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राज्य सरकार अब सुप्रीम कोर्ट में रखेगी अपना पक्ष
रांची : राज्य के पांचों विवि में अस्वीकृत पदों पर कार्य करते हुए सेवानिवृत्त कर्मचारियों को बकाया मिलने का मामला फिर लटक गया है. अब इस मामले में सरकार अपना पक्ष रखने सुप्रीम कोर्ट जायेगी. राज्यपाल सह कुलाधिपति द्रौपदी मुरमू सहित मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस मामले में विभागीय प्रस्ताव पर अपनी सैद्धांतिक सहमति दे […]
रांची : राज्य के पांचों विवि में अस्वीकृत पदों पर कार्य करते हुए सेवानिवृत्त कर्मचारियों को बकाया मिलने का मामला फिर लटक गया है. अब इस मामले में सरकार अपना पक्ष रखने सुप्रीम कोर्ट जायेगी. राज्यपाल सह कुलाधिपति द्रौपदी मुरमू सहित मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस मामले में विभागीय प्रस्ताव पर अपनी सैद्धांतिक सहमति दे दी है.
रांची विवि, विनोबा भावे विवि, सिदो-कान्हू मुरमू विवि, नीलांबर-पीतांबर विवि व कोल्हान विवि में लगभग 922 कर्मचारी हैं, जो 35 से 40 वर्ष सेवा करने के बाद सेवानिवृत्त हो गये.
इनमें रांची विवि में लगभग 120 कर्मचारी, कोल्हान विवि में लगभग 200 कर्मचारी, नीलांबर-पीतांबर विवि में लगभग 74 कर्मचारी, विनोबा भावे विवि में लगभग 350 कर्मचारी अौर सिदो-कान्हू मुरमू विवि में लगभग 178 कर्मचारी शामिल हैं. सरकार ने इन कर्मचारियों को सभी लाभ के भुगतान में लगभग एक सौ करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान रखा है. इसे देखते हुए ही राज्य सरकार ने अस्वीकृत पद पर नियुक्त कर्मचारियों को मामले में कड़ा रूख अपनाते हुए नया वेतनमान निर्धारण करने से साफ इंकार करते हुए बकाये के भुगतान पर भी रोक लगा दी है.
सरकार ने विवि के कुलपति को पत्र भेज कर स्पष्ट रूप से कहा है कि एेसे कर्मचारियों को किसी भी हाल में बकाया का भुगतान नहीं किया जाना है. इधर, कर्मचारी इस फैसले के खिलाफ झारखंड उच्च न्यायालय गये. सिंगल बेंच में फैसला कर्मचारियों के हित में गया. इसके बाद डबल बेंच में भी फैसला कर्मचारियों के हित में गया. न्यायालय के मानना था कि जब कर्मचारियों ने 35 से 40 वर्ष तक काम करा लिया है, तो उन्हें उनका हक मिलना चाहिए.
विवि या सरकार ने पहले इसे क्यों नहीं देखा. न्यायालय के आदेश के आलोक में सरकार एक बार फिर अपना पक्ष रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेने का निर्णय लिया है. इस स्थिति में इन कर्मचारियों को बकाया देने का मामला एक बार फिर लटक गया है.
राज्य के विवि में वर्ष 1980 से 1990 के बीच प्राचार्य/कुलपति द्वारा जरूरत के आधार पर कर्मचारियों की नियुक्ति कर दी गयी. कालांतर में ये कर्मचारी नियमित कर्मचारियों की तरह की सभी लाभ प्राप्त करने लगे. कई कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गये, तो कइयों का निधन हो गया. झारखंड बनने के बाद सरकार की नींद खुली, तो इसकी जांच करायी. इनमें से कई कर्मचारियों को चौथा वेतनमान का लाभ मिला है, लेकिन सरकार ने आगे वेतन निर्धारण करने के साथ-साथ अस्वीकृत पद पर कार्य किये कर्मचारियों के सभी बकाया पर भी रोक लगा दी है.
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