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शिक्षक दिवस की मर्यादा अक्षुण्ण रहे
राम किशोर साहू भारतीय मनीषियों ने कितना चिंतन और मनन कर गुरु को समाज में सर्वोच्च गरिमा पद से विभूषित किया था. सच में, गुरु छात्रों में शुभ-संस्कारों के सर्जक के नाते सृष्टिकर्ता ब्रह्मा हैं, उन्हें उनके पालन-पोषण निमित्त सक्षम व स्वावलंबी बनाने के नाते पालनकर्ता विष्णु हैं तथा उनके अशुभ संस्कारों व अंतर्विकारों को […]
राम किशोर साहू
भारतीय मनीषियों ने कितना चिंतन और मनन कर गुरु को समाज में सर्वोच्च गरिमा पद से विभूषित किया था. सच में, गुरु छात्रों में शुभ-संस्कारों के सर्जक के नाते सृष्टिकर्ता ब्रह्मा हैं, उन्हें उनके पालन-पोषण निमित्त सक्षम व स्वावलंबी बनाने के नाते पालनकर्ता विष्णु हैं तथा उनके अशुभ संस्कारों व अंतर्विकारों को उखाड़ फेंकने के नाते वे प्रलयंकर शंकर हैं.
यहां ‘गुरु’ शब्द का विश्लेषण देखें – ‘गु’ का अर्थ है अंधकार और ‘रु’ का अर्थ है निरोधक अर्थात रोकनेवाले यानी प्रकाश. अंधकार और प्रकाश बहुअर्थी शब्द हैं. अंधकार से अभिप्राय है- कष्ट, चिंता, परेशानी, अवनति, अशांति तो प्रकाश का अर्थ है इन वेदनाओं को दूर करना. इस प्रकार गुरु नाम के अनुसार भी छात्रों के समस्त अंधकार को हटाना और उसके स्थान पर साफल्य साम्राज्य कायम करना गुरु का कार्य है. यही तो गुरु का लक्ष्य व साधना है.
स्पष्ट है, छात्र ही राष्ट्र के भावी कर्णधार हैं. इन भावी कर्णधारों को राष्ट्र के लिए पूर्ण मानव बनाना गुरु का कर्तव्य है. महर्षि अरविंद ने कहा है- ‘गुरु राष्ट्रीय संस्कृति के चतुर व कुशल माली हैं, जो संस्कारों की जड़ों में खाद देते और अपने श्रम से सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं.’ नागरिकों का समूह ही राष्ट्र है. गुरु ही अबोध बालक को पढ़ा-लिखा कर राष्ट्र के लिए उपयोगी व होनहार बनाता है. इसलिए गुरु को राष्ट्र निर्माता कहा जाता है.
प्राचीन काल में गुरुओं का बड़ा आदर था. दिग्गज योद्धा व नरेश माथा टेका करते थे. वर्तमान में शिक्षा की स्थिति दयनीय हो गयी है. आज के दौर में शिक्षा तिजारत बन गयी और शिक्षण एक मिशन से ज्यादा मुफीद धंधे में तब्दील हो गया. हाल में जेएनयू यूनिवर्सिटी के छात्र व शिक्षकों के बयानों व कृत्यों से देश दुखी हुआ है.
सरकारी महकमे की शिक्षा-व्यवस्था में आमूल चूल बदलाव लाने के लिए गुरुओं को कठिन तपस्या करनी होगी. स्कूल जाने को लेकर प्रचार पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती है; स्कूलों में दाखिले को बढ़ाने के लिए ‘मिड डे मील’ जैसी योजना लागू करती है फिर भी 50 फीसदी बच्चे दसवीं कक्षा तक जाते-जाते स्कूल छोड़ देते हैं. इनमें ज्यादा संख्या बालिकाअों की है.
शिक्षा की धुरी शिक्षक हैं. शिक्षा ह्रास को दूर करना इनका प्रमुख दायित्व है. अाज शिक्षकों की गरिमा गिरी है. 1920 ई से 1948 ई तक गुरु के रूप में कार्य करनेवाले महान दार्शनिक व विद्वान सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन की आत्मा आज की जर्जर शिक्षा व्यवस्था से कचोट रही होगी, जिन्होंने पांच सितंबर के अपने जन्मदिन को शिक्षकों को दिया था. आज शिक्षक दिवस एक खानापूर्ति रह गयी है.
शिक्षक दिवस की मर्यादा अक्षुण्ण रहे – इसके लिए शिक्षकों को सोचना होगा उन्हें गुरु बनना ही होगा.
(लेखक राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त व रिटायर्ड हेडमास्टर हैं)
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