पीएजी ने अध्ययन के लिए राज्य के चार औद्योगिक विकास प्राधिकारों में से दो(रियाडा न बियाडा) की स्थिति का जायजा लिया. इसमें इस बात की जानकारी मिली कि राज्य गठन के बाद सरकार ने औद्योगिक प्राधिकारों को जमीन नहीं दी है. एकीकृत बिहार के समय ही इन प्राधिकारों को सरकार से जमीन मिली थी. बिहार के समय इरबा और बरही में अधिगृहित जमीन भी रांची औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार(रियाडा) के अधीन नहीं है. वर्ष 1983 में औद्योगिक विकास के लिए 113.08 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था. इसके लिए रांची के उपायुक्त को 21 लाख रुपये उपलब्ध कराया गया था.
इसी तरह वर्ष 1996 में बरही में औद्योगिक विकास के लिए 398 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था. इसके लिए उपायुक्त को 2.5 करोड़ रुपये उपलब्ध कराया गया था. हालांकि इरबा और बरही में अधिगृहित जमीन पर रियाडा कब्जा नहीं जमा सका है. बोकारो औद्योगिक विकास प्राधिकार ने अपनी जमीन में से 991 एकड़ जमीन उद्योगों के लिए आवंटित किया है. इसमें से 198 एकड़ जमीन का उपयोग औद्योगिक क्षेत्र में सड़क बनाने के लिए किया गया. 279 एकड़ जमीन खाली पड़ी हुई है.
बियाडा की 74 एकड़ जमीन कानूनी विवाद में हैं. इसलिए विवाद के निबटारे तक इस जमीन का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. औद्योगिक प्राधिकार में हर माह की 15 तारीख को प्रोजेक्ट कोर्डिनेशन कमेटी(पीसीसी) की बैठक करने का प्रावधान है. हालांकि प्राधिकार में पीसीसी की बैठकें भी समय पर नहीं होती हैं. वर्ष 2011 से 2016 के बीच रियाडा में पीसीसी की सिर्फ 12 और बियाडा में 14 बैठकें हुईं. राज्य में लागू औद्योगिक नीति में इसके क्रियान्वयन की समीक्षा के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में समिति के गठन के प्रावधान है. हालांकि राज्य में इस समिति का गठन ही नहीं हुआ.
औद्योगिकीकरण के उद्देश्य से सरकार ने लैंड बैंक बनाने की घोषणा की है, पर किसी भी जिले में लैंडबैंक नहीं बना है. वर्ष 2001-02 में सरकार ने औद्योगिक विकास के तहत एसइजेड बनाने की घोषणा की थी, पर अब तक एसइजेड नहीं बन पाया है. सरकार अब तक इंफॉरमेशन टेक्नोलॉजी पार्क भी नहीं बना सकी है. इससे औद्योगिकीकरण प्रभावित हो रहा है और अपेक्षित पूंजी निवेश नहीं हो पा रहा है.