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मेक इन इंडिया से दूर नहीं होगी बेरोजगारी

रांची: मेक इन इंडिया न विकास को अंजाम देनेवाली नीति है और न बेरोजगारी ही दूर करेगी. यह खेती की बढ़ती उपेक्षा और कॉरपोरेट कंपनियों को हमारे जल, जंगल व जमीन का दोहन करने की खुली छूट देने की नीति है. इसके खिलाफ हर आवाज को कुचलने के लिए दमन का सहारा लिया जा रहा […]

रांची: मेक इन इंडिया न विकास को अंजाम देनेवाली नीति है और न बेरोजगारी ही दूर करेगी. यह खेती की बढ़ती उपेक्षा और कॉरपोरेट कंपनियों को हमारे जल, जंगल व जमीन का दोहन करने की खुली छूट देने की नीति है. इसके खिलाफ हर आवाज को कुचलने के लिए दमन का सहारा लिया जा रहा है.
उक्त बातें विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के राज्य संयोजक दामोदर तुरी ने कही. वे मंगलवार को गोस्सनर थियोलॉजिकल कॉलेज सभागार में आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे. इसका आयोजन ‘मेक इन इंडिया कारपोरेट लूट और फासीवाद के खिलाफ’ किया गया था़ कार्यक्रम में प्रो ज्यां द्रेज, दयामनी बारला, डॉ बीपी केसरी समेत झारखंड, दिल्ली, हैदराबाद, इंदौर, नागपुर व कोलकाता के कई आंदोलनकारियों व बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया. वक्ताओं ने कृषि आधारित जन विकास की वकालत की.
मुंह के बल गिरेगी नयी अार्थिक नीतियां : मुख्य आलेख प्रस्तुत करते हुए तेलंगाना के बीएस राजू ने कहा कि ये योजनाएं विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने के मकसद से बनायी जा रही है. विश्व की मौजूदा आर्थिक मंदी और देश के मजदूर, किसान व निम्न मध्यमवर्ग की जनता की बदहाली के कारण ये नीतियां जल्द ही मुंह के बल गिरेगी. मध्य प्रदेश में आदिवासी-दलित समुदाय को संगठित करनेवाली माधुरी ने कहा कि इस बाजारवादी व्यवस्था में विदेशी और देशी कंपनियां आदिवासियों – मूलवासियों के प्राकृतिक संपदा व दुर्लभ संसाधनों का लूटने में लिप्त हैं.

दिल्ली के प्रोफेसर राजीव रंजन ने कहा कि कॉरपोरेट घरानों की इस लूट को आसान बनाने के लिए देश में सुरक्षा व राष्ट्रवाद पर खतरे का हौवा खड़ा कर फासीवादी दमन का वातावरण तैयार किया जा रहा है.कई वक्ताओं ने हजारीबाग जेल मेें बंद विस्थापन विरोधी जन आंदोलन के नेता मिथिलेश दांगी समेत कई स्थानीय लोगों की अविलंब रिहाई और उन पर किये फरजी मुकदमे वापस लेने की मांग की.

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