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दो वर्ष तक मार्क्सशीट के लिए भटकता रहा इंजीनियरिंग का छात्र

रांची : रांची विवि परीक्षा विभाग की लापरवाही से इंजीनियरिंग (सत्र 2008-12) का छात्र सौरभ कुमार डिप्रेशन में चला गया था. अगस्त 2014 में अच्छे अंक (6.9 सीजीपीए) से पास होने के बावजूद रांची विवि द्वारा सौरभ के मार्क्सशीट नहीं दिया गया. कॉलेज द्वारा मार्क्सशीट देने का आग्रह पत्र विवि को भेजे जाने के बावजूद […]

रांची : रांची विवि परीक्षा विभाग की लापरवाही से इंजीनियरिंग (सत्र 2008-12) का छात्र सौरभ कुमार डिप्रेशन में चला गया था. अगस्त 2014 में अच्छे अंक (6.9 सीजीपीए) से पास होने के बावजूद रांची विवि द्वारा सौरभ के मार्क्सशीट नहीं दिया गया. कॉलेज द्वारा मार्क्सशीट देने का आग्रह पत्र विवि को भेजे जाने के बावजूद उक्तछात्र को गोपलागंज से रांची स्थित विवि मुख्यालय का 70 बार चक्कर लगाना पड़ा, फिर भी मार्क्सशीट नहीं मिला.
अंतत: छात्र को स्थानीय पुलिस की मदद लेनी पड़ी. उसे 12 अप्रैल 2016 को मार्क्सशीट तो मिल गया, लेकिन मार्क्सशीट प्राप्त करने की बाद की कहानी और भी अजीब है. पुलिस के दवाब में विवि द्वारा छात्र को मूल (अोरिजिनिल) मार्क्सशीट दिया गया. यानि उसका मार्क्सशीट बना ही नहीं था. जो मार्क्सशीट उसे दिया गया, उसमें किसी टेबुलेटर का हस्ताक्षर ही नहीं था. विवि द्वारा उक्त छात्र से कहा गया कि वे दो टेबुलेटर के घर जाकर उनका हस्ताक्षर ले ले. विवि द्वारा दोनों टेबुलेटर का पता व फोन नंबर उपलब्ध कराया. इसके बाद छात्र पुलिस के साथ बरियातू व सिंहमोड़ में रहनेवाले टेबुलेटर के घर गया अौर मूल मार्क्सशीट पर हस्ताक्षर कराया. यह मामला सीआइटी में सिविल इंजीनियरिंग कर रहे छात्र का है.
छात्र ने प्रभात खबर को बताया कि सीआइटी जैसे कई संस्थान हैं, जहां बाहर से आये कई छात्रों के साथ इस तरह की घटना हो रही है. दरअसल बाहरी छात्रों से पैसे एेंठने के लिए विवि के कुछ कर्मचारी व अधिकारी इस तरह का हथकंडा अपनाते हैं. सीआइटी का उक्त छात्र वर्ष 2014 में ही उत्तीर्ण हो गया. वह गोपालगंज स्थित अपने घर गया. वहां उत्तीर्ण होने की बात अपने अभिभावक से कही, लेकिन मार्क्सशीट नहीं दिखा सका. मार्क्सशीट लेने के लिए वह कई बार रांची आया, लेकिन उसे नहीं मिला. अब तो घर वाले भी समझने लगे कि छात्र झूठ बोल रहा है. वह उत्तीर्ण नहीं हुआ है.
घर से उसे ताने मिलने लगे. इससे परेशान छात्र डिप्रेशन में चला गया. उसने एक बार आत्महत्या करने का भी प्रयास किया. अब घर वाले छात्र को लेकर परेशान हो गये. अंतत: रांची में ही रहनेवाले एक परिचित को अप्रैल 2016 में जब इसकी जानकारी मिली, तो उन्होंने विवि से उसके मार्क्सशीट के बारे में पता लगाया. पता चला कि वह छात्र वर्ष 2014 में ही उत्तीर्ण हो गया है.
जब मार्क्सशीट की मांग की गयी, तो उसे नहीं मिला. सीआइटी में भी इसकी खोज की गयी, तो वहां भी नहीं मिला. अंतत: उक्त परिचित ने छात्र को बुलवाया अौर स्थानीय पुलिस की मदद से विवि भेजा. पुलिस के दबाव में छात्र को मार्क्सशीट मिल गया. अब घर वाले इतने खुश हैं कि वह मार्क्सशीट के मिलने की खुशी में गोपालगंज में यज्ञ कराने वाले हैं.

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