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वर्षा जल संचयन में जरूरी हैं कुछ सावधानियां

डाॅ नीतीश प्रियदर्शी पृथ्वी का जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है, जिसकी वजह से विश्वभर में पेयजल की कमी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. झारखंड भी इससे अछूता नहीं है. ऐसे में बारिश का ज्यादातर पानी, जो बहकर सागर में मिल जाता है, उसका संचयन और पुनर्भरण आवश्यक है, ताकि भूजल संसाधनों […]

डाॅ नीतीश प्रियदर्शी
पृथ्वी का जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है, जिसकी वजह से विश्वभर में पेयजल की कमी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. झारखंड भी इससे अछूता नहीं है. ऐसे में बारिश का ज्यादातर पानी, जो बहकर सागर में मिल जाता है, उसका संचयन और पुनर्भरण आवश्यक है, ताकि भूजल संसाधनों का संवर्धन हो सके.
अकेले भारत में ही व्यवहार्य भूजल भंडारण का आकलन 214 बिलियन घन मीटर (बीसीएम) के रूप में किया गया है, जिसमें से 160 बीसीएम की पुन: प्राप्ति हो सकती है. इस समस्या का एक बेहतर समाधान है वर्षा जल का संचयन (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) है. किसी खास प्रक्रिया की मदद से वर्षा जल का संचयन करना या इकट्ठा करना ही ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ कहलाता है. झारखंड सरकार ने राजधानी रांची समेत राज्य के कई शहरों में वर्षा जल संचयन को अनिवार्य किया है, जाे काफी सरानीय है. हालांकि, वर्षा जल संचयन विधि को अपनाने से पहले कुछ बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है, वरना ये सफल नहीं होगा.
(लेखक भू-वैज्ञानिक हैं)
सतह का प्रदूषित जल अगर भूमिगत जल से मिला, तो स्थिति भयावह हो जायेगी
» 1. क्या रांची शहर का भूवैज्ञानिक सर्वे हुआ कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए कौन सा स्थान उपयुक्त है? क्योंकि रांची की चट्टानें अपरदित और कायांतरित हैं और कई जगह तो हार्ड रॉक हैं, जो छिद्र युक्त भी नहीं है. ये चट्टानें भूमिगत वर्षा जल संचयन के लिए उपयुक्त नहीं है. दो साल पहले जिन लोगों ने वर्षा जल संचयन की विधि अपनाई थी, इस वर्ष वे कामयाब नहीं हो सकीं. रांची की चट्टानें दूसरे राज्यों की चट्टानों से अलग हैं.
खासकर दक्षिण भारत एवं उत्तर भारत की. इसलिए जो विधि वहां अपनायी जाती है, ठीक वैसी ही यहां नहीं अपनायी जा सकती. नगर निगम को चाहिए था अपनी टीम में हाइड्रो जियोलॉजिस्ट को जरूर रखते, जो यहां की चट्टानों से परिचित हों. हार्ड रॉक में अप्राकृतिक तरीके से वाटर रिचार्ज करना काफी मुश्किल और महंगा. अगर गलती से भी सतह का प्रदूषित जल भूमिगत जल से मिला तो स्थिति और भी भयावह हो जायेगी, क्योंकि यही एक जल का स्रोत है, जिसमें कम प्रदूषण है. नहीं तो जिस तरीके से झारखंड के भूमिगत जल में फ्लोराइड एवं आर्सेनिक का जहर कुछ जगहों पर है, उसी तरीके से कई जगहों पर प्रदूषण फैलेगा. क्योंकि यहां अब भी लोगों में जागरूकता की कमी है. हो सकता है कुछ लोग गलती से अगर इसमें गंदा पानी डाल देते हैं, तो आप सहज अनुमान लगा सकते हैं कि स्थिति क्या होगी.
» 2. रांची में कौन-कौन से क्षेत्र वाटर रिचार्ज जोन हैं, यह भी लोगों के लिए जानना जरूरी है?
» 3. रांची के लगभग सभी घरों में सेप्टिक टैंक हैं तथा बाथरूम के पानी का अलग सोख्ता है. और अब रिचार्ज पिट भी बनाना है. ये लोगों को जानना जरूरी है कि रिचार्ज पिट और सेप्टिक टैंक के बीच दूरी कम से कम 20 फीट होनी चाहिए. वैसे ही सोख्ता और रिचार्ज पिट की दूरी भी 20 फीट होनी चाहिए नहीं तो भूमिगत जल प्रदूषित हो जायेगा. अगर एक बार भूमिगत जल प्रदूषित हुआ तो फिर वो ठीक नहीं होगा और दूसरे स्रोत को भी प्रभावित करेगा.
» 4. रिचार्ज पिट घर की नींव से दूर होनी चाहिए.
» 5. रिचार्ज पिट की सफाई साल में कम से कम तीन बार होनी चाहिए अन्यथा ये काम नहीं करेगा.
» 6. बारिश का जल अपने साथ वातावरण से तथा छतों से कुछ प्रदूषण ले कर भी आता है इसपर ध्यान देना बहुत जरूरी है. छत के ऊपर लोग बहुत तरह के धातु, प्लास्टिक, और कई तरह के कचरे जमा किये रहते हैं, जिनके संपर्क में आने से वर्षा जल प्रदूषित होता है.
इनमे प्रमुख है पीएच में बदलाव, नाइट्रेट, फॉस्फोरस एवं भारी धातु. अगर इनपर ध्यान नहीं दिया गया तो छत पानी नीचे जा के भूमिगत जल को प्रदूषित करेगा.
» 7. शोध से ये ज्ञात हुआ की हार्वेस्टेड जल को सीधे नहीं पीना है. इसको फिल्टर कर के ही पीना है.
» 8. वैसे अगर बारिश के पानी को जबरदस्ती नीचे भेजने की जगह दूसरी विधियां अपनायी जाती हैं, तो ज्यादा प्रभावित होता. जैसे ज्यादा से ज्यादा खुले स्थानों का होना, लोग अपने घरों के सामने के स्थान को कंक्रीट से न ढकें, घास लगाएं, नालियों को पक्का न करें इत्यादि. क्योंकि, छत से कई गुना अधिक बारिश का पानी खुले स्थानों से बह के निकल जाता है. हमें इनको रोकना है.

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