शहर को गंदा करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते हम
कूड़ा फैलाने के िलए निर्धारित है 5,000 रुपये तक का जुर्माना
रांची : झारखंड में सड़क पर कूड़ा फेंकना भारी पड़ सकता है. राज्य सरकार ने गंदगी फैलाने के लिए निर्धारित दंड में संशोधन किया है. अब नगर निगम क्षेत्र में गंदगी फैलाने के लिए 100 रुपये से 5000 रुपये तक का दंड वसूला जायेगा. वहीं, गांवों में गंदगी फैलाने पर दंड की राशि 50 रुपये से 1500 रुपये तक तय की गयी है. चौक-चौराहों से लेकर निजी दीवारों-भवनों तक पर पोस्टर चिपकाने और स्लोगन लिखने वालों के लिए भी पूर्व निर्धारित दंड की राशि में संशोधन किया गया है.
कूड़ा उठाने के लिए गरीबों को भी हर महीने देने होंगे 20 रुपयेझारखंड में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को भी कूड़ा उठाने के एवज में 20 रुपये देने होंगे. डोर-टू-डोर अपशिष्ट संग्रहण के लिए निर्धारित सेवा शुल्क में वृद्धि कर दी गयी है. डोर-टू-डोर कलेक्शन के लिए आवासीय भवनों को चार जोन में बांटा गया है.
चारों प्रकार के आवासीय भवन के लिए 20 रुपये से लेकर 80 रुपये तक का सेवा शुल्क निर्धारित किया गया है. होटलों, कारखानों और दुकानों से निकलने वाले कूड़े के डोर-टू-डोर कलेक्शन के लिए एक हजार से लेकर 15 हजार रुपये तक का शुल्क तय किया गया है.
दंड का निर्धारण हुआ, पर नहीं होती कार्रवाई
राज्य में खुले में कचरा फेंकने वालों पर जुर्माना करने प्रावधान राज्य सरकार के द्वारा किया गया है. इसके तहत नगर निगम क्षेत्र से लेकर छोटे शहरों और कस्बों में भी गंदगी फैलाने वालों पर दंड का प्रावधान किया गया है. चौक-चौराहों से लेकर निजी दीवारों-भवनों में पोस्टर चिपकाने और स्लोगन लिखने वालों के लिए भी दंड का प्रावधान किया गया है. परंतु लाेगों की मानसिकता ऐसी बन गयी है कि ये अपने आदत से बाज नहीं आ रहे हैं. रात के अंधेरे से कचरे से भरी बालटी को धड़ल्ले से नालियों में डाला जा रहा है.
आम तौर पर शहर की प्रमुख सड़कों पर दिन के वक्त जाम लगा रहता है. ऐसे में दिन में कूड़ा का उठाव करने से इन सड़कों पर जाम लगने की संभावना और भी बढ़ जाती है. इसलिए नगर निगम ने यह फैसला किया है कि शहर की प्रमुख सड़कों से कूड़े का उठाव रात 11 बजे से किया जायेगा. इसके लिए 250 सफाई कर्मचारी को लगाया गया है.
ये कर्मचारी प्रतिदिन एमजी मार्ग, सर्कुलर रोड, बरियातू से बू्टी मोड़, बूटी मोड़ से कांटाटोली होते हुए ओवरब्रिज तक, ओवरब्रिज से राजेंद्र चौक होते हुए बिरसा चौक तक, बिरसा चौक से हरमू रोड में रातू रोड चौक तक सुबह पांच बजे तक सफाई अभियान चलाते हैं. इस दौरान कचरे को एकत्र कर वाहन में लोड किया जाता है. फिर इस कचरे को उठा कर हरमू रोड स्थित डंपिंग यार्ड में भेजा जाता है. यहां से उसे कॉम्पकटर में लोड कर झिरी स्थित डंपिंग यार्ड में डंप किया जाता है. नगर निगम के ये कर्मचारी आम तौर पर रात में उस समय कूड़े का उठाव करते हैं, जब शहर का हर शख्स अमूमन गहरी निंद में सोया हुआ रहता है.
राजधानी में जो पब्लिक टॉयलेट रांची नगर निगम की ओर से बनाये गये हैं. उनकी हालत खस्ता करने में यहां के लोगों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है. ये लोग रात में शौचालय में घुस कर जहां-तहां शौच करके गंदगी फैलाते हैं.डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय की पहल पर अक्तूबर माह में कोकर में ही एक मॉडल शौचालय का निर्माण किया गया था. परंतु एक सप्ताह बाद से ही शरारती तत्वों ने इसमें गंदगी फैलानी शुरू कर दी़ बकौल डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय की मानें, तो अब रांची नगर निगम शौचालय के समीप 24 घंटे तो किसी से पहरा नहीं दिला सकता. इसके लिए शहर के आम लोगों को ही जागरूक होना पड़ेगा.
हमें अपनी आदत में करना होगा बदलाव
शहर को साफ रखने की जितनी जिम्मेवारी रांची नगर निगम की है, उतनी ही जिम्मेवारी हमारी भी है. अगर हम देश के सबसे साफ सुथरे शहरों की बात करें, तो ये शहर केवल इसलिए सुंदर नहीं हैं कि वहां का नगर निगम बेहतर काम करता है, बल्कि इसलिए कि वहां के लोग जागरूक हैं. ऐसे शहरों के लोग खुले में कूड़ा नहीं फेंकते हैं. निर्धारित समय पर डस्टबीन में कूड़े को डालते हैं. अपने घर के अगल-बगल में बिखरे पड़े कचरे को भी उठा कर डस्टबीन में डाल देते हैं.
शहर में सिर्फ 12 सार्वजनिक शौचालय
राजधानी रांची में सार्वजनिक शौचालय की कमी है. वर्तमान में राजधानी की आबादी 13 लाख है, लेकिन शहर में मुख्य सड़कों पर केवल 12 सार्वजनिक शौचालय ही रांची नगर निगम की ओर से संचालित हैं. शहर की कई प्रमुख सड़कों में तो पांच-पांच किमी के दायरे में कोई पब्लिक टॉयलेट नहीं है. इससे लोगों को काफी दिक्कत होती है. इस कारण भी लोग सड़क किनारे खड़े होकर पेशाब करने को मजबूर हैं.
डस्टबीन भी चुरा ले गये
रांची नगर निगम की ओर से वर्ष 2014 में शहर की प्रमुख सड़कों पर 1200 डस्टबीन लगाये गये थे.शहर में इन डस्टबीनों को लगाने के पीछे निगम का यह मकसद था कि इसमें लोग अपनी दुकान से निकलने वाले कागज व पॉलीथिन को इसमें डालेंगे, ताकि शहर गंदा न दिखे. परंतु एक साल बाद ही निगम ने इन डस्टबीनों का सर्वे करवाया, तो पाया कि शहर की सड़कों से 550 से अधिक डस्टबीन ही गायब है. इन डस्टबीनों काे कोई चुरा न सके, इसके लिए इसमें चेन के साथ ताला भी लगाया गया था. परंतु शरारती तत्वों ने चेन को काट दिया और डस्टबीन को उठा कर अपने घर लेते गये.
राजधानी रांची से प्रतिदिन निकलने वाले 550 टन कचरे को शहर से दूर झिरी में डंप किया जाता है. यहां कूड़ा निस्तारण का प्लांट नहीं होने से यहां कूड़े का ढेर लग गया है. दूर से किसी पहाड़ का दृश्य लगता है. कूड़ा का निस्तारण नहीं किये जाने से इसके पांच किलोमीटर के दायरे में कूड़े की बदबू से लोगों का जीना मुहाल है. वहीं आस-पास के मोहल्ले में मक्खी मच्छरों का प्रकोप भी इस कदर बढ़ गया है कि लोग अब यहां घर के दरवाजे पर परदा लगाने के बजाय, मच्छरदानी टांग कर रखते हैं.
कूड़े की बदबू के कारण यहां के लोग मलेरिया, टायफाइड, डायरिया जैसी बीमारियों से भी ग्रसित हो रहे हैं. हालांकि नगर निगम के द्वारा सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत एसेल इंफ्रा के साथ करार किया गया है. इसके तहत कंपनी को प्लांट लगाना है. परंतु लांट लगने में कम से कम तीन साल लगेंगे. यानी आनेवाले तीन सालों तक झिरी के आस-पास रह रहे लोगों को परेशानी झेलनी होगी़