इसमें जयपाल सिंह मुंडा ने छोटानागपुर व संताल परगना को बिहार से अलग करने का प्रस्ताव रखा था़ .उन्होंने कहा था कि छोटानागपुर व संताल परगना में अधिकतर आदिवासियों का निवास है़ यह क्षेत्र प्रत्येक तात्विक विचार से बिहार से भिन्न है़ इसलिए आदिवासियों की स्वजातीय, आर्थिक, शैक्षणिक व राजनैतिक उन्नति के लिए आवश्यक है कि इसे अलग प्रांत का दरजा दिया जाये़ भारत सरकार अधिनियम 1935 की धारा 46 के तहत एक अलग गवर्नर के प्रांत के निर्माण के उपाय किये जाये़ं यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ था़ उसी दिन एक पृथककरण संघ के गठन का निर्णय लिया गया़ इसी मैदान में जयपाल सिंह मुंडा को मरंग गोमके की उपाधि भी दी गयी थी़.
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क्या संकट में है हिंदपीढ़ी का आदिवासी महासभा मैदान?
रांची: राजधानी के जिस ऐतिहासिक मैदान से जयपाल सिंह मुंडा ने पहली बार अलग राज्य की मांग उठायी थी, वहां सरकार ने जनजातीय क्षेत्रीय उपयोजना के तहत बहुउद्देशीय हाॅल व प्रशिक्षण केंद्र के निर्माण का निर्णय लिया है़ इसके तहत जनजातीय संग्रहालय, जनजातीय छात्रावास, जनजातीय सचिवालय, सभागार आदि का निर्माण कराया जाना है़. इसके लिए […]
रांची: राजधानी के जिस ऐतिहासिक मैदान से जयपाल सिंह मुंडा ने पहली बार अलग राज्य की मांग उठायी थी, वहां सरकार ने जनजातीय क्षेत्रीय उपयोजना के तहत बहुउद्देशीय हाॅल व प्रशिक्षण केंद्र के निर्माण का निर्णय लिया है़ इसके तहत जनजातीय संग्रहालय, जनजातीय छात्रावास, जनजातीय सचिवालय, सभागार आदि का निर्माण कराया जाना है़.
इसके लिए 15,39,22,083 रुपये भी आवंटित किये गये है़ं दूसरी ओर हिंदपीढ़ी की मानव अधिकार सेवा समिति इसके खिलाफ लगातार ‘नदी ग्राउंड बचाओ अभियान’ चला रही है़ घनी आबादी का हवाला देते हुए इसे मैदान बनाये रखने की मांग कर रही है़ वैसे कई लोगों ने इस मैदान में निर्माण कराने, नहीं कराने के नाम पर राजनीति होने का आरोप भी लगाया है़ इस मैदान का क्षेत्रफल लगभग साढ़े तीन एकड़ है़.
घनी आबादी के बीच बच्चों के खेलने की एकमात्र जगह : मानव अधिकार सेवा समिति, हिंदपीढ़ी के संरक्षक मो महबूब कहते हैं कि घनी आबादी के बीच यह मैदान बच्चों के खेलने की एकमात्र जगह है़ भूकंप आने पर यह लोगों का आश्रयस्थल बनता है़ 1964 के आसपास जब इस मैदान में निर्माण की बात उठी थी, तब स्वयं जयपाल सिंह मुंडा ने इसके लिए मना किया था़ 2002- 2005 में उनकी धर्मपत्नी ने भी एेसा ही किया था़ नदी की दूसरी तरफ काफी सरकारी जमीन है, जहां सरकार इस परियोजना को स्थानांतरित करे़ समिति ने इस विषय पर मुख्यमंत्री रघुवर दास, कल्याण मंत्री लुइस मरांडी, विधायक अमित महतो, भाजपा नेता सह पूर्व डिप्टी मेयर अजयनाथ शाहदेव को ज्ञापन सौंपा है़ .
19-22 जनवरी 1939 को छोटानागपुर-संताल परगना आदिवासी सभा के नेता थियोडोर सुरीन, बंदीराम उरांव, पॉल दयाल, इग्नेस बेक, ठेबले उरांव आदि ने जयपाल सिंह मुंडा से अपनी दूसरी वार्षिक महासभा की अध्यक्षता करने का अाग्रह किया था़ उन दिनों जयपाल सिंह मुंडा बीकानेर रियासत के राजस्व मंत्री थे और पटना जाने के क्रम में रांची में थे़ यह महासभा हरमू नदी के किनारे सभा भवन के मैदान में हुई थी़.
भावी पीढ़ी की शिक्षा के मद्देनजर पूर्वजों ने खरीदी थी जमीन
इस योजना के धरातल पर लाने में महती भूमिका निभानेवाले गुमला के विधायक शिवशंकर उरांव ने कहा कि यह जमीन हमारे पूर्वजों ने खरीदी थी और वे चाहते थे कि इस जगह भावी पीढ़ी शिक्षा, संस्कृति की बातों से अवगत हो़ इसका उपयोग आदिवासियों की सामाजिक-आर्थिक उन्नति के लिए किया जाये़ दूरस्थ जगहों से रांची आकर पढ़नेवाले विद्यार्थियों को रहने की जगह मिले़ इसी मकसद से इस जमीन के ट्रस्टी, आदिवासी उन्नति समाज ने यहां के लिए महत्वकांक्षी योजना तैयार की थी़ यह खरीदी हुई जमीन है और निबंधित है़ जमीन की रसीद भी कटती है़ इस परियोजना का विरोध नहीं होना चाहिए़
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