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अाठ साल में भी नहीं बने 10 ट्रॉमा सेंटर

रांची: झारखंड सरकार करीब आठ साल में भी 10 ट्रॉमा सेंटर नहीं बना सकी है. स्वास्थ्य विभाग के भारी बजट व खर्च के बीच यह जरूरी काम नहीं हो सका, जिससे कई जानें बच सकती थीं. ताजा मामला एसीबी के एएसपी आनंद जोसेफ तिग्गा का है, जिनकी मौत सड़क दुर्घटना में हो गयी है. ट्रॉमा […]

रांची: झारखंड सरकार करीब आठ साल में भी 10 ट्रॉमा सेंटर नहीं बना सकी है. स्वास्थ्य विभाग के भारी बजट व खर्च के बीच यह जरूरी काम नहीं हो सका, जिससे कई जानें बच सकती थीं. ताजा मामला एसीबी के एएसपी आनंद जोसेफ तिग्गा का है, जिनकी मौत सड़क दुर्घटना में हो गयी है. ट्रॉमा सेंटर बनाने की योजना वित्तीय वर्ष 2007-08 में बनी थी, पर इस पर दो वर्षों तक काम ही शुरू नहीं हुआ. वित्तीय वर्ष 2009-10 में यह तय हुआ कि 10 ट्रॉमा सेंटर बनाये जायेंगे, पर इनमें से सिर्फ पांच पर ही काम शुरू हो सका. ताजा स्थिति यह है कि कुल पांच में से तीन सेंटर बन गये तथा एक (बरही) का काम चल रहा है.
करीब तीन-तीन करोड़ की लागत से बन चुके तीन सेंटरों में नगर ऊंटारी (गढ़वा), बहरागोड़ा (पू सिंहभूम) तथा हजारीबाग सदर (हजारीबाग) शामिल हैं. बनने के करीब तीन वर्षों बाद भी इनमें से कोई सेंटर संचालित नहीं है. वहीं रांची के बुंडू में बननेवाले ट्रॉमा सेंटर का काम जमीन संबंधी समस्या के कारण बंद कर दिया गया है. रांची के रिम्स में एक ट्रॉमा सेंटर है, जिसे अौर विकसित करने की बात हो रही है. कुछ वर्षों पूर्व बुंडू में भीषण सड़क दुर्घटना हुई थी, जिसमें कुल 22 लोग मारे गये थे. इसके बाद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने भारत सरकार से उसके ट्रॉमा सेंटर की डिजाइन मंगायी थी. कहा गया था कि अब इसी को आधार बना कर शेष आठ सेंटर (तब बहरागोड़ा व नगर ऊंटारी सेंटर ही बना था) बनाये जायेंगे, पर अभी तो यही तय नहीं है कि शेष पांच ट्रॉमा सेंटर बनेंगे कहां.
नवंबर में थाइलैंड से आयेगी टीम : रिम्स में थाइलैंड से इंटरनेशनल फैकल्टी नवंबर में आयेगी. टीम राज्य मेें ट्रॉमा मैनेजमेंट पर रिम्स के चिकित्सकों, पारा मेडिकल स्टॉफ एवं नर्स को प्रशिक्षण देगी. निदेशक डॉ बीएल शेरवाल ने बताया कि टीम के माध्यम से हम राज्य के पारा मेडिकल स्टाॅफ, नर्स एवं फार्मासिस्ट को ट्रेनिंग देंगे.
क्या है ट्रॉमा सेंटर : ट्रॉमा (चोट) सेंटर दुर्घटना के बाद तत्काल इलाज व राहत पहुंचाने वाला केेंद्र है. सड़क दुर्घटना से होनेवाली मौत या स्थायी विकलांगता रोकने में यह मददगार होता है. दुर्घटना के बाद पीड़ितों का इलाज आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित व आमतौर पर राष्ट्रीय राज मार्गों पर स्थित इन केेंद्रों में होता है. घायलों को दुर्घटना स्थल से सेंटर तक लाने के लिए जीवन रक्षक उपरकणों से लैस मोबाइल मेडिकल यूनिटें (एमएमयू) राजमार्गों पर तैनात होती हैं. सेंटर व एमएमयू के संपर्क राजमार्गों पर लगाये गये होर्डिंग पर दिये होते हैं. सरकार इसका प्रचार-प्रसार भी करती है.
सभी एनएच कवर नहीं : राज्य में पहले से कुल 12 राष्ट्रीय राजमार्ग (नेशनल हाइवे या एनएच) थे, जिनकी संख्या अब बढ़ी है. पर इनमें से एनएच-33 (बहरागोड़ा व हजारीबाग सदर) तथा एनएच-75 (नगर ऊंटारी) में ही ट्रॉमा सेंटर बन सका है.

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