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उपलब्धि: कृत्रिम गर्भाधान में झारखंड अव्वल

रांची:देसी नस्ल की गाय यहां की प्रकृति के हिसाब के काफी मजबूत होती है. इसके दूध में फैट की मात्रा विदेशी नस्ल की गाय से ज्यादा होती है. ज्यादा गरमी व ज्यादा ठंडा भी इन्हें परेशान नहीं करता है. खिलाने में भी बहुत परेशानी नहीं होती है. झारखंड में गायों के नस्ल सुधार की दिशा […]

रांची:देसी नस्ल की गाय यहां की प्रकृति के हिसाब के काफी मजबूत होती है. इसके दूध में फैट की मात्रा विदेशी नस्ल की गाय से ज्यादा होती है. ज्यादा गरमी व ज्यादा ठंडा भी इन्हें परेशान नहीं करता है. खिलाने में भी बहुत परेशानी नहीं होती है.
झारखंड में गायों के नस्ल सुधार की दिशा में कई काम हो रहे हैं. यहां के लोगों के लिए दूध की जरूरत को पूरा करने के लिए विभागीय स्तर पर कई प्रयास किये गये हैं. राज्य में पशुओं की ब्रीडिंग पॉलिसी बनने के बाद यहां उन्नत देसी नस्ल की गाय को बढ़ावा देने का निर्णय लिया गया. इसके बाद विभाग ने देसी नस्ल के सांड़ के सीमेन से कृत्रिम गर्भाधान (एआइ) शुरू कराया. इसका परिणाम अच्छा आया़ देसी सांड़ से कृत्रिम गर्भाधान कराने में झारखंड देश भर में अव्वल रहा है.

नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की अद्यतन रिपोर्ट (2014-15) के अनुसार, भारत में गो पशुओं के नस्ल सुधार के लिए 11 फीसदी देसी, 43 फीसदी विदेशी तथा 36 फीसदी उन्नत नस्ल के भैंस के वीर्य का इस्तेमाल किया गया. वहीं झारखंड में 2015-16 में 55.04 फीसदी देसी नस्ल, 38.54 फीसदी संकर नस्ल तथा 6.42 फीसदी मुर्रा भैंस के वीर्य का इस्तेमाल किया गया. 2012-13 में जब यह अभियान चलाया गया था, तब मात्र 12.84 फीसदी उन्नत देसी नस्ल के सांड़ का वीर्य इस्तेमाल होता था. करीब 80 फीसदी शंकर नस्ल तथा आठ फीसदी मुर्रा भैंस के वीर्य का इस्तेमाल होता था. इससे राज्य में अब तक 1.3 लाख होल्स्टीन फ्रीजियन, 78 हजार जर्सी, 78 हजार साहिवाल, 30 हजार गीर, 16 हजार थरपाकर, 6.5 हजार रेड सिंधी की बाछी तथा 18 हजार मुर्रा भैंस की पारी पैदा हुई है.
क्या होगा फायदा
गव्य निदेशक डॉ आलोक कुमार पांडेय बताते हैं कि इससे काफी फायदा होगा. देसी नस्ल की गाय यहां की प्रकृति के हिसाब के काफी मजबूत होती है. इसके दूध में फैट की मात्रा विदेशी नस्ल की गाय से ज्यादा होती है. ज्यादा गरमी व ज्यादा ठंडा भी इन्हें परेशान नहीं करता है. खिलाने में भी बहुत परेशानी नहीं होती है. वहीं विदेशी नस्ल की गाय दूध तो ज्यादा देती है, लेकिन यहां के वातावरण के अनुकूल नहीं होती है. ज्यादा गरमी व ठंड में उसके लिए अलग से व्यवस्था करनी होती है. यह स्थानीय किसानों के लिए मुश्किल होता है. इसी कारण विभाग ने ज्यादा से ज्यादा देसी नस्ल की गाय को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है.
राज्य में 2011-12 के बाद कृत्रिम गर्भाधान के लिए सीमेन का उपयोग
वर्ष विदेशी देसी
2011-12 79.90 12.84
2012-13 81.52 12.33
2013-14 72.28 21.59
2014-15 43.09 49.74
2015-16 38.54 55.04
आंकड़े फीसदी में

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