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सोहराई आर्ट के जरिये गांव की महिलाओं को स्वावलंबी बना रही हैं जयश्री

सरोज तिवारी रांची : हिम्मत और जज्बा हो, तो इनसान के लिए कोई भी मंजिल दूर नहीं होती. वह जो भी करना चाहता है, उसमें सफलता जरूर मिलती है. इसी हिम्मत और जज्बे के दम पर रांची की जयश्री इंदवार सोहराई आर्ट को दिल्ली तक पहुंचाने में कामयाब रहीं. वह झारखंड में हस्तशिल्प के क्षेत्र […]

सरोज तिवारी

रांची : हिम्मत और जज्बा हो, तो इनसान के लिए कोई भी मंजिल दूर नहीं होती. वह जो भी करना चाहता है, उसमें सफलता जरूर मिलती है. इसी हिम्मत और जज्बे के दम पर रांची की जयश्री इंदवार सोहराई आर्ट को दिल्ली तक पहुंचाने में कामयाब रहीं. वह झारखंड में हस्तशिल्प के क्षेत्र में विलुप्त हो रही कलाअों को बचाने में लगी हैं. सोहराई आर्ट की कला के कलाकारों को प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार प्रदान कर रही हैं. उनकी बनायी कलाकृतियों को उचित सम्मान दिलाने और सहेजने का काम कर रही हैं. वह रांची, गुमला, सिमडेगा और लोहरदगा में महिलाअों को इस कला में पारंगत कर रही हैं.

जयश्री को बचपन से ही सिलाई-कढ़ाई आैर पेंटिंग का शाैक था. खासकर सोहराई आर्ट सीखने का.

उन्होंने सबसे पहले रांची झारक्राफ्ट से 2009 में सोहराई कला की ट्रेनिंग ली. लंबे अरसे तक इससे जुड़ी रहीं. कई महिलाअों को इसकी ट्रेनिंग दी. कई लोगों ने इनकी कला की सराहना की. झारक्राफ्ट में साड़ी, कुरती, सूट पर बनाये गये सोहराई आर्ट की काफी सराहना हुई. इस बीच, हजारीबाग निवासी बुलू इमाम द्वारा बनायी गयी सोहराई कला आैर सिसई के नगर गांव में बने नवरत्नगढ़ महल पर बनायी गयी सोहराई कला से भी वह काफी प्रभावित हुईं.

दूसरों के लिए बनायी ‘स्तंभ’ : गुमला जिला के सिसई प्रखंड में ‘स्तंभ’ नामक संस्था की शुरुआत की. इसके माध्यम से वह महिलाअों को जानकारी देने लगीं. इस कला के प्रति लोगों को जागरूक करना शुरू किया. धीरे-धीरे महिलाएं जुड़ने लगीं. अभी संस्था में 50 से अधिक महिलाएं सोहराई पेंटिंग की कला सीख रही हैं. वह कलाकृतियों की प्रदर्शनी भी लगाती हैं.

गुमला, लोहरदगा, रांची, सहित कई जिलों में उनकी प्रदर्शनी लग चुकी है.

दिल्ली झारखंड भवन में मिली विशेष पहचान : दिल्ली झारखंड भवन में मार्च, 2016 में सोहराई कला का प्रदर्शन करने का इन्हें माैका मिला. इस भवन में सोहराई कला झारखंड की पहचान बन गयी है.

दिल्ली में उस समय एमजे अकबर, झारखंड के सीएम सहित कई अधिकारियों ने इनकी कला की सराहना की थी. झारखंड भवन के समीप स्थित एयर इंडिया परिसर में भी सोहराई पेंटिंग की गयी है.

इतना ही नहीं, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा के सर्किट हाउस, डीसी अॉफिस, एसपी अॉफिस, समाहरणालय को इनकी पेंटिंग ने खूबसूरत बनाया है.

महानगरों में सोहराई की धमक : रांची एनआइएफटी में पढ़ाई करने के लिए बाहर से आनेवाली छात्राएं भी यहां प्रशिक्षण लेती हैं. कोलकाता, पटना, बेंगलुरु सहित कई बड़े शहरों की लड़कियां यहां से प्रशिक्षण ले चुकी हैं.

कांब आर्ट की अधिक है मांग : जयश्री ने बताया कि वर्तमान में वॉल पेंटिंग के साथ कांब वाॅल पेंटिंग की सबसे अधिक डिमांड है. इसमें दीवार पर चित्र बना कर उसमें कंघी के माध्यम से रंग आैर डिजाइन का काम किया जाता है.

पलायन रोकना मुख्य उद्देश्य : जयश्री इंदवार बताती हैं कि आमतौर पर रोजगार के लिए महिलाएं पलायन कर जाती हैं. वह महिलाओं को सोहराई आर्ट का प्रशिक्षण देकर उन्हें सबल और स्वावलंबी बनाना चाहती हैं, ताकि गांवों से उनका पलायन रुके. साथ ही झारखंड की विलुप्त होती यह कला भी समृद्ध हो और खूब फले-फूले. इसमें काफी हद तक उन्हें सफलता मिल रही है.

आगामी योजना : जयश्री की आगामी योजना सिंहभूम के पैथकर आर्ट, दुमका के जादूपटिया, छत्तीसगढ़-झारखंड की सीमा पर बननेवाली कलाकृति गोदना आर्ट व झारखंड के टोटका आर्ट को जीवंत करने की है. सोहराई आर्ट को डोकरा आर्ट में लाने की भी वह कोशिश कर रही हैं. डोकरा आर्ट की ट्रेनिंग उन्होंने दिल्ली की ट्राइफड नामक संस्था से ली.

क्या है सोहराई कला

यह झारखंड का पुराना आर्ट है. दीवार पर बनाने के कारण इसे भिति चित्र भी कहते हैं. पहले दीवाली के बाद सोहराई पर्व के माैके पर लोग घर के बाहर की दीवार को रंगते थे आैर उस पर चित्रकारी करते थे. माैके पर पशुअों की पूजा होती है. पशुअों के शरीर पर सोहराई अार्ट के तहत कई चित्र बनाये जाते थे. इसमें प्राय: सकारात्मक चित्रों की ही प्रस्तुतीकरण होता है.

महिलाएं काम की तलाश में पलायन करती हैं. मेरा उद्देश्य ऐसी महिलाओं को कला से जोड़ कर स्वावलंबी

बनाना है. इस हद में काफी हद तक सफलता भी मिली है.

जयश्री इंदवार

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