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कला ही है भावनाओं की कल्याणमयी अभिव्यक्ति

रांची विवि स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग में शनिवार को तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू हुई. पहले दिन कई विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये. रांची : ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त व राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित पद्मभूषण प्रो सत्यव्रत शास्त्री ने कहा : मानवीय भावनाओं की कल्याणमयी अभिव्यक्ति ही कला है. कलाकार के हृदय की चेतना जब सुंदर रूप […]

रांची विवि स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग में शनिवार को तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू हुई. पहले दिन कई विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये.
रांची : ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त व राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित पद्मभूषण प्रो सत्यव्रत शास्त्री ने कहा : मानवीय भावनाओं की कल्याणमयी अभिव्यक्ति ही कला है. कलाकार के हृदय की चेतना जब सुंदर रूप लेकर भौतिक धरातल पर अवतरित होती है, तो जनमानस उस कलात्मक अभिव्यक्ति से अभिभूत हो जाता है. उक्त बातें प्रो शास्त्री ने शनिवार को रांची विवि अंतर्गत स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उदघाटन के अवसर पर कही.
16 मई तक चलनेवाली इस संगोष्ठी में प्रो शास्त्री ने प्राचीन विमान शास्त्र तथा रामायण में उल्लेखित स्वचालित पुष्पक विमान की चर्चा की. उन्होंने बताया कि दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय शिल्प कला का अत्यधिक प्रचार-प्रसार है. वहां भगवान विश्वकर्मा शिल्प देवता के रूप में पूजे जाते हैं. उन्होंने कालिदास साहित्य में वर्णित वास्तु कला पर प्रकाश डालते हुए भवन निर्माण की विशिष्टताओं की भी चर्चा की.
प्रो इला घोष ने कहा कि संस्कृत साहित्य ने हमारी प्राचीन कला और शिल्प को संरक्षित करने का कार्य किया है. शिल्प और कला के अनुप्रयोग का अनूठा शास्त्र भरतमुनि का नाट्यशास्त्र है.
वहीं प्रो घोष ने सामवेद से संगीतकला की उत्पत्ति पर विस्तार से चर्चा की. विशिष्ट अतिथि लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो राम सुमेर यादव ने कहा कि शिल्प और कला का अद्भूत संयोजन ही सौंदर्य है. शिल्पकार या कलाकार होने के लिए कागजी डिग्री की आवश्यकता नहीं है.
एक पत्थर काटने वाला मजदूर भी अपनी आत्मा के स्वर को पत्थर में उतार कर एक सुंदर मूर्ति गढ़ देता है. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए श्री जगन्नाथ संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो गंगाधर पंडा ने प्राचीन भारतीय शिल्प पर प्रकाश डालते हुए शकुन शास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद व स्थापत्यवेद पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि महान कला बाह्य सौंदर्य को ही परिभाषित नहीं करती, बल्कि हृदय के अंत: सौंदर्य को प्रकाशित कर कलाकार को परमानंद में विलीन कर देती है.
रांची विवि के कुलसचिव डॉ अमर कुमार चौधरी ने धन्यवाद ज्ञापन किया. इससे पूर्व अतिथियों का स्वागत संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ मीना शुक्ला ने किया. संगोष्ठी के दौरान 14 शोध पत्र पढ़े गये. इसमें विदेशों से आये विद्वान भी शामिल हुए.
इस अवसर पर डॉ पंपा सेन विश्वास, रांची विवि के प्रभारी कुलपति डॉ एम रजिउद्दीन, पद्मश्री रमाकांत शुक्ल, प्रो चंद्रकांत शुक्ल, प्रो बृजेश कुमार शुक्ल, प्रो गोपाल कृष्ण दास, डाॅ ताराकांत शुक्ल, डाॅ चंद्रभूषण झा, डाॅ बुद्धेश्वर षाड़ंगी, प्रयाग नारायण मिश्र, डाॅ जानकी देवी, डाॅ बीके मिश्र, डाॅ मधुलिका वर्मा, डाॅ शैलेश कुमार मिश्र, डाॅ संतोष कुमार पांडेय, डॉ धनंजय वासुदेव द्विवेदी आदि उपस्थित थे.

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