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हालात को मात दे आदर्श बनी सुमित्र

रांची: दुनिया के दावं-पेंच से दूर अपने में मशगूल. घर पर रह कर पति व बच्चे की सेवा में समर्पित. किसी ने प्रशंसा की तो हल्की मुस्कुराहट और उलाहना मिला तो आंखें झुक गयीं. अपने समाज में पली-बढ़ी एक लड़की की तो यही दास्तान होती है. लेकिन, परिस्थितियां कब किसे किस मोड़ पर लाकर छोड़ […]

रांची: दुनिया के दावं-पेंच से दूर अपने में मशगूल. घर पर रह कर पति व बच्चे की सेवा में समर्पित. किसी ने प्रशंसा की तो हल्की मुस्कुराहट और उलाहना मिला तो आंखें झुक गयीं. अपने समाज में पली-बढ़ी एक लड़की की तो यही दास्तान होती है. लेकिन, परिस्थितियां कब किसे किस मोड़ पर लाकर छोड़ दे कहना मुश्किल होता है. ऐसी ही परिस्थियों के झंझावत से गुजरी हैं सुमित्र. अपनी हालत को अपनी ताकत बनायी. इसलिए आज सुमित्र हजारों महिलाओं की आदर्श बन चुकी हैं..

बोकारो में जन्मी और पली-पढ़ी सुमित्र बाला की 12 वर्ष में ही शादी हो गयी. शादी के बाद मात्र 19 वर्ष की आयु में ही तीन बच्चों की मां बन गयी. एक तरफ बच्चों की परवरिश, दूसरे तरफ पति का शोषण. पति हर समय उसके साथ मारपीट करता था. सुमित्र को पढ़ने की बहुत इच्छा थी. कम उम्र में शादी होने के कारण पढ़ नहीं पायी. ससुराल में सबके सो जाने के बाद आधी रात में जग कर पढ़ाई किया करती. सुमित्र के बाल लंबे-लंबे हुआ करते थे. पति बाल पकड़ कर पिटाई किया करता था. एक बार उसकी ऐसी हालत हो गयी कि सर से बाल उखड़ गये. सर पर काफी चोट आयी, उस समय उसकी दिमागी हालत भी बिगड़ गयी. 17 दिनों तक अस्पताल में भरती रही. बावजूद इसके पति ने सुमित्र पर आरोप लगाया कि वह कहीं भाग गयी है. हास्पिटल से वापस ससुराल आयी तो परिवार व गांववालों ने उसका सामूहिक बहिष्कार किया. अंतत: उन्हें अपने तीनों बच्चों को लेकर अपने माइका गोपालपुर आना पड़ा.

अब बाइक चलाती हैं सुमित्र
परिस्थितियों ने उन्हें कई नये कदम उठाने पर विवश कर दिये. पति की मार के कारण सुमित्र के बाल उखड़ गये थे. डॉक्टरों ने सर से पूरे बाल हटा दिये. तब से सुमित्र बॉय कट में रहने लगी, जबकि उन्हें अपने लंबे बालों से बहुत प्रेम था. एक दिन पति सरेआम उसकी साड़ी खोल कर पिटाई की. सब तमाशा देख रहे थे. किसी ने सुमित्र की लाज की परवाह ना की. सुमित्र ने उस दिन से साड़ी त्याग कर पैंट-शर्ट पहनने लगी. जगह-जगह महिलाओं की समस्याओं को सुनने के लिए बाईक चलाना सीखा. घर से कभी बाहर ना निकलनेवाली सुमित्र अब अपने बाइक से ही हर जगह, सुदूरवर्ती गांवों में आना-जाना करती है.

साख समिति का गठन किया
सुमित्र के साथ जो गुजड़ा, ऐसी प्रताड़ना का शिकार कोई और महिला ना हो. इसतरह का सोच उन्हें सालता रहता था. इसलिए सुमित्र ने अपने बल पर आदिवासी विकास साख समिति का गठन किया.

इस समिति के माध्यम से अब आदिवासी महिलाओं की समस्याओं का समाधान करती हैं. सुमित्र महिलाओं की समस्या के समाधान के लिए परिवार, समाज, पुलिस, प्रशासन कोर्ट से न्याय की लड़ाई लड़ने पहुंच जाती हैं. एकल नारी सशक्ति संगठन से जुड़ कर एकल नारियों का सहयोग कर रही हैं. उनके हक व अधिकार की लड़ाई लड़ रही हैं.

संघर्षो ने लड़ना सिखाया
सुमित्र कहती हैं; एक समय था, जब मैं अपने बच्चों की परवरिश नहीं कर पा रही थी. मेरी ऐसी हालत हो गयी कि मैं मरने को मजबूर हो गयी. पर हिम्मत से आगे बढ़ी. अपने पैरों पर खड़ी हुई. आज अपने तीनों बच्चों को हॉस्टल में डाल कर अच्छी शिक्षा दे रही हूं. वह कहती हैं कि मैं उन महिलाओं की सेवा कर सकूं जिन्हें मेरी जरूरत है. कोई भी महिला मेरी तरह शोषण का शिकार ना हो. इन्होंने जिन दुश्वारियों की जिया और सहा कभी किसी ने सोचा न था. पर, उन्होंने हार नहीं मानी.

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