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प्रकाशकों का बकाया देने से केंद्र ने किया इनकार
राज्य सरकार ने 69 करोड़ भुगतान का भेजा था प्रस्ताव शैक्षणिक सत्र 2013-14 में बच्चों की किताब छपाई के लिए आठ प्रकाशकों का चयन किया गया था. 99 करोड़ रुपये में टेंडर फाइनल किया गया था. प्रकाशकों को एडवांस के रूप में 29.71 करोड़ रुपये दिये गये थे. बाद में भारत सरकार को टेंडर में […]
राज्य सरकार ने 69 करोड़ भुगतान का भेजा था प्रस्ताव
शैक्षणिक सत्र 2013-14 में बच्चों की किताब छपाई के लिए आठ प्रकाशकों का चयन किया गया था. 99 करोड़ रुपये में टेंडर फाइनल किया गया था. प्रकाशकों को एडवांस के रूप में 29.71 करोड़ रुपये दिये गये थे. बाद में भारत सरकार को टेंडर में गड़बड़ी की शिकायत मिली, जिस कारण शेष राशि के भुगतान पर रोक लगा दी गयी है.
रांची : शैक्षणिक सत्र 2013-14 के किताब छपाई मामले में भारत सरकार ने प्रकाशकों को बकाया राशि देने से इनकार कर दिया है. झारखंड शिक्षा परियोजना ने प्रकाशकों के बकाया राशि भुगतान का प्रस्ताव केंद्रीय मानव संसाधन विकास विभाग को भेजा था. केंद्रीय मानव संसाधन विकास विभाग ने सर्वशिक्षा अभियान के फंड से राशि नहीं देने को कहा है. केंद्र सरकार ने कहा कि राज्य सरकार चाहे, तो अपने स्तर से राशि का भुगतान कर सकती है.
शैक्षणिक सत्र 2013-14 में कक्षा एक से आठ तक के बच्चों की किताब छपाई के लिए आठ प्रकाशकों को चयनित किया गया था. पुस्तक की छपाई के लिए 99 करोड़ रुपये में टेंडर फाइनल किया गया था. प्रकाशकों को एडवांस के रूप में 29.71 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था. टेंडर में गड़बड़ी की शिकायत के बाद भारत सरकार ने शेष राशि के भुगतान पर रोक लगा दी. प्रकाशकों को अब तक 69 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया गया है. केंद्र सरकार के निर्देश पर राज्य में मामले की जांच के लिए विकास आयुक्त की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गयी थी. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है.
झारखंड शिक्षा परियोजना ने जांच प्रतिवेदन के साथ राशि भुगतान का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था. केंद्र सरकार ने सर्वशिक्षा अभियान के फंड से राशि भुगतान की अनुमति नहीं दी. केंद्र सरकार द्वारा राशि भुगतान पर से रोक नहीं हटाये जाने के कारण प्रकाशकों को एडवांस के रूप में दिये गये 29 करोड़ रुपये का मामला भी फंस गया है. शिक्षा परियोजना ने इस मामले में भी केंद्र सरकार से परामर्श मांगने की तैयारी कर रहा है.
एेसे हुई टेंडर में गड़बड़ी : झारखंड शिक्षा परियोजना ने शैक्षणिक सत्र 2013-14 में पुस्तक छपवाने के लिए जो निविदा प्रकाशित की. उसमें कई अतार्किक व गलत शर्त जोड़ा गया़ टेंडर शर्त के अनुरूप प्रकाशक के पास पेपर मिल या उसके अधिकृत विक्रेता का प्रमाण पत्र होना चाहिए, जो गत दो वर्ष में सरकारी किताब छपाई के लिए प्रति वर्ष औसतन तीन हजार मीट्रिक टन कागज की बिक्री कर चुका हो़
टेंडर हासिल करने के लिए यह भी अनिवार्य कर दिया गया कि संबंधित कंपनी का दैनिक उत्पादन 300 एमटी हो़ वित्तीय वर्ष 2011-12 में कंपनी के वाटर मार्क या लोगो से कम से कम 50000 एमटी 100 फीसदी बांस के कागज का उत्पादन किया गया हो़
टेंडर में इस बात कि शर्त लगायी गयी थी कि टेंडर वही कंपनी भर सकती है, जिसमें प्रतिदिन 300 एमटी उत्पादन की क्षमता हो़ इस शर्त को देश के कुछ पेपर मिल ही उस समय पूरा कर पा रहा था़, जबकि टेंडर की एक और शर्त के अनुसार कंपनी के लिए गत वित्तीय वर्ष में अपने वाटर मार्क के साथ 50000 एमटी उत्पादन अनिवार्य किया गया था. इसे मात्र उस समय एक-दो कंपनी पूरा कर सकती थी़
टेंडर की शर्तों से एक पेपर मिल विशेष का कागज आपूर्ति पर एकाधिकार हो गया़ पेपर मिल ने मनमाने तरीके से कागज की राशि वसूलना शुरू कर दिया़ पेपर मिल 55 से 60 रुपये प्रति किलो के हिसाब से कागज की आपूर्ति की, जबकि खुले बाजार में कागज की कीमत 45 रुपये प्रति किलो थी़ बाजार दर से किताब छपाई की लागत 55 से 60 करोड़ रुपये हाेनी चाहिए थी, जो बढ़ कर 99 करोड़ रुपये पहुंच गयी़
जांच हुई पर कार्रवाई नहीं
टेंडर में गड़बड़ी की शिकायत व भारत सरकार द्वारा राशि भुगतान पर रोक लगाये जाने के बाद राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए कमेटी गठित की थी. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में किताब छपाई की लागत मूल्य में बढ़ोतरी के लिए टेंडर की शर्तों में बदलाव को मुख्य कारण बताया था. इसके आलावे टेंडर में कुछ गड़बड़ी की बात कही गयी थी. पर जांच कमेटी की रिपाेर्ट के अनुसार आज दोषी अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी.
एलपीए दायर करेगी परियोजना
राशि भुगतान नहीं होने के बाद प्रकाशक ने झारखंड हाइकोर्ट में मुकदमा दायर किया. हाइकोर्ट ने प्रकाशक को राशि देने का निर्देश दिया था. झारखंड शिक्षा परियोजना ने हाइकोर्ट के आदेश के विरुद्ध अपील (एलपीए) दायर करने का निर्णय लिया है. इस निर्णय को झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद की स्वीकृति मिल गयी है.
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