रांची : डॉ व्याख्या मिश्र की कविता : रात का सफर है, पर चांद हमसे जलता है. बादलों में छुप-छुप कर धीरे से निकलता है. हम तो गम के मारे हैं. जायें तो जायें कहां, उनकी बेवफाई से दम मेरा निकलता है…
ने श्रोताओं के दिल को छू लिया. डॉ मिश्र रविवार को सीएमपीडीआइ के मयूरी प्रेक्षागृह में आयोजित कवि सम्मेलन में सरस्वती वंदना पेश करने के बाद कविता पेश कर रही थीं. इसका आयोजन राजभाषा माह के मौके पर किया गया. इसमें देश के कोने-कोने से आये हास्य कवियों ने लोगों का खूब मनोरंजन किया. मुंबई के मनोज मद्रासी ने सुनाया : धन दौलत तो साथ में घड़ी-दो-घड़ी होती है. जिस घर में मां–बांप होते हैं, वह जगह जन्नत से बड़ी होती है. फिल्मी गीतकार दुर्गेश दुबे की कविता: जंगली हो गए अब समाजी नहीं, हारना चाहते कोई बाजी नहीं. भाई तो चाहते हैं सभी राम से, पर भरत बनने को कोई राजी नहीं… लोगों के दिल को छू गयी. कानपुर के हेमंत पांडेय ने वर्तमान व्यवस्था को अपनी कविता से पेश किया. उन्होंने सुनाया : जो देश के दर्द और नारों में खड़े हैं, हम जानते हैं किसके इशारों में खड़े हैं. नेताओं के पुतले जो दिन-रात फूंकते, अब वो भी टिकट के लिये कतारों में खड़े हैं.
कटनी के कवि मनोहर मनोज ने सुनाया : डॉक्टर होकर आप कैसी बातें करते हैं. इस देश में लोग जहर से नहीं दवाइयों से मरते हैं… इसके माध्यम से उन्होंने वर्तमान व्यवस्था पर चोट की. लखनऊ के सूर्य कुमार पांडेय सुनाया : गलत फहमियां हैं जब, गलतियां गिनाना क्या? उनसे गल भी क्या करनी, उनका है ठिकाना क्या? उस गलती में जाना क्या, उस गली से पाना क्या?
जो गले नहीं मिलते, उनसे दिल मिलाना क्या? दिल्ली से आये व्यंग्य कवि गोविंद व्यास ने कहा: घोड़ा घास से यारी करके क्या खायेगा, बुद्धिजीवी व्यवस्था का विरोध करके क्या जायेगा.. प्रस्तुत कर श्रोताओं से खूब वाहवाही लूटी. मंच का संचालन कुमार ब्रजेंद्र ने किया. इससे पूर्व इसका उदघाटन सीएमपीडीआइ के सीएमडी एस सरन ने किया.
कवि सम्मेलन का आनंद मेकन के सीएमडी एके त्यागी, आइएएस सुखदेव सिंह, आइपीएस आरके मल्लिक, निदेशक वीके सिन्हा, विनय दयाल, एके चक्रवर्ती, सीसीएल के सीवीओ अरविंद प्रसाद, कस्तुरी महिला सभा की मीता सरन, मंजूसा सिन्हा, डॉ ज्योति दयाल, अलकनंदा चक्रवर्ती आदि ने भी लिया.