प्रतिनिधियों ने राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा. इसमें कहा गया है कि सीएनटी-एसपीटी एक्ट में प्रस्तावित संशोधन एक्ट की मूल भावना के विपरीत है. अगर कृषि भूमि का नेचर बदला जायेगा, तो वह सीएनटी एक्ट के दायरे से बाहर हो जायेगा. जमीन की बिक्री गैर आदिवासियों को करना आसान हो जायेगा. बाद में पत्रकारों से बात करते हुए डॉ करमा उरांव ने कहा कि सरकार की हठधर्मिता से राज्य में असंतोष की स्थिति है.
आदिवासी संगठन अौर समूचा विपक्ष यहां तक कि अब सरकार के कुछ मंत्री भी सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन के पक्ष में नहीं हैं. इसके बाद भी अगर सरकार अड़ी रहती है, तो राज्य में अशांति अौर बढ़ेगी. देवकुमार धान ने कहा कि राज्य सरकार आदिवासी समुदाय को गुमराह कर रही है. यह झूठा प्रचार किया जा रहा है कि जमीन का मालिकाना हक नहीं बदलेगा. शिवा कच्छप ने कहा कि सरकार के द्वारा जबरन सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का प्रयास किया जा रहा है. राज्य की आदिवासी जनता इसे कभी स्वीकार नहीं करेगी.