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तीन साल में तीन हजार खदान आबाद हो गये…
रांची: ‘परदेस से लौट है सोमरा, पूरे तीन साल बाद़ तीन साल में तीन सौ बच्चे स्कूल छोड़ चुके थे, तीन साल में तीन सौ लोग गांव छोड़ चुके थे, तीन साल में तीन सौ मुकदमे थाने में दर्ज थे, तीन साल में उनकी जमीन पर तीन हजार खदान आबाद हो गये थे…’ युवा कवि […]
रांची: ‘परदेस से लौट है सोमरा, पूरे तीन साल बाद़ तीन साल में तीन सौ बच्चे स्कूल छोड़ चुके थे, तीन साल में तीन सौ लोग गांव छोड़ चुके थे, तीन साल में तीन सौ मुकदमे थाने में दर्ज थे, तीन साल में उनकी जमीन पर तीन हजार खदान आबाद हो गये थे…’ युवा कवि अनुज लुगुन ने जब अपनी कविता ‘केवल तीन साल की बात नहीं ‘ और ‘चूल्हों की दुनिया’ का पाठ किया, तब लोग अनायास ही वाह-वाह कर उठे़ शनिवार को आदिवासी साहित्यिक जतरा में पूरे देश से जुटे कई कवि व लेखकों ने अपनी रचनाएं पेश की़ यह दो दिवसीय आयोजन साहित्य अकादमी ने रमणिका फाउंडेशन व उसकी अानुषंगिक इकाई अखिल भारतीय आदिवासी साहित्यिक मंच ने संयुक्त रूप से बहूबाजार स्थित एचपीडीसी सभागार में किया है़.
इन्होंने किया कविता पाठ
पहले दिन रूपचंद हांसदा (संताली), ग्रेस कुजूर (कुड़ुख), लीनस कुजूर (कुड़ुख), निरल बागे (मुंडारी), निर्मला सरदार (भूमिज), लाल सिंह बोइपाई (हो), हसेल सारू (मुंडारी), अनीता मिंज (कुड़ुख), ज्योति लकड़ा (कुड़ुख), सुरेश जगन्नाथन (ऐरुकला), डाेबरो बिरुउली (हो), नीतिशा खलखाे (कुड़ुख) व मोनालिसा चंकिजा ने कविता पाठ किया़ सामाजिक कार्यकर्ता आत्मकथा दयामनी बारला (मुंडारी) ने अपने जीवन के संघर्षों के बारे में बताया़ बीजू टोप्पो द्वारा निर्देशित वृत्तचित्र द हंट का प्रदर्शन भी हुआ़ कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के उपसचिव डॉ देवेश ने किया़
देश के किसी हिस्से के आदिवासी के दर्द में फर्क नहीं : रमणिका
रमणिका फाउंडेशन की अध्यक्ष रमणिका गुप्ता ने कहा कि देश के किसी हिस्से के आदिवासी के दर्द में फर्क नहीं है़ हम एक दर्द का रिश्ता कायम करने का प्रयास कर रहे है़ं आदिवासी इतिहास में विज्ञान भी छिपा है, जिसे सामने लाने की आवश्यकता है़ भाषा बचाने की कोशिश करें क्योंकि भाषा बचेगी, तभी आदिवासी संस्कृति व जीवनशैली भी बचेगी़ इससे पूर्व लेखिका व विदुषी डॉ रोज केरकेट्टा ने कार्यक्रम का उदघाटन किया़ उन्होंने कहा कि साहित्य के क्षेत्र में युवाओं की भागीदारी बढ़ी है, जो आदिवासी समाज के लिए हर्ष का विषय है़ अखिल भारतीय आदिवासी साहित्यिक मंच के अध्यक्ष हरिराम मीणा ने कहा कि आज फिर बिरसा मुंडा को जीवित करने की जरूरत है़ उस और इस दौर में अंतर नहीं है़ उपाध्यक्ष डॉ हरि उरांव ने कहा कि जतरा के माध्यम से आदिवासी समाज के प्रति भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास कर रहे है़ं
कविताओं में उभरी उत्तर पूर्वी राज्यों के आदिवासियों की पीड़ा
विशिष्ट अतिथि, मेघालय के पूर्व मंत्री सह पब्लिक एकाउंट्स कमेटी के अध्यक्ष पॉल लिंगदोह ने उत्तर-पूर्वी राज्य के लोगों की पीड़ा अभिव्यक्त की़ ‘इंतजार करो मेरे दोस्त, हम निश्चित करेंगे तुम्हारे साथ भोजन साझा, लेकिन सिर्फ तब, जब तुम सचमुच यह स्वीकारोगे कि हम नहीं उतरे हैं पेड़ों से, तुम्हारे बीच आने के लिए, हमारी पहचान के लिए हमारे पासपोर्ट दिखाने पर जोर मत दो, और हमारी औरतों पर कटाक्ष करना बंद करो…’.उन्होंने अपनी तीन कविताएं ‘जिससे हमें वास्ता’, ‘वह’ और ‘साथी कवि के लिए पंक्तियां’ प्रस्तुत की़ं
खासी जनजाति की प्रो स्ट्रीमलैट डखार की कविताओं ने भी कुछ ऐसा ही मर्म पेश किया़ उनकी कविता ‘हम कौन हैं’ की पंक्तियां ‘मां! क्या हम तुम पर अपना दावा खो देंगे? क्योंकि हम पहाड़ों से आते हैं? क्या हमें गढ़नी होगी अब एक नयी पहचान, अपने ही देश के हावी लोगों को खुश करने के लिए, क्या सिर्फ मुख्यभूमि के भाइयों के पास ही है हक, तुम्हें मातृभूमि कहने का, ओ मातृभूमि?.. प्रो डखार ने ‘भ्रष्ट’ व ‘एक आशावादी उत्तरजीवी’ कविताएं भी प्रस्तुत की़ उदघाटन सत्र में महाराष्ट्र के वाहरु सोनवणे ने अपनी कविता ‘जीवन नाच हो’, ‘बंदूक की बेटी’ व ‘ हे कलम’ पेश की़
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