अपने पुश्तैनी घर में बाल-बच्चों के साथ रहनेवाली कल्याणी से जब मुलाकात हुई, तो लगा कि गलत जगह चले आये हैं, पर जब बातचीत हुई, तो एहसास हुआ कि बेहद सामान्य दिखनेवाली यह महिला दृढ़ इच्छाशक्ति व अग्रसोची व्यक्तित्व की मालकिन है. हम कुछ पूछें उससे पहले ही अपने दो बेटों बसंत कुल्लू, भूषण कुल्लू व पोतो-पोतियों के बीच बैठी कल्याणी हमी से पूछ बैठीं कि क्या सिर्फ अपना घर अनाज से भरा होना अच्छा है या पूरे गांव का खुश रहना. हमारे जवाब से पहले ही खुद जवाब भी दे दिया कि पूरा गांव खुश रहेगा, तो अपना घर भी दमकेगा. यही सोच कर सड़क किनारे की अपनी उपजाऊ और कीमती जमीन थाना बनने के लिए दान में दे दी. जमीन भी एकाध धूर नहीं, पूरे एक एकड़. इस जमीन पर मुफस्सिल थाने का निर्माण होना है. मां के इस फैसले में सभी बेटों व भतीजों की भी सहमति थी. रोज हाड़तोड़ मेहनत करनेवाला यह परिवार अगर यह जमीन ऐसे बेचता, तो घर में लाखों रुपये आते, पर इसका मलाल किसी को नहीं.
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झारखंड : थाने काे दे दी जमीन, अब खाने को कर रहे मजदूरी
झारखंड में जमीन का मुद्दा शुरू से गंभीर रहा है. जमीन के लिए मारामारी की घटनाएं भी आम हैं. यहां कई बड़े प्रोजेक्टों पर जमीन की कमी का ग्रहण लग चुका है. और यह हो भी क्यों नहीं, झारखंड के अधिकतर इलाके पिछड़े हैं. लोग खेत और जंगल पर निर्भर हैं. जिस साल खेती नहीं […]
झारखंड में जमीन का मुद्दा शुरू से गंभीर रहा है. जमीन के लिए मारामारी की घटनाएं भी आम हैं. यहां कई बड़े प्रोजेक्टों पर जमीन की कमी का ग्रहण लग चुका है. और यह हो भी क्यों नहीं, झारखंड के अधिकतर इलाके पिछड़े हैं. लोग खेत और जंगल पर निर्भर हैं. जिस साल खेती नहीं हुई, तो पलायन की नौबत आ जाती है. ऐसे में यह जज्बा जीने की सही राह दिखाता है.
रांची :देश-समाज के लिए जीने का सही मतलब समझना हो, तो सिमडेगा के सदर प्रखंड स्थित कोचेडेगा बह्मनीन टोली की कल्याणी कुल्लू से मिलना चाहिए. सहज, सरल, सामान्य खेतिहर परिवार की मुखिया कल्याणी अब ठीक से चल नहीं पाती. घर की माली हालत भी ऐसी नहीं कि वह शहर में रहे.
जानने के लिए पूछ बैठा कि उनके पास कुल कितनी एकड़ जमीन है, तो जो जवाब मिला वो कल्पना से परे था. उनके पास मात्र सात एकड़ जमीन है. उसी की उपज से 20 लोगों का उनका परिवार चलता है. उसमें से भी एक एकड़ जमीन उन्होंने दान कर दी. जमीन कम हो जाने से अब घर चलाने के लिए मजदूरी भी करनी पड़ती है. दूसरों के यहां मजदूरी कर घर चल रहा, पर इसका मलाल किसी को नहीं. जमीन दान करने के दौरान कोचेदेगा में कार्यक्रम का आयोजन हुआ, सभी अधिकारी व विधायक शामिल हुए. उस दौरान भी कल्याणी कुछ बोल नहीं पायी थी, पर बेटे बसंत ने मां की भावना से सबको अवगत कराते हुए कहा था कि गरीब होने के बाद भी समाज के लिए जमीन दान कर उसका परिवार पहले से ज्यादा अमीर हो गया है.
क्यों दी जमीन दान : कल्याणी कुल्लू के छोटे बेटा हैं बसंत कुल्लू. हाल में अपने वार्ड के पार्षद भी चुने गये हैं. कहते हैं कि उनका इलाका शुरू से पिछड़ा हुआ है. ऐसे में जब वहां थाना बनने की बात सामने आयी, तो सबको खुशी हुई कि कुछ तो फायदा होगा. पर थाने के लिए जो सरकारी जमीन चिह्नित हुई थी, वह किसी काम की नहीं थी. इस कारण विभागीय पदाधिकारियों ने चाहा कि वहां पर कोई जमीन दान में दे. पर कोई सामने नहीं आया. इस पर तय कर लिया गया कि थाना वहां नहीं बनेगा. जब यह जानकारी कल्याणी को मिली तो उन्होंने अपने बच्चों को कहा कि भले उनका पूरा परिवार अपढ़ है, इलाका पिछड़ा है, पर अब विकास होना चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि थाना वहां हो. इससे सुरक्षित व विकसित होगा इलाका. उन्होंने कहा कि वह अपनी जमीन में से एक एकड़ देंगी. उन्होंने उसी वक्त सबों को कह दिया कि घर में अनाज की कमी होगी, तो उसकी भरपाई मजदूरी कर करनी होगी. सबने उनकी बात मान ली और जमीन दे दी गयी. बसंत बताते हैं कि जब भी जरूरी होता है, तो बिना झिझक उनका परिवार मजदूरी कर लेता है.
जाने कल्याणी कुल्लू को : शुरू से गरीबी में जीनेवाली कल्याणी कुल्लू बताती हैं कि जब उनके बच्चे छोटे थे, उसी वक्त इलाज के अभाव में उनके पति विश्वास कुल्लू का देहांत हो गया. पर वह हिम्मत नहीं हारी. अपने बच्चों के साथ-साथ देवर के बच्चों को भी पाला. हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहनेवाली कल्याणी ठीक से देख या सुन नहीं पाती. चलना भी मुश्किल है, पर घर की बेटियों को पढ़ाना चाहती हैं. उनकी जिद्द से घर की तीन बेटियां अनुपम कुल्लू, एलोरा कुल्लू व निति कुल्लू सिमडेगा में रह कर पढ़ती हैं. तीनों हॉकी और फुटबॉल की बेहतर खिलाड़ी भी हैं. सबको अपनी दादी पर गर्व है. निति कहती है कि अच्छे कपड़े नहीं हैं, तो क्या हमें इस बात का गर्व है कि हमारा परिवार दूसरों के लिए जीता है.
(साथ में सिमडेगा से रविकांत)
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