इन्हें दिल्ली अौर अन्य महानगरों में काम के लिए ले जाकर बेच देने की घटनाएं होती हैं. इस दौरान इनका शारीरिक अौर मानसिक शोषण होता है. वासवी किड़ो ने कहा कि हमलोग प्लेसमेंट एजेंसियों पर अंकुश लगाने की मांग कर रहे थे. पर बिल से इन प्लेसमेंट एजेंसियों को रेगुलराइज कर दिया जा रहा है. इससे आदिवासी बालिकाअों के बाहर ले जाने की घटनाअों में अौर वृद्धि होगी.
इनमें से कई एजेंसियां रजिस्टर्ड या बिना रजिस्टर्ड होती हैं. आज भी कई अादिवासी लड़कियां/महिलाअों को कोई अता-पता नहीं है. कई अपने घर लौटना चाहती हैं, लेकिन लौट नहीं पा रही हैं. यहां से गयीं लड़कियां व महिलाएं शरीर की परवाह किये बिना 15 से 16 घंटा काम करती हैं. कितनी लड़कियों व महिलाएं शारीरिक शोषण का शिकार हो रही हैं. सरकार द्वारा इस बिल को पास किये जाने से समस्या अौर बढ़ सकती हैं. इसलिए इस बिल को रोकना आवश्यक है.