मासिक पत्रिका नेशन संवाद का राजधानी में लोकार्पण, जुटे दिग्गज पत्रकार, कहा
राजधानी में रविवार को हिंदी मासिक पत्रिका नेशन संवाद का लोकार्पण किया गया. इस मौके पर वक्ताओं ने वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति, शासन-समाज की चुनौतियां और मौजूदा पत्रकारिता पर अपने विचार रखे.
इसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, टीवी चैनल आज तक के एग्जीक्यूटिव एडिटर पुण्य प्रसून वाजपेयी, आइबीएन-7 के मैनेजिंग एडिटर आशुतोष, नेशन संवाद के प्रधान संपादक बलबीर दत्त और प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश ने अपने विचार रखे. मूल्यों और सामाजिक सरोकार की पत्रकारिता व आम लोगों की समस्याओं पर सार्थक हस्तक्षेप की बात हुई.
देश के अंदर चरित्र निर्माण में मीडिया को अहम भूमिका निभाने की जरूरत पर बल दिया गया. वक्ताओं का कहना था कि समाज तेजी से बदल रहा है. बदलते समाज में चुनौतियां भी बदल रही हैं. ऐसे में मीडिया को अपनी भूमिका भी बदलनी होगी. ईमानदार पहल करने की जरूरत है. बेहतर राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था कायम करने के लिए मीडिया को आगे आना होगा.
परिवर्तन संग चलना होगा : आशुतोष
रांची : टीवी चैनल आइबीएन-7 के प्रबंध संपादक आशुतोष ने कहा : आज संवाद का युग है. अब संवाद के स्वरूप, तेवर बदल गये हैं. संवाद के जरियों ने पुरानी परंपराओं को तोड़ डाला है.
बड़े अखबारों को छोटे शहरों में चलाने की प्रेरणा मिल रही है. जब अखबार छोटे शहरों में और गांवों में जायेगा, चीजों को बतायेगा, तो बदलाव जरूर होगा. आज पत्रकारिता काफी बदली है. एक जमाना था, जब अंगरेजी के शब्द हिंदी पत्रकारिता में इस्तेमाल नहीं किये जाते थे.
आज भाषा भी काफी बदली है. खेल केवल भाषा का ही नहीं है. संवाद को पहचान संस्कृति देती है. भाषा अपने साथ संस्कृति, मूल्य और परंपराओं को भी साथ लेकर आती है. जब कंप्यूटर आया था, तो लोगों ने कहा कि तकनीक ले लेंगे, मगर पश्चिम संस्कृति नहीं लेंगे.
हालांकि, हुआ कुछ और. कंप्यूटर की टेकAोलॉजी आयी, तो पश्चिम की संस्कृति भी आयी. तकनीक का आयात होगा, तो संस्कृति का भी होगा. शुरुआत में थोड़ा टकराव होता है, पर बाद में सब ठीक हो जाता है. हमें संवाद के नये युग में परंपराओं को चिह्न्ति करने का काम करना होगा.
उन्होंने कहा : मैंने लगातार 13 दिनों तक अन्ना के आंदोलन की रिपोर्टिग की. कभी सोचा नहीं था, लेकिन किताब लिखने की प्रेरणा मिल गयी. किताब लिखी : 13 डेज दैट अवेक्ड इंडिया. मैंने वहां जो देखा, लगा कि यह नया हिंदुस्तान है. समाज को कहीं कुछ हो रहा है. शॉक लग रहा है. तभी तो लोग सामने आ रहे हैं. अन्ना के आंदोलन को 90 फीसदी बुद्धिजीवियों ने नकार दिया था, लेकिन उसी आंदोलन से निकले लोगों ने पार्टी बनायी.
एक साल पुरानी पार्टी ने दिल्ली में 28 सीटें ले लीं. अब सबको लग रहा है कि भारत बदल रहा है. आप की तर्ज पर झारखंड के मुख्यमंत्री ने बदलाव किया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बदल रहे हैं. सुरक्षा कम कर रहे हैं.
बदलाव करनेवाले यह दोनों अकेले नहीं हैं. राजनीतिज्ञ तब तक नहीं बदलते, जब तक उनको चीजों में परिवर्तन होता नहीं दिखता. दिल्ली का असर रांची और लखनऊ समेत पूरे देश में दिख रहा है. समाज बहुत आगे पहुंच गया है. फिर भी देश वर्ष 1950 में बने गणतंत्र की मानसिकता से चल रहा है. आज सोचने की जरूरत है कि आधे दशक से ज्यादा पुराने संविधान से देश कैसे चल सकता है.
आशुतोष ने कहा : रामायण राम और रावण की कहानी है. प्रकांड विद्वान, कई लोकों और सुदर्शन व्यक्तित्व का स्वामी रावण एक ऐसे व्यक्ति से हार गया, जिसके पास संगठित सेना तक नहीं थी. रावण अपने अहंकार और असत्य का साथ देने के कारण हारा. जबकि राम सत्य, धर्म और मूल्यों के साथ चलने की वजह से जीते. आज की राजनीतिक परिस्थितियों में लोगों ने राम को भूला दिया है. राजनीतिज्ञ सत्य, धर्म, मूल्य सब भूल गये हैं.
विनय भूल गये हैं. अहंकारी हो गये हैं. राजनीतिज्ञों ने जो सोचा, जो चाहा, किया. पांच-पांच घर लिये. सिपाही हटा कर एसपीजी की सुरक्षा ली. सरकारी माल पर कब्जा कर लिया.
लोगों की संकीर्णता के कारण ही नेताओं का यह हाल हो गया, लेकिन जब अहंकार भर जायेगा, तो सत्ता तो डोलेगी ही. दिल्ली के 28 विधायकों की गूंज दो-तिहाई बहुमतवाली राज्य सरकारों को भी सुनायी दे रही है. तभी तो वे आप का अनुसरण कर रहे हैं. अब नेताओं को अहसास हो रहा है कि भारत बदल रहा है.
मामूली सा दिखनेवाला इनसान बड़े-बड़ों के लिए खतरा हो गया है. अब वक्त आ गया है, जब लोगों को क्षेत्रीय संकीर्णता से बाहर निकलना होगा. भारतीयता को सबसे पहले रख कर सोचना होगा.
आशुतोष ने प्रभात खबर की सराहना करते हुए कहा : लोग समझते थे कि छोटे शहरों में पत्रकारिता संकुचित होती है, पर प्रभात खबर ने रांची जैसे शहर से संघर्षपूर्ण और गहरी पत्रकारिता कर दिखायी है. प्रभात खबर रांची की पहचान बन गया है. उन्होंने नेशन संवाद को शुभकामनाएं दीं.
राजनीति में कॉरपोरेट हावी, विकल्प के साथ खड़ा हो मीडिया : पुण्य प्रसून
रांची : न्यूज चैनल आज तक के कार्यकारी संपादक (एग्जक्यूटिव एडिटर) पुण्य प्रसून वाजपेयी ने कहा कि आज देश के अंदर कई सवाल हैं. मीडिया को उन सवालों के जवाब खोजने होंगे. आज कोई भी राजनीतिक पार्टी आम आदमी पार्टी के जिक्र से बचना चाहती है.
न सिर्फ बचना चाहती है, बल्कि उन जटिलताओं में घुसना भी नहीं चाहती है. लेकिन, आम आदमी पार्टी ने विकल्प तो जरूर दिये हैं. जो सिस्टम चल रहा है, उसे तोड़ें कैसे, इसका जवाब ढ़ूंढ़ना होगा. आज देश के अंदर जो परिस्थितियां चल रही हैं, उसमें राजनेता जल्द ही हांफने लगे हैं.
पॉलिटिशियन की जो लाचारी है, वही मीडिया की भी है. वर्ष 2011 में संसद चल रही थी. जंतर-मंतर पर भी आंदोलन चल रहा था. उन दिनों सड़क से रिपोर्टिग करना अच्छा लग रहा था. यहां तक स्पीकर भी बोलीं : सड़क से सदन को थ्रेट नहीं दें. आंदोलन करनेवाले कह रहे थे, संसद भी सेवक है.
वाजपेयी ने कहा कि देश की बुनियादी समस्याओं को समझने की जरूरत है. देश के लोगों की पांच-छह बुनियादी जरूरतें हैं. पीने का पानी चाहिए, बेहतर शिक्षा चाहिए, हेल्थ सर्विस चाहिए, दो जून की रोटी चाहिए, एक अदद छत चाहिए और रोजगार मिल जाये, श्रेष्ठ है. लेकिन, सरकार ने सभी से हाथ खड़ा कर दिये हैं. न शिक्षा, न स्वास्थ्य और न ही दो जून की रोटी देंगे.
देंगे भी, तो एक पैकेज के तहत, जाति विशेष, धर्म विशेष के लिए. वाजपेयी ने कहा आज सत्ता, शासन और राजनीति पर कॉरपोरेट हावी है. देश की व्यवस्था निजी कंपनियां चला रही हैं.
1991 के बाद से देश का आर्थिक पैटर्न बदला है. पिछला बजट देख लीजिए. वाटर रिसोर्स पर 15 सौ करोड़ का प्रावधान था. चिदंबरम ने उसे काट कर 650 करोड़ कर दिया. शिक्षा में हमारा बजट 65 हजार 869 करोड़ का है. वहीं हायर स्टडीज और प्राइवेट सेक्टर का बजट 22 लाख करोड़ का है. हेल्थ में प्राइवेट और कॉरपोरेट सेक्टर 22 लाख 36 हजार करोड़ का बजट है. ऐसे में एक मुख्यमंत्री क्या करेगा.
झारखंड में राज्यसभा चुनाव में क्या-क्या हुआ, किसी से छिपा नहीं है. राज्यसभा में कैसे लोग पहुंच रहे हैं. संसद में कॉरपोरेट के लिए कैसे प्रश्न पूछे जाते हैं. संसद में 89 सांसद प्रत्यक्ष रूप से कॉरपोरेट की मदद से चुनाव जीत कर आये. लोकसभा में 37 प्रतिशत सवाल सिर्फ कॉरपोरेट के लिए पूछे जाते हैं.
राज्यसभा तो कॉरपोरेट के लिए ही है. राज्यसभा में 67 प्रतिशत प्रश्न पूछे गये हैं. केजरीवाल आये हैं. उनके आने का क्या मैसेज है? मामला साफ है : व्यवस्था को विकल्प चाहिए. देश में संसाधन की कमी नहीं है. ईमानदार कोशिश की जरूरत है. आप पार्टी को कहना पड़ा कि अब पैसा मत भेजिए. चंदा नहीं चाहिए. काम में पारदर्शिता होनी चाहिए.
संपादक के लिए भी और मुख्यमंत्री के लिए भी. पत्रकारिता भी ईमानदार प्रयास के साथ जुड़े. आर्थिक विकास के इस दौर में विस्तार दिखता है, लेकिन किसका विस्तार हुआ. मीडिया का भी विकास हुआ, लेकिन पत्रकारों का बहुत विस्तार नहीं हुआ. अस्सी के दशक में जो सोशल इंडैक्स थे, वह भी एक दौर था. वर्ष 1991 में आर्थिक सुधार के साथ वह दौर खत्म होता गया. देश बदलाव चाहता है. मीडिया को वह बदलाव समझना होगा.
वर्ष 1952 में 17 करोड़ वोटर थे, चार करोड़ 77 लाख लोगों ने कांग्रेस को वोट किया था. वर्ष 2009 में 70 करोड़ वोटर हुए, 10 करोड़ 90 लाख यानी करीब 11 करोड़ लोगों ने कांग्रेस को वोट किये.
जनता बढ़ी, लेकिन वोट का अंक गणित कांग्रेस के लिए बहुत नहीं बढ़ा. जयप्रकाश नारायण का बड़ा आंदोलन चला, बड़ा बदलाव दिखा. तब आंदोलन में जुटी सोशलिस्ट पार्टी को 7.5 करोड़ वोट मिले. सत्ता में आ गये. वीपी सिंह सिर्फ 5 करोड़ वोट से प्रधानमंत्री बन गये. 2014 में 80 करोड़ वोटर होंगे. जिसने भी 11 करोड़ पार कर दिया, बड़ा परिवर्तन दिखेगा. देश परिवर्तन की दिशा में जा रहा है. वाजपेयी ने कहा कि मीडिया को सरोकार बनाने की जरूरत है.
जनता के आक्रोश को समझना होगा. यह रिपोर्टिग में भी झलकनी चाहिए. सत्ता से टकराहट, सामूहिकता और सहभागिता का बोध होना चाहिए. मीडिया देश की परिस्थिति समझे.
सामाजिक दायित्व सही तरीके से निभायेगी पत्रिका : बलबीर
रांची : नेशन संवाद के प्रधान संपादक व वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त ने कहा कि राजनीतिक दल और प्रेस दोनों में गहरा रिश्ता है. दोनों जनहित में काम करने के लिए होते हैं. एक-दूसरे के बिना, दोनों का काम नहीं चलता है.
झारखंड निर्माण के 13 वर्ष हो गये, राज्य की छवि अच्छी नहीं है. नेताओं के लिए समय नहीं है कि वे मीडिया से कतरायें. दिल्ली के रिजल्ट से सीखने-समझने की जरूरत है. श्री दत्त ने कहा : नेशन संवाद व्यावसायिकता के पहलू के साथ-साथ सामाजिक दायित्व को भी सही तरीके से निभायेगा.
सरोकार की पत्रकारिता करेंगे. फिलहाल पत्रिका मासिक है, लेकिन इसे साप्ताहिक करने का प्रयास किया जायेगा. श्री दत्त ने कहा कि पत्रिकाओं के भविष्य को लेकर कुछ लोग नकारात्मक सोच भी रखते हैं. पत्रिका के भविष्य पर सवाल खड़ा किये जाते हैं, लेकिन असफलता के डर से कोई परीक्षा देना नहीं छोड़ सकते हैं.
आज भी खास विषयों पर विशेषज्ञतावाली पत्रिकाएं हैं. ब्रेकिंग न्यूज के इस जमाने में कई लोग पत्र-पत्रिकाओं के लिए नकारात्मक सोच रखते हैं. श्री दत्त ने कहा कि आगे बढ़ने की जरूरत है. झारखंड से अच्छे अखबार निकल रहे हैं. संभावनाएं कम नहीं हैं.