखा है कि कई बातें एक के बाद एक होती गयीं, जिससे माहौल बिगड़ता गया और सरकार की नियत को शक ही निगाह से देखा जाने लगा़ सबसे पहली बात तो यह हुई कि पूर्ण बहुमत की सरकार होने के बावजूद सरकार ने संशोधन के लिए अध्यादेश का मार्ग चुना़ न तो इस संशोधन के लिए किसी तरह का कोई आग्रह किया गया था और ही संशोधन के अभाव में विकास को अवरुद्ध होने का कोई वाक्या सदन के पटल पर आया था़ विरोधी पार्टियां सदन के अंदर चर्चा की मांग करने लगी. विरोधी पार्टियों को बैठे-बिठाये मुद्दा मिल गया, जिसका भरपूर राजनीतिक लाभ उठाने में लगे है़ं.
पत्र में लिखा है : मुख्यमंत्री जी, जब विरोध बढ़ने लगा, तब आपके और सरकार की तरफ से जो बयान आये और विधेयक को बिल के रूप में लाकर जिस तरह से आनन-फानन में पास कराया गया, उसने भी भरोसा और विश्वास बढ़ाने की जगह शक की दीवार को ही मजबूत किया़ सदस्यों की असहमति के बावजूद उसे अनुमोदित करा कर सदन में बिना किसी बहस व चर्च के बिल तीन मिनट के अंदर पारित घोषित किया गया, वह सब सरकार की नियत पर सवाल खड़ा करता है़ आज आदिवासियों के मन में कई सवाल कौंध रहे है़ं क्या भगवान बिरसा के उलगुलान के बाद आजादी पूर्व अंग्रेजों द्वारा बनायी गयी सीएनटी एक्ट के तहत आदिवासी को जल, जंगल और जमीन पर मिले अधिकार व संरक्षण को अपने देश की सरकार ही उनसे छीन लेगी़ प्रश्न यह भी उठता है कि क्या सरकार ने जो संशोधन किये हैं, वे संविधानसंगत हैं और उनके प्रावधानों को ध्यान में रख किये गये है़ं या फिर संविधान की अवहेलना हुई और सरकार ने अपने लिए बेवजह मुसीबत मोल ले ली है़ .
पत्र के अंत में अर्जुन मुंडा ने मुख्यमंत्री से कहा : नये संशोधन से आदिवासियों के शोषण और विस्थापन में अप्रत्याशित बढ़ोतरी की प्रबल आशंका बनती है़ यदि ऐसा हुआ, तो वे अपने अधिकारों से वंचित होकर जीवनयापन के लिए अपनी मातृभूमि को छोड़ कर पलायन करने को मजबूर हो जायेंगे़ यह न केवल आपका नैतिक और संवैधानिक कर्तव्य है,बल्कि आपकी व्यक्तिगत जिम्मेवारी भी है कि आप आदिवासियों की पहली पंक्ति के संरक्षक बन उनके साथ खड़े रहे और यह सुनिश्चित करें कि झारखंड सरकार की नीतियों और कार्य संविधान सम्मत हो और केंद्र सरकार व प्रधानमंत्री के कथनों के अनुरूप़ खानापूर्ति करने टीएसी का लाभ उठाया गया.
पत्र में अर्जुन मुंडा ने कहा कि जिस तरह से खानापूर्ति करने के लिए टीएसी का लाभ उठाया गया और बिल काे तीन मिनट में पास कराया गया, उससे सरकार की नियत पर सवाल उठता है कि क्या सरकार आदिवासियों की जमीन छीनना चाहती है़ जहां ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल की सभा का विपक्ष के सदस्यों ने बहिष्कार किया था, वहीं सत्ता पक्ष के सरकार के सहयोगी एक सदस्य ने त्यागपत्र दे दिया़ संविधान में टीएसी की परिकल्पना एक स्वतंत्र संकाय के रूप में ही गयी है, जो विधायिका के नियंत्रण से बाहर रह कर दूरगामी आदिवासी हितों की रक्षा करे़