28.8 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आदिवासियों के दिलों में आज भी जिंदा हैं धरती आबा

रांची: धरती आबा बिरसा मुंडा आम आदिवासियों के दिलों में आज भी जिंदा है़ं कठिनाइयों से संघर्ष के दौर में उनका नाम उन्हें संबल व ऊर्जा देता है़ पर ज्यादातर यह मानते हैं कि भगवान बिरसा का सपना पूरी तरह साकार नहीं हुआ है़ उन्होंने अपने हिस्से की लड़ाई लड़ी और भावी पीढ़ी को यह […]

रांची: धरती आबा बिरसा मुंडा आम आदिवासियों के दिलों में आज भी जिंदा है़ं कठिनाइयों से संघर्ष के दौर में उनका नाम उन्हें संबल व ऊर्जा देता है़ पर ज्यादातर यह मानते हैं कि भगवान बिरसा का सपना पूरी तरह साकार नहीं हुआ है़ उन्होंने अपने हिस्से की लड़ाई लड़ी और भावी पीढ़ी को यह प्रेरणा दिया कि अन्याय के खिलाफ ईमानदारी और प्रतिबद्धता से लड़ेंगे, तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है़.
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के प्राध्यापक प्रो हरि उरांव कहते हैं कि बिरसा मुंडा पूरे झारखंडी आदिवासी समाज के प्रतीक हैं, पर आज उनके नाम का राजनैतिक और व्यावसायिक उपयोग ज्यादा हो रहा है़ उन्होंने आदिवासी समाज के लिए जो सपना देखा था, वह अब तक पूरी तरह साकार नहीं हुआ है़ उन्होंने सशक्त, विकसित व शोषण मुक्त आदिवासी समाज की परिकल्पना की थी़ उन्होंने हमें राह दिखायी है और अब यह हमारा कर्तव्य है कि उनकी तरह हर अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध करे़ं.
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के शिक्षक महेश भगत ने कहा कि बिरसा मुंडा आदिवासियत के प्रतीक है़ं उनका सपना अब तक पूरा नहीं हुआ है़ यदि आज वह हमारे बीच होते, तो लोगों की स्थिति और बेहतर होती या उनका प्रतिकार जारी रहता़ उन्होंने जिस भावना के साथ अन्याय व शोषण के खिलाफ संघर्ष किया था, वह भावना आज कम दिखती है़ यदि हालात सुधारना चाहते हैं, तो उनकी तरह ईमानदारी और प्रतिबद्धता की जरूरत है़ कई लोग उनका नाम सिर्फ मजबूरी या औपचारिकतावश लेते हैं, जो नहीं होना चाहिए़ उनकी भावना को आत्मसात करने की आवश्यकता है़.
शोध छात्रा लक्ष्मी उरांव ने कहा कि भगवान बिरसा हमारे मार्गदर्शक है़ं उन्होंने युवाओं को आदिवासी समाज के लिए कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का सबक दिया है़ आम लोगों की खुशहाली का सपना देखना सिखाया है़ जरूरी है कि आज के युवा उनकी तरह सपना देखना और संकल्प के साथ आगे बढ़ना सीखे़ं.
शोध छात्र शशि विनय भगत ने कहा कि आज के ज्यादातर युवाओं में उनकी तरह सोच और नि:स्वार्थ भावना नजर नहीं आती़ यदि उनकी सोच पर चलेंगे तो पूरा आदिवासी समाज, पूरा झारखंड खुशहाल हो सकता है़ उन्होंने समाज के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया़ उनके कार्यों को आगे बढ़ाने की जरूरत है़ वह आदिवासी युवाओं के प्रेरणा के स्रोत है़ं
शोध छात्रा मीना कुमारी ने कहा कि बिरसा मुंडा ने अंगरेज सरकार और जमींदारों के शोषण के खिलाफ संघर्ष किया़ लोगों को बचाने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की़ शोषितों की आवाज बने़ झारखंड के निर्माण में और यहां के लोगों को हक-अधिकार दिलाने में उनकी बड़ी भूमिका रही है़ पर उनका सपना पूरी तरह साकार नहीं हुआ है़ वह स्वयं साहित्य रचना और समाज को एकजुट करने के प्रयास के द्वारा उनका संघर्ष जारी रखेंगी़.
डॉ प्रदीप कुमार बोदरा डी लिट के लिए शोध कर रहे है़ं उन्होंने कहा कि भगवान बिरसा की प्रासंगिकता आज भी है़ उन्होंने जल, जंगल व जमीन की लड़ाई लड़ी और इसमें अपने प्राणों की आहूति दे दी़ आज भी वह अपनी संस्कृति व धरोहरों की रक्षा और शोषण के खिलाफ लड़ाई में हमारे प्रेरणा स्रोत है़ं वे आम आदिवासी के दिल में आज भी जिंदा है़ं.
बिरसा मुंडा की प्रतिमा से मशाल, तीर-धनुष गायब
टाटा-रांची रोड पर नामकुम बाजार के समीप स्थित नामकुम बस्ती मैदान में लगी बिरसा मुंडा की प्रतिमा से मशाल और तीर-धनुष गायब है़ उक्त प्रतिमा का अनावरण नौ जून 2004 को हुआ था़ प्रभुदयाल बड़ाइक ने बताया कि प्रतिमा के दाहिने हाथ में मशाल व बायें हाथ में तीर-धनुष था़

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें