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वर्तमान सिस्टम पर मेरे को तो भरोसा नहीं!
झारखंड में बिजली व्यवस्था – किसलय झारखंड में विकास को लेकर बहस गति पकड़ रही है. राज्य हित में अच्छा लक्षण है. सरकार के मुखिया और आला नेता जहां विकास के दावे ठोंक रहे हैं, नयी-नयी घोषणाएं कर रहे हैं, वहीं उन घोषणाओं दावों के विभन्नि पहलुओं पर बहस जारी है. विपक्षी जहां मीन मेख […]
झारखंड में बिजली व्यवस्था
– किसलय
झारखंड में विकास को लेकर बहस गति पकड़ रही है. राज्य हित में अच्छा लक्षण है. सरकार के मुखिया और आला नेता जहां विकास के दावे ठोंक रहे हैं, नयी-नयी घोषणाएं कर रहे हैं, वहीं उन घोषणाओं दावों के विभन्नि पहलुओं पर बहस जारी है. विपक्षी जहां मीन मेख निकाल रहे हैं, दावों घोषणाओं को खोखला साबित करने पर तुले हैं, वहीं समर्थक इसे क्रांतिकारी सुधार के तमगे भी दे रहे हैं.
कम ही लोग हैं, जो इन सवालों पर ठोंक बजा कर अपनी बातें रख रहे हैं. जाहिर उनकी बातों से सरकारी तंत्र को मार्गदर्शन मिलेगा, बशर्ते वह उन्हें साकारात्मक रूप में लें. चंद रोज पहले हमने झारखंड के विकास के पहलुओं पर बातचीत की नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य महेश पोद्दार से. पेशे से इंजीनियर और इंडस्ट्रियलिस्ट महेश पोद्दार का जन्म गुमला में हुआ. मेकैनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल करके उन्होंने स्वरोजगार के लिए झारखंड को ही चुना. जाहिर है, प्रदेश के शासन -प्रशासन से उनका वास्ता पड़ता रहा है. श्री पोद्दार में हमेशा झारखंड को लेकर कसक रही. एक बुद्धिजीवी के तौर पर अखबार व मीडिया के साथ उनके लंबे रिश्ते रहे.
बाद में उन्होंने भाजपा ज्वायन कर लिया. पिछले डेढ़ दशक से भाजपा के प्रदेश कोषाध्यक्ष के रूप में भी वे अपनी सेवा दे रहे हैं. इन दिनों उनका बयान कई स्थानीय अखबारों में सुर्खियां बन रहा है, खासकर केंद्रीय ऊर्जा मंत्री के ट्विट पर उनके रिट्विट, जिसमें सरप्लस बिजली उपलब्धता और सस्ती बिजली दर की उपलब्धता की बात कही गयी. उस पर बिजली विभाग के शीर्ष अधिकारी ने खंडन किया. इस प्रकरण से पहले, कुछ इसी मसले पर सांसद श्री पोद्दार ने हफ्ते भर पहले (03 सितंबर को) किये गये इस साक्षात्कार में झारखंड बिजली विभाग की बदहाली पर अपनी राय दी थी. इसके अलावा कुछ अन्य विकासोन्मुख मसलों पर राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार के साथ यह लंबी बातचीत पढ़ियेः
आप सांसद बन गए, अच्छा लगा. आज यह बातचीत मैं अपने पेशे से ही शुरू करता हूं.. मैं देखता रहा हूं, प्रेस और मीडिया के बंधुओं के बीच दशकों से आपका उठना बैठना रहा. क्या राजनीति में आने के लिए इन संबंधों का भी कोई लाभ मिला आपको?
प्रचार पाना एक मानवीय लक्षण है, लोभ है. कुछ लोग इसके लिए विशेष प्रयत्न करते हैं, कुछ लोग इसे सामान्य प्रक्रिया में लेते हैं और कुछ लोग कर्म तो बहुत करते हैं, परंतु उन्हें प्रचार नहीं मिलता. मैं कहूंगा कि मैं इस मामले में बीच वाली कैटेगरी में हूं. मेरा थोड़ा बहुत प्रचार हो जाता था.
मेरे कुछ लेख, कुछ बातें लोगों को समझ में आती थीं, उसे समाचार माध्यमों, मीडिया में स्थान मिल जाया करता था. आइ वॉज विजिबिली रिकॉग्नाइज्ड बाइ मेनी पीपुल! ..और उसके लिए कभी मैंने अतिरक्ति प्रयास नहीं किया। ..और फ्रैंकली स्पीकिंग..
मीडिया में मेरे बहुत अच्छे मित्र भी हैं, उनमें से कई काफी सीनियर भी हैं.. लेकिन कभी भी न मैंने इच्छा जाहिर की.. सहजता से जो कुछ होता गया, होता गया! जो मिला उससे मैं खुश हूं. हां, इतना मैं कहूंगा कि मीडिया में मेरे खिलाफ.. (हंसते हुए) या तो उन्होंने कुछ ढूंढ़ा नहीं, या उनको मिला नहीं! ..मेरे खिलाफ मीडिया में कोई नेगेटिव चीज नहीं आयी. इस मामले में मैं अपने को लकी मानता हूं. झूठी सच्ची, कोई चरत्रि हनन जैसी बात मेरे साथ नहीं हुई. …अब जहां तक राजनीति की बात है.. मैं मानता हूं कि पॉलिटक्सि भी समाज का अभन्नि अंग है. चूंकि हमारी सारी शासन व्यवस्था उसी से चलती है.
सोसाइटी की प्रायरिटीज उसी से रेगुलेट होती है. लोकतंत्र में जनता की ख्वाहिशें इस व्यवस्था के तहत आकार लेती हैं. और आप जब उसका पार्ट बन जाते हैं, तो अच्छा लगता है कि आप भी कुछ कंट्रीब्यूट कर सकते हैं सोसायटी के लिए. इसी भावना से मैं पार्टी (भाजपा) के साथ जुड़ा था. पार्टी ने मेरी क्षमता के अनुसार एक काम (कोषाध्यक्ष का पद) मुझे सौंपा.. मैं समझता हूं कि उनकी अपेक्षा के अनुरूप मैंने जरूर उन्हें संतुष्ट किया होगा, तभी तो उन्होंने 12-14 साल तक यह जिम्मेवारी दे रखी थी.
ऐसा देखा गया कि आप हमेशा गुमनामी में काम करते रहे और आज भाजपा ने आपको संसद पहुंचा दिया..? आखिर राज क्या है?
आपको याद होगा, 2004 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक रांची में हुई थी, जिसमें वाजपेयी जी, आडवाणी जी सरीखे बड़े नेता शामिल हुए थे. रांची और झारखंड के लिए वाकई वह एक बहुत बड़ा आयोजन था. सभास्थल की सारी जिम्मेवारी मुझे दी गयी थी, कोषाध्यक्ष भी था मैं. मैंने पार्टी निर्देशाें का पालन करते हुए अपनी जिम्मेवारी निभायी.
वह कार्यक्रम बड़ी सफलता से संपन्न हो गया. काफी सराहना मिली मुझे. उसी दौरान मैंने बहुत कुछ सीखा. और तब से वही मेरी कार्यप्रणाली बन गयी ..कि कैसे, पार्टी के अनुशासन के अनुसार गोपनीयता मेंटेन करते हुए गुमनामी में भी अच्छा काम करके सराहना मिलती है. उसके बाद बहुत सारे अवसर आये, जब मैंने उन्हीं नियमों का पालन करते हुए कार्यों को अंजाम दिया, और सफलता मिलती रही.
आप पिछले तीन चार दशकों से इस इलाके को, झारखंड को, नजदीक से देखते रहे हैं. एक बुद्धिजीवी के रूप में झारखंड हित में आपके विचार भी प्रेस मीडिया में कई बार आये. यहां के विकास को लेकर कई आयामों पर आप चर्चा करते रहे हैं।. अब आप राज्यसभा सांसद हैं. किन आयामों पर आप केंद्रित होंगे, आपकी प्रायरिटीज क्या होंगी?
मुझे लगता है कि हमारी इन्फ्रा स्ट्रक्चर.. और उसमें भी सबसे पहले बिजली मेरी प्राथमिकता है. बिजली ही क्यूं?.. क्योंकि बिजली की समस्या आज के दिन में सॉल्व करना (हल करना) सबसे आसान है. यहां मैं चर्चा करूंगा देश के ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल जी की.. साथ ही मैं बताता चलूं कि गोयल जी पार्टी में केंद्रीय कोषाध्यक्ष हैं और मैं राज्य में कोषाध्यक्ष हूं.. इस कारण से हमारा उनका इंटरैक्शन रहता है.. बिजली मंत्री बनने के कुछ हफ्तों बाद मेरी उनसे मुलाकात हुई थी.. उन्होंनेकहा था मैं एक साल के अंदर देश में बिजली सरप्लस कर दूंगा. और एक साल के अंदर उन्होंने कर दिखाया.. सरप्लस बिजली.
इसका मतलब यह हुआ कि कुछ छोटी मोटी समस्याएं थीं.. और, कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने मिल जुल कर इस समस्या को विकराल बताये रखा था. मुझे बोलने में कोई हिचक नहीं कि इससे हमने अपने कई पीढ़ियों को बर्बाद कर दिया. हजार, दो हजार लोगों के कारण हमारी एक दो पीढ़ी बरबाद हो गयी, जिसमें एंटरप्रेन्याेर्स भी हैं, छात्र भी हैं, गृहिणियां भी हैं.. सभी लोग हैं. यह अक्षम्य अपराध हुआ है! ..जबकि बहुत सहजता से और तुरंत इस समस्या को दूर किया जा सकता है. आज भी बड़ी पीड़ा होती है..
अभी जयन्त सिन्हा जी हजारीबाग में बैठक कर रहे थे..
उसमें लोगों ने कहा कि 16 घंटे, 18 घंटे बिजली नहीं आती है.. यह बहुत पीड़ा का विषय है! ..हमारे राजनेताओं को शायद इस बात का एहसास नहीं है.. हो सकता है, उनको जो आंकड़े दिये जा रहे हैं, वह भ्रामक हों ..मैं तो इतना कह सकता हूं कि आजतक.. 2000 के पहले भी और उसके बाद भी, करीब 40 वर्षों से मैं बड़ा बिजली उपभोक्ता रहा हूं. मैंने बहुत सारे चेयरमैन (झारखंड विद्यत विभाग के) देखे हैं.. जो आता है, लंबी चौड़ी बात करता है. उसको भी मालूम है, कुछ होनेवाला नहीं है. हजार दो हजार करोड़ रुपया खर्च हो जाता है, वह चला जाता है. फिर दूसरा आता है, फिर तीसरा आता है.. यही सिलसिला चल रहा है.
आज क्या स्थिति है राज्य में बिजली की?
..आज भी मैं कोई बदलाव नहीं देख रहा हूं. पैसे हम (सरकार) खर्च कर रहे हैं, लेकिन बिजली कब मिलेगी, कितनी मिलेगी, क्वालिटी बिजली का क्या होगा.. इसकी कोई एकाउंटेबिलिटी होगी या नहीं होगी..
आप क्या करना चाहेंगे इस मुद्दे पर?
इसका एकमात्र समाधान मैं देख रहा हूं.. जो इसी राज्य में कहीं कहीं हो रहा है.. सफलतापूर्वक एक दो क्षेत्र में हो रहा है.. इट इज नॉट ए बिग साइंस.. आपको वितरण प्रणाली को सुधारना होगा. निजी क्षेत्र में बिजली का जो उत्पादन हो रहा है, वह अपने आप में सरप्लस है.
पीयूष गोयल जी रोज ट्विट करते हैं.. कि दो हजार पांच हजार मेगावाट.. दो रुपये, या 10-20 पैसे ऊपर नीचे, प्रति यूनिट बिजली उपलब्ध है. …तो बिजली की स्थिति यह है कि दो रुपये से कम में उपलब्ध है. ..तो जो भी समस्या है,डिस्ट्रीब्यूशन की है!.. और इस सिस्टम में जिस तंत्र को लेकर आप चल रहे हैं, वह सक्षम नहीं है, लेकिन आप पूरी तरह इन्हीं के भरोसे हैं..और 10-20 हजार करोड़ रुपये ये खर्च भी कर रहे हैं. ..अगर यह सफल नहीं हुआ, समय तो बीत जाएगा! चुनाव सामने आ जाएगा.. मोदी जी का कहना है हर घर में ट्वेंटी फोर सेवेन पावर सप्लाई.. यह 2019 तक कैसे पूरा होगा! ..इस सस्टिम पर मेरे को तो भरोसा नहीं है!.. और इसके लिए मैं खुली बहस करने को तैयार हूं!
क्या है ठोस समाधान?
प्राइवेटाइज कीजिए!.. सब जगह हो रहा है.. वहां कम से कम यह होगा कि चार एजेंसी समानांतर तौर पर चार जगह काम करेगी, बीस शहरों में काम करेगी.
लेकिन झारखंड तो प्राइवेटाइजेशन की ओर बढ़ चुका था..?
हां कुछ बात बढ़ी थी.. देश की कुछ अच्छी कंपनियों ने काम लिया था.. उन्होंने यहां पर निवेश भी किया था. उन्होंने पूरी योजना बना ली थी, छह महीने में रिजल्ट दिखने लग जाता. इसी बीच सरकार बदल गयी.. अचानक उस सरकार को समझ में आया.. नहीं… नहीं, यह तो घाटा हो रहा है!
..उन्होंने सौदे रद्द कर दिये. मामला कोर्ट में चला गया, लेकिन प्रश्न यह है कि जिन लोगों ने कांट्रैक्ट किया था, अगर उन्होंने गलती की थी.. बेईमानी की थी.. तो उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई? ..आज कोई अच्छा काम करे, और दूसरा आकर कहे कि यह गड़बड़ है, इसको बंद करो! ..चलिये बंद कर दीजिए, लेकिन जो गड़बड़ किया, उसके खिलाफ कार्रवाई तो कीजिए! ..तभी तो पता चलेगा कि उसने गड़बड़ किया या नहीं किया! ..आपके निर्णय को कौन आंकेगा.. आपने जो सौदा रद्द किया.. सही है या गलत है, यह तो कोर्ट में आते आते 10 साल लग जाएगा!.. यही सब गलत हुआ है. और मुझे लगता है कि यह इस राज्य के साथ अन्याय हुआ है.
यानी आपको लगता है कि एक बार फिर से, नये सिरे से यहां प्राइवेटाइजेशन की दिशा में काम शुरू किया जाना चाहिए?
बिलकुल!.. और मुझे विश्वास है कि इस सरकार को, जब चैलेंज सामने दिखेगा कि अब समय नहीं है, तो ये करेंगे. निर्णय लेने में इनको देरी नहीं लगेगी. अब चूंकि झारखंड के नेतृत्व पर आर्थिक जगत को इतना भरोसा हो गया है कि इन्वेस्टर लोग यहां आने के लिए तैयार हैं.
बस उनको बताना है कि मैं निजी क्षेत्र के माध्यम से बिजली वितरण में निवेश चाहता हूं!.. वो करेंगे. और मैं समझता हूं कि बिजली के क्षेत्र में अगर पूरी तरह सक्षम हो गये, तो बहुत सारे अन्य क्षेत्र में प्रगति के रास्ते अपने आप खुल जाएंगे.
– साक्षात्कारकर्ता किसलय रांची से प्रकाशित साप्ताहिक समाचारपत्र न्यूज विंग के संपादक हैं.
स्मार्ट सिटी केवल सरकारी कॉलोनी बन कर न रह जाए
इसके बाद आप किस क्षेत्र को प्राथमिकता देना चाहते हैं?
दूसरा क्षेत्र है अरबन इन्फ्रास्ट्रक्चर, देश के सभी प्रदेश राजधानियों में रांची.. और झारखंड के धनबाद को तो देश का सबसे गंदा शहर घोषित किया गया है ..ये जो चीजें हैं, अच्छी नहीं हैं.
शहर अच्छा होता है, तो लोग बसने आते हैं.. व्यवसाय करते हैं, पूंजी लाते हैं, टैलेंट लाते हैं और बहुत कुछ बेहतर होता है, लेकिन यहां यह नहीं हो रहा है!.. जितनी तेजी से होना चाहिए था, नहीं हो रहा है. सरकार के लोग पूरी कोशिश कर रहे हैं, नेतृत्व की कोई कमी नहीं है, लेकिन इतनी देरी हो गयी और समस्याएं इतनी जटिल हो गयी हैं.. आखिर इसका सोल्यूशन क्या है? ..मेरी प्रायरिटी होगी.. और मेरी इच्छा है कि हमलोग एक अच्छा शहर दें. जैसे अभी मुख्यमंत्री जी ने स्मार्ट सिटी की बात की.. वह स्मार्ट सिटी, बैक्ड विथ रोजगार के साधन.. स्मार्ट सिटी केवल सरकारी कॉलोनी नहीं बननी चाहिए. स्मार्ट सिटी में सरकारी जगह कम से कम होनी चाहिए. अधिकांश जगह ऐसी होनी चाहिए, जहां आर्थिक गतिविधियां हों, लोग कमायें, वहीं पर रहें और वहीं पर खर्च करें. स्मार्ट सिटी की मूल अवधारणा यही है।
लेकिन स्मार्ट सिटी तो एक खास भौगोलिक क्षेत्र में बनाया जाएगा. आपने जो बात की रांची शहर की, धनबाद की या जमशेदपुर बोकारो आदि जो शहर हैं, उनका का होगा?
देखिये, स्मार्ट सिटी एक मॉडल होगा, जिसे देख कर बाकी शहरों के लोगों को प्रेरणा मिले. अगर स्मार्ट सिटी में कहीं फालतू कागज का टुकड़ा गिरा हुआ नहीं मिलता है, तो बाकी लोग भी अपने घरों के बाहर कागज के टुकड़े फेंकने में संकोच करेंगे. वह स्मार्ट सिटी एक लैंडमार्क होगा, आदर्श होगा. हालांकि, इस दिशा में सरकार प्रयास कर रही है कि बाकी शहरों का विकास निरंतर हो.
उसी दिशा में ड्रेनेज सिस्टम, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की बातें शुरू हुई हैं. यह अलग बात है कि इसे धरातल पर आकार लेने में जो समय लग रहा है, वह मेरी अपेक्षा से कम है. हालांकि इस दिशा में आ रही चुनौतियों से मैं बहुत वाकिफ नहीं हूं. जैसे, जमीन अधग्रिहण एक बड़ी चुनौती है..
क्या है झारखंडियत !
आपकी तीसरी प्राथमिकता क्या होगी?
तीसरा है.. झारखंड को बने हुए सोलह साल हो गये, लेकिन झारखंडियत की पहचान अभी तक हम नहीं बना पाये. क्या है झारखंड?.. अभी भी हम उलझे हुए हैं कि यहां का बाशिंदा है या नहीं? हमको नौकरी मिलेगी या नहीं मिलेगी? ..देखिये, आजीविका समाधान की दिशा में सरकारी नौकरी बहुत छोटा सा अंश है. बाकी रोजगार के बड़े बड़े अवसर हैं. मुझे तो आश्चर्य होता है कि जो लोग आदिवासियत की बात करते हैं, वे प्रश्न तो खड़ा करते हैं, लेकिन उसका उत्तर स्पष्ट रूप से नहीं दे पाते. उन्हें सरकारी नौकरी चाहिए, लेकिन उसके लिए सरकार के पास पैसा कहां से आयेगा, उसका जवाब उनके पास नहीं है. उन्हें रोजगार चाहिए, लेकिन उसके लिए जमीन कौन देगा, इसका जवाब उनके पास नहीं होता.
सिंचाई के लिए पानी चाहिए, लेकिन बांध नहीं बनना चाहिए! ..देखिये, भड़काना बहुत आसान है, लेकिन एक समुचित समाधान के साथ बातें रखना अधिक कारगर होगा. कहीं मैंने पढ़ा था.. दयामनी बारला जी (सामाजिक कार्यकर्ता व आदिवासी जमीन आंदोलनकारी) की कही कुछ -कुछ बातें थीं.. मुझे तो आश्चर्य होता है कि इतनी महत्वपूर्ण बातें जो होती हैं, शहर के किसी खास रोड पर ही क्यों होती हैं!.. वहीं के सभागारों में क्यों होती हैं?.. टाउनहॉल में क्यों नहीं होती हैं? पब्लिक में क्यों नहीं होती है? यह सब तो इन-हाउस जैसा हो जाता है! और वहां दूसरे लोग क्यों नहीं जाते हैं? ..उन्हें यह सब करने की बजाय सोल्यूशन के साथ सामने आना चाहिए, यह करना चाहिए.. यह नहीं करना चाहिए!
इसके बाद आपकी प्राथमिकता..?
इसके बाद मैं कहूंगा.. कोयला और परंपरागत बिजली उत्पादन का महत्व कम होता जाएगा. आज के दिन में सोलर पावर के जो टेंडर हो रहे हैं, वह करीब पांच रुपये प्रति यूनिट के आसपास हैं.
अमेरिकी सरकार ने यहां अपने एंबेसी में एक विशेषज्ञ को नियुक्त किया है, जो कोशिश करेगा कि इंडिया में कोयले का उतना ही उपयोग हो, जिससे मौसम के प्रति हमारी जो प्रतिबद्धता है, उसे प्रदूषित न करे. और उसका समाधान है ग्रीन एनर्जी ..और ग्रीन एनर्जी की दरें भी कम से कम हों ..तो हमारे पास जो प्राकृतिक संपदा है, उसकी कीमत कम हो जाएगी. ऐसे समझिये कि हमारे खजाने में जो नोट पड़ा है, उसका अवमूल्यन हो जाएगा. तब, जो इकॉनॉमी चल रही थी कोयला आधारित.. जैसा आयरन ओर में हो रहा है, उसकी भी कीमत कम हो रही है. अब कुछ दिनों बाद जमीन के ऊपर इतना लोहा हो जाएगा कि रिसाइकिलिंग ऑफ स्टील शुरू होगा. फ्रेश स्टील के लिए जमीन के अंदर से खनन की जरूरत ही नहीं होगी. इन सबसे यही पता चल रहा है कि आनेवाले दिनों में पैसा न्यू इकॉनोमी से आयेगा ..अब यह न्यू इकोनॉमी क्या है?.. वह है आइटी सेक्टर, सर्विस सेक्टर, मार्केटिंग, मनी मैनेजमेंट.. यह सब उदाहरण हैं न्यू इकोनॉमी के. ऐसे में हम कहां हैं?
यानी ग्लोबल इकोनॉमी.. ?
नहीं, इंडियन इकोनॉमी में भी.. बहुत सारे ऐसे राज्य हैं, जहां लोग इसी न्यू इकॉनोमी पर निर्भर हैं. उदाहरण के लिए गुड़गांव को ही लीजिए. इंडिया के सबसे बड़ी बीपीओज वहां पर हैं. उनके यहां माइंस नहीं हैं. मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रीज इतनी है.. आश्चजर्यजनक!.. तो अब, झारखंड को उसी तरह सोचना होगा.
लेकिन झारखंड में न्यू इकोनॉमी तब-तक कैसे आयेगी, जब-तक यहां के लोगों का दक्षता विकास नहीं होगा. बातें बहुत हो रही हैं, लेकिन इस दिशा में धरातल पर कुछ नहीं दिखता?
देखिये, सर्विसेज का पार्ट इतना बड़ा है.. हम प्रायः अखबारों में पढ़ते हैं कि यहां की लड़कियों, 14 से बीस बरस उम्र की, महानगरों में काम करने के लिए जाती हैं. इसका मतलब यह कि श्रम तो हमारे पास है.. मैं कहता हूं कि कानून बना कर आप इसको कम कर सकते हैं, बंद नहीं कर सकते. चूंकि जब तक उनको कोई विकल्प नहीं देंगे, तो यह चलता रहेगा.
अब क्या हम यह नहीं सोच सकते हैं कि हम इनमें कुछ और स्किल विकसित करें! आया की जगह उनको हाउसकीपर बनाकर भेजें. क्या हम बड़ा नर्सिंग इंस्टच्यिूट नहीं बना सकते! ..आपको याद होगा, पहले यहां केरल से हीं नर्सें आती थीं. और आज आपके यहां से लड़कियां दाई के रूप में जा रही हैं? नर्सेज के तौर पर क्यों नहीं जा रहीं! केरल की नर्सें आज मिडिल इस्ट में जा रही हैं. केरल की संपन्नता में उनकी बहुत बड़ी भूमिका है। ..तो उनके बच्चे विदेश जा रहे हैं और आपके बच्चे उनके घरों में दाई का काम करने जा रहे हैं. हमारे बच्चे इतना अपग्रेडेड होते, तो यहां से भी यह संभव था.
जैसा आपने कहा, मेरी प्रायरिटी?.. मैं कहूंगा कि दिस इज माई प्रायरिटी! दिस इज न्यू इकोनॉमी। मान लीजिए कि मजदूर की जगह ट्रेंड लोगों को हम बाहर भेजते हैं, तो उनकी इनकम डबल होगी.. और इस तरह झारखंड के 50 लाख लोगों की आय दोगुनी हो जाती है, तो हमारे राज्य की अर्थव्यवस्था स्वतः दोगुनी हो जाती है.
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