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झारक्राफ्ट का टर्नओवर गिरा, तीन माह से वेतन बंद

रांची : कभी सौ करोड़ तक टर्नओवर करनेवाली झारक्राफ्ट की हालत अब खराब होती जा रही है. लाखों को रोजगार देनेवाले झारक्राफ्ट में अब लाखों बेरोजगार हो गये हैं. कई कॉमन फैसिलिटी सेंटर(सीएफसी) व कलस्टर बंद होते जा रहे हैं. झारक्राफ्ट पर जिनकी जीविका आश्रित थी, आज दूसरे रोजगार की तलाश में हैं. कभी सरकार […]

रांची : कभी सौ करोड़ तक टर्नओवर करनेवाली झारक्राफ्ट की हालत अब खराब होती जा रही है. लाखों को रोजगार देनेवाले झारक्राफ्ट में अब लाखों बेरोजगार हो गये हैं. कई कॉमन फैसिलिटी सेंटर(सीएफसी) व कलस्टर बंद होते जा रहे हैं. झारक्राफ्ट पर जिनकी जीविका आश्रित थी, आज दूसरे रोजगार की तलाश में हैं.

कभी सरकार की उच्च प्राथमकिता में रहने वाले झारक्राफ्ट की स्थिति यह है कि पिछले डेढ़ माह से एमडी का पद रिक्त है. एमडी किसे बनाया जाये, इसे लेकर सरकार अभी तक विचार ही कर रही है. दूसरी ओर तीन महीने से झारक्राफ्ट में अनुबंध पर काम करनेवाले 350 कर्मचारियों का वेतन बंद है. 25 हजार के करीब बुनकरों, हस्तशिल्पियों, रेशम सूत कातक व एसएचजी का भुगतान बंद है. हाल के दिनों में झारक्राफ्ट के टर्नओवर में गिरावट आयी है. वर्ष 2013-14 में झारक्राफ्ट का टर्नओवर 41 करोड़ रुपये था, जो घट कर 31.5 करोड़ रुपये हो गया है. वहीं वर्ष 2015-16 में टर्नओवर गिरकर 25 करोड़ पर आ गया है.

आय बढ़ाने पर जोर नहीं दे रहा झारक्राफ्ट : उद्योग विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि दरअसल अब झारक्राफ्ट में क्लोज मॉनिटरिंग नहीं होती. झारक्राफ्ट अपने उत्पादों को बाजार के अनुरूप नहीं बना पा रहा है. कई डिजाइनर हटा दिये गये हैं. नये डिजाइन तैयार नहीं हो रहे हैं. जिसके कारण बाजार में झारक्राफ्ट के उत्पादों की मांग घटी है. दूसरी ओर सरकार की योजनाओं को पूरा करने पर भी झारक्राफ्ट को 10 प्रतिशत का सुपरविजन चार्ज मिलता था. झारक्राफ्ट सरकार की कोई योजना नहीं ले रहा है. न ही सार्वजनिक उपकर्मों के सीएसआर कार्य को ही झारक्राफ्ट कर पा रहा है.
क्या है मामला
वर्ष 2006 में झारक्राफ्ट का गठन किया गया था. तब पहले एमडी के रूप में उद्योग विभाग के विशेष सचिव आइएफएस अधिकारी धीरेंद्र कुमार को एमडी बनाया गया. मात्र 50 लाख रुपये से इसे आरंभ किया गया था. जो वर्ष 2012 में जाकर 100 करोड़ रुपये की कंपनी हो गयी थी. धीरेंद्र कुमार के सेवानिवृत्त होते ही झारक्राफ्ट की स्थिति बिगड़ने लगी. सरकार ने धीरेंद्र कुमार के बाद आइएफएस अधिकारी एटी मिश्रा और राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अजय कुमार सिंह को एमडी बनाया. पर दोनों के कार्यकाल में झारक्राफ्ट की स्थिति बिगड़ने लगी. सीएफसी बंद होने लगे. महिलाओं की एसएचजी रेशम सूत कातने, कोकून संग्रह करने के काम से हटने लगीं. बुनकरों की आय बंद होने लगी. पर कहा गया कि ऊपर लेबल से लोअर लेबल तक मॉनिटरिंग बंद हो गयी है. अब तो हालत यह है कि 20 जुलाई से एमडी का पद रिक्त है. झारक्राफ्ट द्वारा ग्लोबल इनोव और आवरण सेवा केंद्र जैसी एजेंसियों के माध्यम से 350 लोगों को अनुबंध पर रखा गया है. जिनको प्रति माह 55 लाख रुपये भुगतान किया जाता है. यह भुगतान एमडी के न रहने से नहीं हो पा रहा है.
क्या है हालात
झारक्राफ्ट द्वारा रेशम के वस्त्र, सूती वस्त्र, हैंडीक्राफ्ट से लेकर तमाम कलात्मक वस्तुओं का निर्माण किया जाता है. इसके लिए अलग-अलग कलस्टर बनाये गये थे. 200 कलस्टर झारक्राफ्ट द्वारा आरंभ किये गये थे. आज केवल 15 चालू हैं. एक कलस्टर में 50 से सौ लोगों को रोजगार मिला हुअा था. वहीं कोकून से धागा बनाने के लिये सीएफसी चलाया जाता है, जहां महिलाएं धागा बना कर महीने की चार से पांच हजार रुपये कमा लेती थीं. एक सीएफसी में 25 से 30 महिलाएं काम करती हैं. झारक्राफ्ट द्वारा ऐसे 131 सीएफसी खोले गये थे. आज स्थिति यह है कि केवल 25 ही चल रहे हैं. इसी तरह 162 प्राइमरी वीभर्स कोअॉपरेटिव सोसायटी (पीडब्ल्यूसी) का निबंधन एक साल पहले हुआ था. पीडब्ल्यूसी में बुनकर वस्त्र बनाते हैं. एक पीडब्ल्यूसी में 50 से 100 कारीगर काम करते हैं. इसमें 117 पीडब्ल्यूसी बंद हो गये हैं. केवल 45 ही चल रहे हैं.

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