अन्यथा कुपोषण हमारे बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास सहित देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) तथा हमारे भविष्य को भी प्रभावित करेगा. मेरी समझ से 1975 से शुरू समेकित बाल विकास परियोजना (आइसीडीएस) में अब बदलाव की जरूरत है. इसे री-डिजाइन किया जाना चाहिए. उक्त बातें पत्रकार नीरजा चौधरी ने कही. वो झारखंड सरकार के पोषण मिशन तथा यूनिसेफ द्वारा होटल बीएनआर में आयोजित गोलमेज परिचर्चा में बोल रही थीं.
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विमर्श: कुपोषण पर परिचर्चा में नीरजा चाैधरी ने कहा, देश के 50% बच्चे कुपोषित
रांची: सरकार संरचना निर्माण व दूसरे संसाधन के विकास पर ज्यादा काम करती हैं, पर सामाजिक क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव पर कम ध्यान दिया जाता है. हमारे देश में करीब 50 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं. यह हमारे समय की सबसे बड़ी समस्या है. हमें इस पर जीत हासिल करनी ही होगी. अन्यथा कुपोषण हमारे बच्चों […]
रांची: सरकार संरचना निर्माण व दूसरे संसाधन के विकास पर ज्यादा काम करती हैं, पर सामाजिक क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव पर कम ध्यान दिया जाता है. हमारे देश में करीब 50 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं. यह हमारे समय की सबसे बड़ी समस्या है. हमें इस पर जीत हासिल करनी ही होगी.
श्रीमती चौधरी ने कहा कि झारखंड में कुपोषण के खिलाफ एक सकारात्मक माहौल बन रहा है. मुख्यमंत्री अगले 10 वर्षों में झारखंड को कुपोषण मुक्त बनाना चाहते हैं. मिशन की निदेशक के तौर पर आइएएस मृदुला सिन्हा ने इस मुद्दे को एक नयी ऊर्जा दी है. राज्य में पोषण सखी की नियुक्ति होनी है, जिन्हें प्रशिक्षण देकर ग्रासरूट पर बढ़िया काम किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि राज्य में कुपोषण के खिलाफ एक बढ़िया माहौल बना कर काम करना होगा.
यूनिसेफ में बाल विकास व पोषण मामले के प्रमुख डॉ सबा मेबरातु ने कुपोषण व स्वच्छता को जोड़ते हुए कहा कि डायरिया बच्चों में कुपोषण व इससे मौत का बड़ा कारण है. वहीं पोषाहार के शरीर में पूरी तरह अवशोषित न होने से भी कुपोषण होता है. उन्होंने कहा कि डायरिया के 60 फीसदी मामले स्वच्छता का विशेष ख्याल कर रोके जा सकते हैं. इस मुद्दे पर समुदाय की भागीदारी बढ़ा कर अच्छा परिणाम पाया जा सकता है. झारखंड के संदर्भ में उन्होंने कहा कि स्वच्छता कार्यक्रम के लिए फ्रंट लाइन वर्कर न होना इसकी सबसे बड़ी कमी है. बच्चों व कुपोषण मुक्त करने के लिए डॉ सबा ने स्वच्छ पेयजल, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताअों की काउंसलिंग व साबुन से हाथ धोने की वकालत की.
विकास भारती के सचिव पद्मश्री अशोक भगत ने गुमला में अपने प्रयोग की चर्चा की, जिसमें बाड़ी में ही साग-सब्जी पैदा कर बच्चों को वहीं खिलाया जाता है. कार्यक्रम क्षेत्र में कोई बच्चा कुपोषित नहीं है. श्री भगत ने कहा कि कुपोषण से मुक्ति के लिए पंचायत की भागीदारी अांगनबाड़ी में जरूरी है.
पीएचआरएन के राज्य समन्वयक डॉ सुरंजीन प्रसाद ने बालक व बालिकाअों की समानता की बात की. कहा कि लड़कियों में कुपोषण लड़कों से अधिक है. इनमें भी एससी, एसटी समुदाय के बच्चे ज्यादा प्रभावित हैं. सुरंजीन ने कहा कि आंगनबाड़ी को समुदाय अपना मानें, इसकी विशेष पहल करनी होगी.
पत्रकार हरिवंश ने कहा कि कुपोषण का मुद्दा यदि राजनीतिक मुद्दा बन जाये, तो जन प्रतिनिधि भी इसकी अनदेखी नहीं करेंगे तथा कुपोषण से मुक्ति ज्यादा आसान होगी. गैर सरकारी संस्थाअों का भी इसमें महत्वपूर्ण रोल हो सकता है.
गैर सरकारी संस्था एकजुट के सचिव डॉ प्रशांता त्रिपाठी ने खूंटी में अपनी संस्था के कार्य तथा वर्ल्ड बैंक के यंग प्रोफेशनल मैथ्यू मॉर्टन ने बैंक के सहयोग से किशोरियों व युवा महिलाअों के लिए चल रहे कार्यक्रम तेजस्विनी के बारे बताया. इससे पहले राज्य पोषण मिशन की निदेशक मृदुला सिन्हा ने सबका अौपचारिक स्वागत किया तथा मिशन के उद्देश्य व पहल की जानकारी दी. यूनिसेफ की राज्य प्रमुख डॉ मधुलिका जोनाथन ने कार्यक्रम में आये सभी सुझावों का सारांश बताया. इस अवसर पर निदेशक प्रमुख स्वास्थ्य डॉ प्रवीण चंद्र सहित निदेशालय के अन्य पदाधिकारी, यूनिसेफ की मोइरा दावा व प्रतिभागी उपस्थित थे.
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