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अब सुलझी स्थानीयता की गुत्थी, 15 वर्षों तक होती रही सिर्फ बयानबाजी, राजनीति का एजेंडा बना

पिछले 15 वर्षों से स्थानीय नीति की गुत्थी सुलझने का नाम नहीं ले रही थी़ इस मुद्दे पर सिर्फ राजनीति होती रही. अब जाकर रघुवर दास की सरकार ने इस मसले को सुलझा लिया है. रांची : झारखंड में राजनीतिक उठा-पटक के बीच बारी-बारी से यूपीए-एनडीए ने शासन किया़ राज्य में 12 सरकारें बदल गयीं, […]

पिछले 15 वर्षों से स्थानीय नीति की गुत्थी सुलझने का नाम नहीं ले रही थी़ इस मुद्दे पर सिर्फ राजनीति होती रही. अब जाकर रघुवर दास की सरकार ने इस मसले को सुलझा लिया है.

रांची : झारखंड में राजनीतिक उठा-पटक के बीच बारी-बारी से यूपीए-एनडीए ने शासन किया़ राज्य में 12 सरकारें बदल गयीं, लेकिन पहले नीति नहीं बन पायी़ भाजपा, झामुमो, कांग्रेस सहित कई दल सरकार में रहे़ झारखंड में स्थानीय नीति के नाम पर केवल राजनीति होती रही़ नीति-नियम बनाने के समय सभी हाथ खींचते रहे.

राज्य गठन के बाद से ही स्थानीयता के मसले पर आग में हाथ सेंकने की राजनीति झारखंड में होती रही. स्थानीयता का मामला नियुक्तियों के समय गरमाता रहा. नियुक्ति के समय ही राजनीतिक दल हो-हल्ला मचाते रहे़ स्थानीयता पर केवल बयानबाजी होती रही. अर्जुन मुंडा की सरकार में स्थानीयता को भी मुद्दा बनाया गया. स्थानीयता के सवाल को आगे करते हुए झामुमो ने समर्थन वापस लिया. हेमंत सोरेन की सरकार बनी, लेकिन नीति नहीं बन सकी.

वर्तमान रघुवर दास सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाया़ विधानसभा से लेकर सड़क तक इस मुद्दे को लेकर सरकार पर दबाव बनाया जा रहा था़ सहयोगी दल आजसू भी जल्द से जल्द स्थानीय नीति बनाने की मांग कर रहा था़ सरकार ने स्थानीय नीति पर फैसला लेकर इस दबाव से बाहर निकलने का प्रयास किया है़

झारखंड में बारी-बारी से सबकी सरकार बनी, स्थानीय नीति के नाम पर सरकार भी गिरी

स्थानीयता को लेकर कब-कब क्या होता रहा

राज्य गठन के बाद बिहार सरकार के श्रम एवं नियोजन विभाग के परिपत्र 03.03.1982 को स्वीकार करते हुए झारखंड के कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग ने अधिसूचना संख्या 3389, दिनांक 22.09.2001 को अंगीकार किया. इसके आधार पर बिहार सरकार के पत्र के आधार पर स्थानीय व्यक्ति की परिभाषा का आधार जिला को माना गया.

08.08. 2002 को एक बार फिर झारखंड सरकार ने स्थानीय व्यक्ति की परिभाषा एवं प्राथमिकता को निर्धारित किया, लेकिन हाइकोर्ट में जनहित याचिकाओं की सुनवाई के बाद 27.11.2002 को पांच सदस्यीय खंडपीठ में उसे निरस्त कर दिया. इसके साथ हाइकोर्ट ने स्थानीय व्यक्ति को पुन: परिभाषित करने तथा स्थानीय व्यक्ति की पहचान के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करने के लिए राज्य सरकार को स्वतंत्र किया.

30.12.2002 को तत्कालीन सरकार ने एक समिति का गठन किया.

27.06.2008 को सरकार ने पहले बनायी गयी कमेटी को पुनर्गठित किया.

वर्ष 2011 में सरकार ने एक बार फिर समिति का गठन किया.

21 जनवरी 2014 हेमंत सोरेन सरकार ने कमेटी गठित की़ किसी समिति ने प्रतिवेदन नहीं दिया.

हेमंत सरकार ने भी तैयार किया था ड्राफ्ट, नीति नहीं बन पायी

हेमंत सरकार का प्लॉट ही स्थानीय नीति के मुद्दे पर हुआ था तैयार

रांची : हेमंत सोरेन सरकार का गठन स्थानीय नीति के प्लॉट पर ही हुआ था़ झामुमो ने इसी मसले पर उस समय पूर्ववर्ती अर्जुन मुंडा की सरकार गिरायी थी़ हेमंत सोरेन सरकार ने स्थानीय नीति को परिभाषित करने के लिए कमेटी भी बनायी थी़ कमेटी की ओर से ड्राफ्ट भी तैयार किया गया था, लेकिन इस पर सर्वसम्मति से राय नहीं बन पाने के कारण नीति नहीं बन पायी थी़

21 जनवरी 2014 को कमेटी का गठन किया गया था़ तत्कालीन मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह इसके संयोजक बनाये गये थे़ वहीं तत्कालीन मंत्री चंपई सोरेन, गीता श्री उरांव, सुरेश पासवान, बंधु तिर्की, लोबिन हेंब्रम, डॉ सरफराज अहमद, विद्युत वरण महतो व संजय सिंह यादव को सदस्य बनाया गया था.

कमेटी की कई बैठकें हुईं. कमेटी ने ड्राफ्ट भी तैयार किया. इसमें मूलवासी व झारखंड निवासी के रूप में स्थानीयता को परिभाषित करने का प्रयास किया गया था़ कमेटी की अनुशंसा थी कि तृतीय व चतुर्थ वर्ग की नौकरियों को जिलावार किया जाये़ कमेटी ने कट ऑफ डेट तय करने की भी कोशिश की थी, लेकिन इस पर एक राय नहीं बन पायी थी़ राज्य में लगातार 30 वर्ष से रहनेवालों के अलावा केंद्र सरकार की नौकरी व यहां पढ़ाई करनेवालों को भी झारखंड निवासी के रूप में चिह्नित करने की कोशिश की गयी थी़ हेमंत सरकार ने खाका जरूर खींचा था, लेकिन उसे अमली जामा नहीं पहना सकी़

होती रही सर्वदलीय बैठक

स्थानीयता के मसले पर पिछली सरकारों ने कई बार सर्वदलीय बैठक बुलायी. हर सरकार ने सभी दलों की राय जानने की कोशिश की़ अर्जुन मुंडा की सरकार ने दो बार सर्वदलीय बैठक बुलायी़ मधु कोड़ा की सरकार में भी सर्वदलीय बैठक बुलायी गयी़ हेमंत सोरेन सरकार ने भी कमेटी द्वारा तैयार ड्राफ्ट पर सर्वदलीय बैठक बुलायी थी, लेकिन पार्टियों के बीच इस पर कोई सहमति नहीं बनी.

स्थानीयता के सवाल पर राजनीतिक दल अपने-अपने वोट बैंक के हिसाब से बातें करते रहे़ कुछ राजनीतिक दल 1932 को कट ऑफ डेट तय करने का दबाव बनाते रहे, तो कुछ दल दूसरे राज्यों की तरह राज्य गठन से कट ऑफ डेट तक करने की मांग करते रहे़ खतियान के आधार पर स्थानीयता तय करने का कुछ राजनीतिक दलों ने विरोध भी किया था़

अर्जुन मुंडा ने भी बनायी थी कमेटी

अर्जुन मुंडा की सरकार ने भी वर्ष 2011 में एक समिति का गठन किया था. कमेटी ने दूसरे राज्यों की स्थानीय नीति का अध्ययन भी किया था. उस समय कमेटी में तत्कालीन उप मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व सुदेश कुमार महतो शामिल थे. कमेटी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची. तत्कालीन शिक्षा मंत्री बैद्यनाथ राम भी कमेटी के सदस्य थे.

कैबिनेट से पहले तक राय लेते रहे मुख्यमंत्री

रांची : मुख्यमंत्री रघुवर दास ने स्थानीय नीति को परिभाषित करने से पहले सत्ता पक्ष के साथ-साथ लगभग सभी विपक्षी दलों से भी राय ली. सांसद-विधायकों से पूछा. गुरुवार काे कैबिनेट की बैठक में जाने से पहले तक उन्होंने विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं से बातचीत का प्रयास किया. हालांकि कुछ विपक्षी दलों के नेताओं से उनकी बातचीत नहीं हो पायी.

मुख्यमंत्री ने मंगलवार (पांच अप्रैल) को स्थानीय नीति लागू करने का मन बनाया. बुधवार की सुबह से ही मुख्यमंत्री इस पर राय लेने में जुट गये. बोकारो में आयोजित कार्यक्रम के दौरान धनबाद और गिरिडीह के सांसद और क्षेत्र के विधायकों से राय ली.

वहां से लौटने के बाद प्रोजेक्ट भवन में अधिकारियों के साथ बैठक कर प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया. शाम में छह बजे से लेकर रात साढ़े 11 बजे तक भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों के साथ-साथ विभिन्न मोरचा के प्रतिनिधियों से बात की. इस दौरान आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो के साथ लगभग एक घंटे तक बात की. गुरुवार को सुबह में मुख्य सचिव और प्रधान सचिव को अावास पर बुला कर उनसे मंत्रणा की. इस दौरान सदान नेता राजेंद्र प्रसाद और सुदेश महतो से एक बार फिर से राय ली.

इसके बाद राज्यपाल से मुलाकात कर स्थानीय नीति पर चर्चा की. प्रोजेक्ट भवन में जाने के बाद बुद्धिजीवियों के साथ अलग-अलग बैठक कर उनकी राय जानी. शाम तीन बजे भाजपा एसटी मोरचा की ओर से प्रदेश भाजपा कार्यालय के समीप कार्यक्रम में हिस्सा लेने आये. यहां पर उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र राय समेत अन्य पदाधिकारी की राय ली. केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा से फोन पर बात कर उनकी राय ली. फोन नहीं लगने के कारण विपक्षी दलों के कुछ नेताओं से उनकी बातचीत नहीं हो पायी. मुख्यमंत्री ने सत्ता पक्ष के लगभग सभी सांसद-विधायकों और मंत्रियों से पहले राय ली. फिर बैठक में गये.

भाजपा कार्यकर्ताओं ने मनाया जश्न

स्थानीयता को परिभाषित किये जाने पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाया. अलबर्ट एक्का चौक, भाजपा कार्यालय, हिनू और बिरसा चौक पर आतिशबाजी की गयी. मिठाई बांटी गयी़ महानगर अध्यक्ष मनोज मिश्र ने कहा कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने झारखंडवासियों को वैसा तोहफा दिया है, जिसे अब तक किसी ने नहीं दिया. 15 वर्षों के इंतजार की घड़ी अब समाप्त हुई है.

भाजपा नेता संजय सेठ ने कहा कि यह कार्य सिर्फ भाजपा ही कर सकती है. दूसरे दल सिर्फ राजनीति करते हैं. जश्न मनानेवालों में सत्यनारायण सिंह, डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय, केके गुप्ता, धर्मेंद्र राज, सुबोध सिंह गुड्डू, मुकेश सिंह, कुमार निकेत, नंद किशोर अरोड़ा, सुजीत चौरसिया, सतीश सिन्हा, सुनील शर्मा आदि शामिल हैं.

सरकार ने सर्वमान्य नीति बनायी : रवींद्र राय

रांची : भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रवींद्र कुमार राय ने रघुवर सरकार द्वारा गुरुवार को स्थानीयता को परिभाषित किये जाने के फैसले का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है. पार्टी इसका स्वागत करती है. पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद सरकार ने जो जनता से वादा किया था, उसे पूरा किया है. यह नियमानुकूल व सर्वमान्य है.

पार्टी कार्यालय में पत्रकारों से बात करते हुए डॉ राय ने कहा कि इसमें सभी लोगों का ख्याल रखा गया है.

राज्य में 30 साल से रहनेवाले, जन्म लेनेवाले, राज्य व भारत सरकार के कर्मचारी को इसमें शामिल किया गया है. वहीं आदिवासी बहुल जिलों में अगले 10 वर्षों तक तृतीय व चतुर्थ वर्ग की नियुक्तियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने का फैसला भी सही है. जेपीएससी की परीक्षा में यहां की स्थानीय भाषाओं को शामिल कर सरकार ने ठोस कदम उठाया है. सरकार के इस फैसले से विपक्षी दलों के मुंह पर ताला लग गया है.

झामुमो नेताओं द्वारा दिये गये बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए डॉ राय ने कहा कि अब उनके हाथ से मौका निकल गया है. जब अवसर मिला, तो कुछ किया नहीं. अब बेवजह की बयानबाजी कर रहे हैं. डॉ राय ने सभी राजनीतिक दलों से स्थानीय नीति को लागू करने में सहयोग करने की अपील की़

भाजपा नेताओं ने सरकार के फैसले की सराहना

भाजपा नेताओं ने रघुवर सरकार के फैसले का स्वागत किया है. स्वागत करने वालों में राकेश प्रसाद, दीपक प्रकाश, ब्रजमोहन राम, सीमा शर्मा, बिरंची नारायण, अनंत ओझा, मंजु रानी, अशोक भगत, बालमुकुंद सहाय, सुनील कुमार सिंह, शैलेंद्र सिंह, आशा लकड़ा, भूपन साहू, प्रदीप वर्मा, गामा सिंह, महेश पोद्दार, अजय मारु, कमाल खां, प्रदीप सिन्हा, प्रेम मित्तल, अमरप्रीत सिंह काले, मधुसूदन जारुहार, सांवरमल अग्रवाल, शिवपूजन पाठक, प्रतुल शाहदेव, संजय जयसवाल, मधु राम साहू, रविनाथ किशोर, चंद्र प्रकाश, ऊषा पांडेय, भगत बाल्मिकी, ओम सिंह, काजीम कुरैसी, समीर उरांव, तारिक इमरान, लक्ष्मी कुमारी, रागिनी सिन्हा, आरती सिंह, प्रिया सिंह, डॉ सूर्यमणि सिंह, समर सिंह, गुरविंदर सिंह सेठी, अशोक बड़ाईक आदि शामिल हैं.

झामुमो ने किया विरोध

झारखंड की मूल भावना के विपरीत है स्थानीयता

झामुमो ने दी आंदोलन की चेतावनी

रांची : झारखंड मुक्ति मोरचा ने राज्य सरकार द्वारा स्थानीयता को परिभाषित किये जाने को झारखंड राज्य गठन की मूल भावना के विपरीत बताया है. पार्टी के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि कैबिनेट की बैठक में स्थानीयता के मुद्दे पर लिया गया निर्णय अपने आप में असमंजस से भरा है. झामुमो इसकी भर्त्सना करता है.

श्री भट्टाचार्य ने कहा कि राज्य सरकार ने खतियान को भी आधार माना है. 30 वर्ष पूर्व से रहनेवालों को भी स्थानीय माना गया है, जो अपने आप में विरोधाभाष है. तृतीय व चतुर्थ वर्ग के नियोजन में स्थानीय लोगों की प्राथमिकता की बात स्वीकार कर उसकी अनिवार्यता को ही समाप्त कर दिया गया है. इसको लेकर झामुमो आंदोलन करेगा. सरकार का निर्णय एक धोखा है .

श्री भट्टाचार्य ने कहा कि सात अप्रैल 2016 को सरकार के कार्मिक विभाग के उपसचिव द्वारा सभी राजनीतिक दलों को एक पत्र (पत्रांक 2454 दिनांक 17.3.2016) प्राप्त हुआ, जिसमें स्थानीयता निर्धारण के परिप्रेक्ष्य में लिखित सुझाव उपलब्ध करवाने की बात कही गयी़ अब अामजनों की आकांक्षा की उपेक्षा करते हुए एकतरफा निर्णय लिया गया है़

दूसरे राज्यों में तीन से 15 वर्ष तक रहनेवाले कहलाते हैं स्थानीय

सुनील चौधरी

रांची : देश के लगभग सभी राज्यों की अपनी स्थानीय (डोमेसाइल) नीति है. इसके जरिये डोमेसाइल प्रमाण पत्र लेकर व्यक्ति उस राज्य में शिक्षा या सरकारी नौकरी हासिल कर सकता है. किसी राज्य में डोमेसाइल प्रमाण पत्र हासिल करने की योग्यता कम से कम राज्य में रहने की शर्त्त 10 वर्ष रखी गयी है, तो कहीं तीन वर्ष. छत्तीसगढ़ में 15 वर्ष से रहनेवाले या कोई व्यक्ति यदि पांच वर्ष से राज्य में व्यवसाय कर रहा है, तो उसे स्थानीय माना जायेगा.

महिला के मामले में छत्तीसगढ़ व बिहार में समानता है. दूसरे राज्य की महिला हो और उसका विवाह राज्य के स्थायी निवासी के साथ हुआ, हो तो वह भी डोमेसाइल की हकदार होंगी. कई राज्यों में ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत, वार्ड सदस्य, एमपी, एमएल या राजपत्रित पदाधिकारी के प्रमाण पत्र को भी आधार माना गया है. वहीं छत्तीसगढ़, बिहार, यूपी, उत्तराखंड व प बंगाल में स्कूल के प्रमाण पत्र को भी आधार माना गया है.

क्या है अन्य राज्यों की स्थानीय नीति

छत्तीसगढ़

व्यक्ति यदि छत्तीसगढ़ में जन्म लिया हो

व्यक्ति या उसके माता-पिता छत्तीसगढ़ में 15 वर्ष से रह रहे हों

माता-पिता केंद्र या राज्य सरकार की नौकरी के दौरान छत्तीसगढ़ के किसी जिले में पदस्थापित रहे हों या सेवानिवृत्त हो चुके हों.

व्यक्ति या उसके माता-पिता का छत्तीसगढ़ में पिछले पांच वर्ष से अचल संपत्ति, उद्योग, कृषि या अन्य कोई व्यवसाय हो

व्यक्ति ने कम से कम तीन वर्ष तक छत्तीसगढ़ में पढ़ाई की हो

व्यक्ति ने इनमें से कोई एक परीक्षा छत्तीसगढ़ में पास की हो, उच्च शिक्षा, कक्षा आठ, कक्षा चार या पांच की परीक्षा

कोई महिला भले ही राज्य की ना हो, पर यदि उसका विवाह राज्य के स्थायी निवासी के साथ हुआ हो, तो वह डोमेसाइल प्रमाण पत्र हासिल कर सकती है.

बिहार

व्यक्ति या माता-पिता का बिहार राज्य में जमीन हो

बिहार के स्कूल से पढ़े होने का प्रमाण पत्र हो

पिछले 10 वर्ष से बिहार राज्य में स्थायी रूप से निवास कर रहा हो

बिहार राज्य के निवासी हैं, इसे साबित करने के लिए वोटर आइडी, पासपोर्ट, राशन कार्ड या अन्य वैध दस्तावेज पेश करना होगा.

कोई महिला भले ही राज्य की ना हो, पर यदि उसका विवाह राज्य के स्थायी निवासी के साथ हुआ हो .

पश्चिम बंगाल

30.12.2014 से 10 वर्ष पहले से राज्य में रह रहा हो, इसका प्रमाण पत्र देना होगा.

एसडीओ द्वारा जारी आवासीय प्रमाण पत्र हो

ग्राम पंचायत प्रधान, एमएलए या एमपी द्वारा राज्य का निवासी होने का प्रमाण पत्र दिया गया हो

जमीन का खतियान हो

किराये में हैं, तो रेंट रसीद या लैंड डीड की प्रति हो

ओड़िशा

पिछले 10 वर्ष से राज्य में स्थायी रूप से रहता हो

स्थानीयता की जांच के लिए जिला तहसीलदार द्वारा अधिकृत व्यक्ति की जांच रिपोर्ट हो

राज्य के किसी हिस्से में व्यक्ति या माता-पिता के नाम से जमीन हो.

जमीन का पट्टा दिखाने पर भी मिल सकता है.

स्थानीय रेवेन्यू इंस्पेक्टर की रिपोर्ट में नाम हो

राशन कार्ड हो

राज्य के स्कूल का प्रमाण पत्र हो

राज्य सरकार की ओर से निर्गत जन्म प्रमाण पत्र हो

उत्तर प्रदेश

राज्य का स्थायी निवासी हो या कम से कम तीन वर्ष से राज्य में स्थायी रूप से निवास कर रहा हो

राज्य के निवासी हैं, पर नौकरी दूसरे राज्य में कर रहे हैं तो उन्हें नियोक्ता का प्रमाण पत्र देना होगा, या ग्राम पंचायत या अध्यक्ष नगर निगम द्वारा जारी स्थायी निवासी होने का प्रमाण पत्र मान्य होगा.

राज्य सरकार द्वारा निर्गत राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आइडी, पासपोर्ट, पैन कार्ड, गृह कर, जल कर या बिजली बिल को भी स्थानीय होने के सबूत के रूप में माना जायेगा.

राजपत्रित पदाधिकारी, एमपी, एमएलए, जिला पर्षद अध्यक्ष, नगर पंचायत अध्यक्ष या राष्ट्रीयकृत बैंक के ब्रांच मैनेजर द्वारा अभिप्रमाणित प्रति देना होगा.

उत्तराखंड

राज्य में स्थायी आवास हो

राज्य में पिछले 15 वर्ष से रहता हो

राज्य का स्थायी निवासी हो, पर कमाने के लिए दूसरे राज्य में हैं तब भी डोमेसाइल प्रमाण पत्र के हकदार होंगे.

परिवार का निबंधन राज्य में हुआ हो या ग्राम प्रधान अथवा वार्ड सदस्य द्वारा निवासी होने का प्रमाण पत्र दिया गया हो

हाई स्कूल, इंटरमीडिएट या उच्च शिक्षा का प्रमाण पत्र राज्य के संस्थानों का हो

आजसू पार्टी

कदम स्वागतयोग्य पर कुछ त्रुटियां भी हैं

रांची. आजसू पार्टी के केंद्रीय मुख्य प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत ने स्थानीयता को परिभाषित करने के कदम काे स्वागतयोग्य बताया है. पार्टी ने सरकार से मांग की है कि इसमें मूलवासी या भूमिपुत्र या स्वैच्छिक प्रवासी की अलग-अलग विवेचना की जानी चाहिए. श्री भगत ने कहा कि सरकार के निर्णय में कुछ त्रुटियां हैं. इसकी समीक्षा करने के बाद ही पार्टी इस पर सरकार से विचार-विमर्श करेगी.

आदिवासी-मूलवासी

मंच ने स्थानीय नीति का विरोध किया

रांची. अादिवासी- मूलवासी जनाधिकार मंच ने सरकार के फैसले का विरोध किया है़ मंच के संयोजक आजम अहमद ने कहा कि इससे झारखंडवासी अपने अधिकार से वंचित रह जायेंगे़ इसलिए आदिवासी-मूलवासी जनाधिकार मंच 1932 से 1964 के अंतिम सर्वे के आधार पर स्थानीय नीति की मांग करता है. मंच द्वारा 24 अप्रैल को काला दिवस मनाने और बंद का आह्वान किया गया है.

कांग्रेस

सरकार ने दूध में पानी मिलाने का काम किया : सुखदेव भगत

रांची.कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत ने कहा है कि स्थानीय नीति का सही निर्धारण नहीं किया गया है़ सरकार ने स्थानीय नीति कम, नियोजन की नीति ज्यादा बनायी है़ सरकार ने दूध में इतना पानी मिला दिया है कि अब केवल दूध का रंग दिख रहा है़

झारखंडी भावना का ख्याल नहीं रखा गया है़ नीति पूरी तरह अस्पष्ट है़ राज्य का गठन जिस उद्देश्य से हुआ, उसकी रक्षा नहीं हो रही है़ यहां की भाषा संस्कृति के संरक्षण की कोई नीति नहीं दिख रही है़ झारखंड के लोगों को यहां के उद्योग धंधे, निविदा में कैसे हिस्सेदारी मिलेगी, इसका भी उल्लेख होना चाहिए़ पूरी नीति में स्थानीय लोगों का हित सीमित नौकरी तक ही दिख रहा है़

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