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फंसी 1100 मेगावाट की सोलर परियोजना
विडंबना. नहीं हो सका पावर परचेज एग्रीमेंट झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड द्वारा पावर परचेज एग्रीमेंट से इनकार किये जाने की वजह से देश की दूसरी सबसे बड़ी सोलर पावर प्लांट परियोजना फंस गयी है. इसके साथ-साथ आठ कंपनियों की कुल 1101 मेगावाट की परियोजना भी लंबित है. सुनील चौधरी रांची : रिन्यू सोलर पावर […]
विडंबना. नहीं हो सका पावर परचेज एग्रीमेंट
झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड द्वारा पावर परचेज एग्रीमेंट से इनकार किये जाने की वजह से देश की दूसरी सबसे बड़ी सोलर पावर प्लांट परियोजना फंस गयी है. इसके साथ-साथ आठ कंपनियों की कुल 1101 मेगावाट की परियोजना भी लंबित है.
सुनील चौधरी
रांची : रिन्यू सोलर पावर द्वारा झारखंड में 522 मेगावाट का सोलर पावर प्लांट लगाया जाना है, जो देश की दूसरी सबसे बड़ी सौर ऊर्जा परियोजना कही जा रही है. वहीं, सरकार द्वारा अबतक निर्णय न लिये जाने की वजह से कंपनियां भी आगे बढ़ने से कतरा रही हैं. कहीं भी निवेश के लिए कंपनियों द्वारा पहल नहीं की गयी है.
क्या है मामला
जेरेडा द्वारा जनवरी 2016 में 1200 मेगावाट की सोलर परियोजना स्थापित करने के लिए निविदा निकाली गयी थी, जिसमें कंपनियों से दर की मांग की गयी थी. इसमें आठ कंपनियों का चयन उनके द्वारा दी गयी न्यूनतम दर के आधार पर किया गया. इन कंपनियों का चयन 1101 मेगावाट के लिए किया गया. इसमें अडानी व रिन्यू पावर जैसी कंपनियों भी शामिल हैं.
झारखंड सरकार ने निविदा के पूर्व प्रावधान कर दिया था कि झारखंड में 1200 मेगावाट की सोलर परियोजना स्थापित होने पर इससे उत्पादित सारी बिजली झारखंड सरकार खरीदेगी. कैबिनेट से भी इसका प्रावधान किया गया. इसके बाद जेरेडा द्वारा निविदा निकाली गयी.
निविदा की शर्तों के अनुरूप लेटर अॉफ इंटेंट(एलओआइ) देने के एक माह बाद ही झारखंड बिजली वितरण निगम को पावर परचेज एग्रीमेंट(पीपीए) पर साइन करना था. 23 मई 2016 को जेरेडा द्वारा चयनित अाठों कंपनियों को एलओआइ निर्गत कर दिया गया, पर पीपीए लेकर मामला फंस गया. झारखंड बिजली वितरण निगम द्वारा कहा जा रहा है कि नियमत: एक प्रतिशत बिजली ही सौर ऊर्जा से लेनी है. यदि इससे अधिक लेना है, तो इसकी भरपाई कौन करेगा. निगम अभी 2.50 रुपये से लेकर चार रुपये प्रति यूनिट तक बिजली खरीदता है. सोलर पावर से उत्पादित बिजली की औसतन दर 5.36 रुपये प्रति यूनिट पड़ती है. ऐसे में निगम को भारी घाटा उठाना पड़ेगा. निगम द्वारा सरकार से पूछा गया है कि भारी घाटे में यदि निगम बिजली खरीदता है, तो फिर इसकी भरपाई कैसे होगी.
सौर ऊर्जा से उत्पादित बिजली लेने पर निगम को सौ से सवा सौ करोड़ का नुकसान उठाना पड़ सकता है. निगम द्वारा होनेवाले घाटे की भरपाई की मांग सरकार से की गयी है. यानी निगम द्वारा 125 करोड़ रुपये रिसोर्स गैप के रूप में मांगी गयी है. ऊर्जा विभाग द्वारा इससे संबंधित प्रस्ताव बनाकर वित्त विभाग के पास भेज दिया गया है. वित्त विभाग से मंजूरी मिलने के बाद ही अब बिजली वितरण निगम पीपीए करेगा.
एक कंपनी के अधिकारी ने बताया कि सौर ऊर्जा में भारी निवेश होता है, पर इससे प्रदूषण नहीं होता. यह ग्रीन एनर्जी है. यदि बिजली खरीदने की ही गारंटी नहीं होगी, तो कोई भी कंपनी कैसे बड़ी रकम निवेश कर सकती है. यही वजह है कि अभी तक कंपनियों ने अपने काम को आगे नहीं बढ़ाया है. यह सरकार का मसला है कि शत प्रतिशत बिजली खरीदने की शर्त रखी गयी थी. इसी के आधार पर कंपनियां निवेश के लिए यहां आयी हैं.
क्या कहते हैं वितरण निगम के एमडी
झारखंड बिजली वितरण निगम के एमडी राहुल पुरवार ने कहा कि अभी जितनी बिजली की जरूरत है, उतनी बिजली निगम के पास है. सौर ऊर्जा से एक प्रतिशत बिजली लेने की बाध्यता है.
निगम इसके लिए तैयार है, पर सारी बिजली यदि निगम खरीदेगा, तो फिर इसे सरेंडर करना पड़ेगा. तब भारी घाटा होगा, क्योंकि सौर ऊर्जा की दर ऊंची है. यह सरकार और जेरेडा के बीच का मामला है. सरकार इस पर विचार कर रही है. जैसे ही कोई समाधान निकलता है निगम पीपीए कर लेगा.
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