रांची : जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) ने सीएनटी, एसपीटी एक्ट में राज्य सरकार द्वारा पूर्व में किये गये संशोधनों में परिवर्तन पर सहमति प्रदान की है. गुरुवार को हुई टीएसी की बैठक में सीएनटी एक्ट की धारा 49 में किये गये संशोधन से ‘आदि’ शब्द हटाने का फैसला किया गया. इसी वर्ष मई में राज्य सरकार ने धारा में परिवर्तन करते हुए उद्योग और खनन कार्यों के अलावा आधारभूत संरचना, रेल परियोजना, कॉलेज, ट्रांसमिशन लाइन आदि के लिए जमीन लेने का प्रावधान किया था.
क्या है प्रावधान : जमीन मालिक को जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार नहीं है.
मई, 2016 में हुआ संशाेधन : एक्ट के अंतर्गत आनेवाली जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार भी भू-स्वामी को मिलेगा.
टीएसी ने क्या किया : एक्ट के अंतर्गत आनेवाली जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार भू-स्वामी को मिलेगा, पर, एक्ट में यह स्पष्ट किया जायेगा कि जमीन की प्रकृति बदलने के बाद भी जमीन के मालिकाना हक का हस्तांतरण नहीं होगा. मालिकाना हक पूर्व की भांति रैयत का ही रहेगा.
क्या है प्रावधान : केवल उद्योग व खनन कार्यों के लिए जमीन का हस्तांतरण किया जा सकता है.
मई, 2016 में संशोधन :उद्योग व खनन के अलावा आधारभूत संरचना, रेल परियोजना, कॉलेज, ट्रांसमिशन लाइन के लिए भी जमीन ली जा सकेगी. जमीन का उपयोग पांच साल के अंदर नहीं करने पर धारा 49 के तहत ली गयी जमीन, जमीन मालिक को वापस कर दी जायेगी.
टीएसी ने किया बदलाव : उद्योग व खनन के अलावा िसर्फ सार्वजनिक व सरकारी कार्यों के लिए ही जमीन ली जा सकेगी. भू-हस्तांतरण के पूर्व ही सार्वजनिक व सरकारी कार्यों से संबंधित अधिसूचना जारी की जायेगी.
अब विधानसभा में आयेगा संशोधन विधेयक
जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) ने सीएनटी-एसपीटी एक्ट में प्रस्तावित संशोधन विधेयक को विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश करने पर सहमति प्रदान कर दी है. उल्लेखनीय है कि मई में राज्य सरकार द्वारा सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन के लिए अध्यादेश लाने का प्रयास हुआ था और इसका प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजा गया था.
रांची : गुरुवार को टीएसी की बैठक में संशोधन के मुद्दे पर हुई चर्चा के बाद संशोधन विधेयक को विधानसभा में पेश करने पर सहमति बनी. सरकार की ओर से विधेयक का प्रारूप कैबिनेट से पारित कराने के बाद उसे 17 से 25 नवंबर तक चलने वाले शीतकालीन सत्र में पेश किया जायेगा. विधानसभा से विधेयक पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति के बाद भेजा जायेगा. राष्ट्रपति की सहमति के बाद संशोधन से संबंधित अधिसूचना जारी की जायेगी.
राज्य सरकार की ओर से मई 2016 में राष्ट्रपति को भेजे गये संशोधन अध्यादेश प्रारूप का अब कोई महत्व नहीं रह जायेगा. क्योंकि, सरकार ने विधानसभा का शीतकालीन सत्र आहूत करने का फैसला कर लिया है. सत्र में संशोधन के मुद्दे को विधेयक के रूप में पेश किया जा सकता है, अध्यादेश जारी नहीं कराया जा सकता है.
बैठक में कार्मिक, प्रशासनिक विभाग की ओर से दो महत्वपूर्ण मुद्दे टीएसी की संपुष्टि के लिए पेश किये गये थे. टीएसी ने शिड्यूल एरिया में तृतीय व चतुर्थ वर्गीय पदों को 10 साल तक आरक्षित करने के सरकारी फैसले को संपुष्ट किया. इसके अलावा सौरिया पहाड़िया और माल पहाड़िया को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र निर्गत करने के फैसले को भी संपुष्ट किया गया.
एसएआर कोर्ट में होती रहेगी सुनवाई
सीएनटी एक्ट की धारा 71 ए की उपधारा-2 को समाप्त करने के बाद भी एसएआर की अदालतें चलेंगी. एक्ट में संशोधन के बाद भी एसएआर कोर्ट में आदिवासियों की जमीन वापसी से संबंधित मुकदमे दायर किये जायेंगे. मुकदमों के निबटारे के लिए छह माह का समय निर्धारित किया गया है. पहले जमीन वापसी से संबंधित मुकदमों के निबटारे के लिए छह माह से दो वर्ष तक का समय निर्धारित था.
अब तक किये गये बदलाव पर एक नजर
क्या है प्रावधान
सीएनटी की धारा 21 और एसपीटी की धारा 13 में जमीन मालिक को जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार नहीं है.
मई 2016 में किया गया संशोधन
सीएनटी और एसपीटी एक्ट के अंतर्गत आने वाली जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार भी भूस्वामी को मिलेगा.
टीएसी की बैठक में क्या परिवर्तन हुआ
सीएनटी और एसपीटी एक्ट के अंतर्गत आने वाली जमीन की प्रकृति बदलने का अधिकार भूस्वामी को मिलेगा, लेकिन एक्ट में यह स्पष्ट किया जायेगा कि जमीन की प्रकृति बदलने के बाद भी जमीन का मालिकाना हक नहीं बदलेगा. मालिकाना हक पूर्व की भांति रैयत का ही रहेगा.
क्या है प्रावधान
सीएनटी एक्ट की धारा 49 के तहत उपायुक्त की अनुमति से केवल उद्योग और खनन कार्यों के लिए जमीन का हस्तांतरण हो सकता है.
मई 2016 में हुआ संशोधन
उद्योग और खनन कार्यों के अलावा आधारभूत संरचना, रेल परियोजना, कॉलेज, ट्रांसमिशन लाइन आदि कार्यों के लिए भी जमीन ली जा सकेगी. जमीन का उपयोग पांच साल के अंदर नहीं करने पर जमीन मालिक को वापस कर दी जायेगी. साथ ही उसे दी गयी मुआवजा राशि भी वापस नहीं ली जायेगी.
टीएसी की बैठक में क्या परिवर्तन हुआ
उद्योग और खनन कार्यों के अलावा केवल सार्वजनिक और सरकारी कार्यों के लिए ही जमीन ली जा सकेगी. जमीन हस्तांतरण के पूर्व ही सार्वजनिक और सरकारी कार्यों से संबंधित अधिसूचना जारी होगी.
क्या है प्रावधान
सीएनटी एक्ट की धारा 71 ए की उपधारा-2 में मुआवजा देकर आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को हस्तांतरित करने का प्रावधान है.
मई 2016 में किया गया संशोधन
सीएनटी एक्ट की इस धारा को समाप्त कर दिया गया. इससे मुआवजे के आधार पर आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों काे हस्तांतरित नहीं होगी.
टीएसी की बैठक में क्या परिवर्तन हुआ
संशोधन पर किसी की आपत्ति नहीं. संशोधन यथावत रहेगा.
निजी स्वार्थ के लिए नहीं हो संशोधन का विरोध : फूलचंद
रांची: केंद्रीय सरना समिति की बैठक में सरकार की ओर से सीएनटी-एसपीटी एक्ट में किये जा रहे संशोधन व सरना-मसना स्थल की घेराबंदी के फैसले का समर्थन किया गया. साथ ही प्रभात खबर में बुधवार को प्रकाशित राज्य हित सबसे ऊपर, इससे राजनीति नहीं करें आलेख का भी समर्थन किया गया. समिति के सदस्यों ने कहा कि राज्य हित सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए.
बैठक की अध्यक्षता करते हुए फूलचंद तिर्की ने कहा कि सीएनटी-एसपीटी एक्ट में किये जा रहे संशोधन पूरी तरह से आदिवासियों के हित में है. कुछ लोग अपने राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वार्थपूर्ति के लिए इस संशोधन का विरोध कर रहे हैं. समाज में अभी कुछ लोग हैं, जो चाहते हैं कि आदिवासी समाज पिछड़ा ही रहे. इस बात का जवाब कोई नहीं देता कि 70 साल में 38 लाख घरों में ही बिजली क्यों पहुंची? क्या ऐसे लोग चाहते हैं कि बाकी के 30 लाख घरों में अगले 50 साल में बिजली पहुंचे. कहा जा रहा है कि संशोधन के बाद आदिवासियों की जमीन सरकार लूट लेगी. उद्योगपतियों को जमीन दे दी जायेगी. कोई ये बताये कि पिछले दो सालों में किस उद्योगपति या उद्योग को आदिवासियों की जमीन छीन कर दी गयी है. संशोधन में यह कहां लिखा गया है कि आदिवासियों की जमीन उद्योगों के लिए अधिग्रहण की जायेगी. विरोध सिर्फ विरोध के लिए होना चाहिए. संशोधन के बाद सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी चीजों पर तेजी से काम होगा. क्या आदिवासियों को स्कूल की जरूरत नहीं है. क्या हमें अस्पताल नहीं चाहिए? सिंचाई के लिए कैनाल नहीं चाहिए? आंगबाड़ी केंद्र क्या उद्योगपति आकर बनायेंगे. एक और बेतुकी बात की जा रही है कि आदिवासियों की जमीन पर मॉल, होटल आदि बनेंगे.
अगर शहर में रहनेवाले किसी आदिवासी के पास जमीन है. वह आर्थिक तौर पर सक्षम है, तो फिर क्यों नहीं वह मॉल बना सकता है. विकास विरोधी नेता ये कहना चाहते हैं कि जीइएल चर्च कॉम्प्लेक्स, रोस्पा टावर, केएफसी वाली बिल्डिंग, सेलिब्रेशन मैरेज हॉल आदि गलत बने हैं. संशोधन से स्पष्ट है कि सरकार कानून में छेड़छाड़ किये बिना इसका सिर्फ सरलीकरण कर रही है. इससे ऐसे लोगों के पेट में दर्द शुरू हो गया है, जो आदिवासी अस्मिता के नाम पर राजनीति दुकानदारी चला रहे हैं. संशोधन के बाद कंपनसेशन के आधार पर आदिवासियों की जमीन की खरीद-बिक्री पूरी तरह रुक जायेगी. यह एक बड़ी वजह है कि कुछ लोग ज्यादा परेशान हैं. जाति प्रमाण पत्र में सरना धर्म के उल्लेख का भी निर्णय इस सरकार ने लिया है, जो स्वागत योग्य है. पूर्व की सरकार ने इसे हटा दिया था. बैठक में रंजीत टोप्पो, बबलू मुंडा, मेघा उरांव, हांदु भगत, लक्ष्मी नारायण भगत, सुनील फकीरा कच्छप, आकाश उरांव, हेमंत कुजूर, शोभा कच्छप, नीरा टोप्पो, सुखदेव मुंडा आदि उपस्थित थे.
मालिकाना हक आदिवासियों का ही रहेगा : शिवशंकर उरांव
संशोधन में स्पष्ट है कि किसी भी परिस्थिति में रैयत का मालिकाना हक परिवर्तित नहीं होगा, पूर्व में यह स्पष्ट नहीं था
रांची. भाजपा विधायक सह टीएसी सदस्य शिवशंकर ने उरांव ने कहा कि संशोधन में स्पष्ट है कि किसी भी परिस्थिति में रैयत का मालिकाना हक परिवर्तित नहीं होगा. पूर्व में यह स्पष्ट नहीं था. टीएसी की बैठक में इसे स्पष्ट रूप से जोड़ दिया गया है. जमीन की प्रकृति कृषि से बदल कर गैर कृषि भूमि कर दी जाती है, तब भी सीएनटी-एसपीटी एक्ट का कानूनी दायरा उस भूमि पर रहेगा और उस जमीन पर रैयत का ही मालिकाना हक रहेगा. अब विरोध का कोई सवाल ही नहीं उठता. इसमें केवल आदिवासी ही नहीं, हरिजन व पिछड़ी जाति की भी भलाई है.
जीइएल चर्च कॉम्प्लेक्स व रोस्पा टावर रेगुलराइज हो सकेगा : रामकुमार
टीएसी सदस्य सह विधायक रामकुमार पाहन ने कहा कि पूर्व में कहा जा रहा था कि सरकार यह परिवर्तन उद्योगों को जमीन देने के लिए कर रही है, जबकि यह गलत है. कृषि से गैर कृषि करने में सबकी भलाई है. उदाहरण के तौर पर रांची की अधिकतर जमीन कृषि लैंड है. उस कृषि जमीन पर कई अवैध संरचना खड़ी हो चुकी है. जैसे जीइएल चर्च कॉम्प्लेक्स, रोस्पा टावर, केएफसी, पंचवटी कॉम्प्लेक्स आदि भवन खड़े हो चुके हैं, जिन्हें तोड़ना मुश्किल है. सरकार यदि एक्ट की मूल भावना को रखते हुए कृषि को गैर कृषि भूमि कर रही है, तो इसमें गलत क्या है.