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झारखंड राज्य वन विकास निगम: कमाई करोड़ों में, कार्यालय किराये पर, कर्मियों को सुविधा नहीं
सरकार के स्तर पर बोर्ड-निगम की जिम्मेवारी दी जा रही है. राजनीतिक गलियारे में कुछ बोर्ड-निगम मलाईदार बार्ड-निगम के नाम से भी प्रचलित हैं. इसलिए इनमें शामिल होने के लिए सत्ताधारी दल के अंदर तगड़ी लॉबिंग भी होती है. नेता-कार्यकर्ता अपने-अपने स्तर से इसमें हिस्सेदारी पाने के लिए लगे हुए हैं. कुछ बोर्ड-निगम में समय-समय […]
सरकार के स्तर पर बोर्ड-निगम की जिम्मेवारी दी जा रही है. राजनीतिक गलियारे में कुछ बोर्ड-निगम मलाईदार बार्ड-निगम के नाम से भी प्रचलित हैं. इसलिए इनमें शामिल होने के लिए सत्ताधारी दल के अंदर तगड़ी लॉबिंग भी होती है. नेता-कार्यकर्ता अपने-अपने स्तर से इसमें हिस्सेदारी पाने के लिए लगे हुए हैं. कुछ बोर्ड-निगम में समय-समय पर भ्रष्टाचार और कामकाज के तरीके पर सवाल उठते रहे हैं. हाल में ही आरआरडीए और खादी बोर्ड को लेकर सरकार ने फैसला लिया है. खादी बोर्ड के कामकाज पर सवाल भी उठे, जिसपर सरकार ने विशेष ऑडिट का आदेश भी दिया है. राज्य के बोर्ड-निगमों के हालात और कामकाज को लेकर ‘प्रभात खबर’ आज से शृंखलाबद्ध रिपोर्ट प्रकाशित कर रहा है.
ये हाल है
रांची: झारखंड राज्य वन विकास निगम कमाई करने वाला और लाभ में चलने वाला एक मात्र लोक उपक्रम है. निगम इस वर्ष अब तक 58 करोड़ रुपये की कमाई कर चुका है. निगम की कमाई हर साल बढ़ती जा रही है, लेकिन इसे आधारभूत संसाधन नहीं मिल रहे हैं. हालत यह है कि यह निगम अपने गठन के बाद से ही किराये के मकान में चल रहा है, क्योंकि इसका अपना कोई कार्यालय नहीं है. किराये पर हर महीने लाखों रुपये खर्च किये जा रहे हैं. अब तक यह हीनू में था. पिछले माह से यह अशोक नगर में आ गया है. अब निगम को उम्मीद है कि वन विभाग का संयुक्त भवन मिलेगा, तो वहीं अपना ठिकाना होगा. करोड़ रुपये कमाई के बाद भी यहां के कर्मियों को सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं. अब भी कर्मी पंचम वेतनमान पर काम कर रहे हैं. वन निगम को राज्य सरकार द्वारा कोई राशि प्राप्त नहीं होती है. वन निगम अपनी स्थापना एवं अन्य खर्च स्वयं अपनी आय से वहन करता है. वन निगम का स्थापना व्यय लगभग 15 करोड़ रुपये प्रति वर्ष है. निगम के अधीन विभिन्न संवर्गों में कुल लगभग 186 कर्मी कार्यरत हैं. राज्य गठन से अब तक निगम द्वारा 34 करोड़ रुपये राॅयल्टी के रूप में दिये जा चुके हैं.
वर्ष 2002 में हुई थी निगम की स्थापना : झारखंड राज्य वन विकास निगम लिमिटेड का गठन 23 मार्च 2002 को हुआ था. यह कंपनी एक्ट 1956 के अधीन परिसीमित कंपनी रूप में निबंधित है. इसे झारखंड सरकार ने पूर्ण रूप से अंगीकृत कर लिया है. यह भारतीय कंपनी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत राज्य सरकार का एक मात्र लोक उपक्रम है. वन निगम के अंतर्गत तीन अंचलीय कार्यालय (रांची, हजारीबाग एवं देवघर ) का संचालन होता है. छह प्रमंडलीय कार्यालय (रांची अंचल में रांची, धालभूम (जमशेदपुर), हजारीबाग अंचल में हजारीबाग, डालटनगंज, गढ़वा एवं देवघर अंचल में गिरिडीह प्रमंडल) अवस्थित है.
बिना प्रोमोशन के काम कर रहे हैं कर्मी : वन विकास निगम में कर्मी 29 सालों से बिना प्रोमोशन के काम कर रहे हैं. इनको एसीपी और एमएसीपी का लाभ भी नहीं दिया जा रहा है. करीब 50 रेंज में केंदू पत्ते की खरीद का काम होता है. इसमें एक भी रेंज में अपना कार्यालय नहीं है. सभी स्थानों पर भाड़े के मकान से काम चल रहा है. कर्मियों की भारी कमी है. आज भी यहां काम करने वाले कर्मी 58 साल में ही रिटायर हो रहे हैं. इन मुद्दों को लेकर कर्मियों ने कई बार प्रबंधन से बात की, लेकिन अब तक कोई फायदा नहीं हुआ है.
क्या करता है निगम : वन विकास निगम झारखंड राज्य के लिये केंदू पत्ता संग्रहण एवं विपणन करता है. इसका लाभ केंदू पत्ता संग्रहण में लगे प्राथमिक संग्रहण कार्यकर्ताओं को पहुंचाने का काम करता है. वर्ष 2007 से वन निगम को वन विभाग से राजकीय व्यापार का कार्य भी दिया गया है. इसके तहत वन भूमि अपयोजन (अधिग्रहण) से संबंधित विभिन्न योजनाओं के तहत काटी गयी लकड़ियों की नीलामी का काम भी मिला हुआ है. निगम राजधानी में नक्षत्र वन एवं सिदो-कान्हू पार्क का प्रबंधन भी कर रहा है.
क्या उपलब्धियां हैं झारखंड राज्य वन विकास निगम की
अभी केंदू पत्ता की अग्रिम बिक्री के लिए इ-निविदा की शुरुआत की गयी है. वर्ष 2016 में संगृहीत होने वाली केंदू पत्तों की इ-निविदा द्वारा बिक्री में अब तक का सर्वोच्च विक्रय मूल्य प्राप्त हुआ है. इस वर्ष की बिक्री में प्राप्त विक्रय मूल्य 59.02 करोड़ लाख रुपये मिले हैं. यह विगत पूरे वर्ष के बिक्री मूल्य के 300 फीसदी से भी अधिक है. सरकार ने केंदू पत्ता संग्रहणकर्ताओं के के लिए केंदू पत्ता विपणन से प्राप्त राशि का अधिक-से-अधिक लाभांश संग्राहकों को देने का निर्णय लिया है. इसेक लिए राज्य में केंदू पत्ता नीति-2015 लागू की गयी है. इसके तहत कुल 221 केंदू पत्ता संग्रहण समितियों का गठन किया गया है.
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