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गड़बड़ी: कक्षा एक के किताब की कीमत तीन हजार, किताबों से विद्यालयों को 19 करोड़ का कमीशन!

निजी स्कूल अभिभावक से पैसे वसूलने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाता है. कभी किताब-कॉपी के नाम पर, तो कभी ड्रेस के नाम पर तो कभी कोचिंग कराने के नाम पर. इनके चक्रव्यूह में परिजन उलझ जाते हैं. कोई उनकी सुननेवाला नहीं. सुनील कुमार झारांची: निजी स्कूलों की मनमानी के सामने अभिभावक बेबस है़ं नये […]

निजी स्कूल अभिभावक से पैसे वसूलने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाता है. कभी किताब-कॉपी के नाम पर, तो कभी ड्रेस के नाम पर तो कभी कोचिंग कराने के नाम पर. इनके चक्रव्यूह में परिजन उलझ जाते हैं. कोई उनकी सुननेवाला नहीं.
सुनील कुमार झा
रांची: निजी स्कूलों की मनमानी के सामने अभिभावक बेबस है़ं नये सत्र शुरू होने के साथ किताब-कॉपी के नाम दुकानदार मोटी रकम वसूल रहे हैं. अभिभावक चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे़ प्रशासन ने भी स्कूलों को आदेश देकर अपना काम पूरा समझ लिया़ कुछ स्कूलों को छोड़ राजधानी के अधिकतर स्कूलों की किताब तय दुकान से मिलती है़ स्कूल व दुकानदार मिल कर किताब व कॉपी के लिए अभिभावकों से मनमाना पैसा वसूल रहे हैं. अालम यह है कि कक्षा एक की किताब-कॉपी के लिए तीन हजार रुपये तक लिये जा रहे है़ .

एक अनुमान के मुताबिक किताब-कॉपी के कमीशन से राजधानी के स्कूलों को लगभग 19 करोड़ रुपये की कमाई होती है़ किसी भी स्कूल में एक प्रकाशन की किताब नहीं पढ़ाई जाती है़ ऐसे में बाजार की किसी सामान्य दुकान में सभी किताबों का मिलना संभव नहीं है. किताब उसी दुकान में मिलती है, जिस दुकान से स्कूलों की सेटिंग होती है़ कोई भी आम दुकानदार एक कक्षा के लिए 10 प्रकाशक की किताब नहीं रख सकता़.

ऐसे होता किताब का करोबार : प्रकाशक दुर्गा पूजा के बाद से स्कूल की दौड़ लगना शुरू कर देते है़ अक्तूबर से लेकर दिसंबर तक प्रकाशकों का स्कूल आना-जाना लगा रहता है़ स्कूल प्रकाशकों से किताब पर कमीशन तय करते है़ं प्रकाशक से एक किताब पर स्कूलों को लगभग 20% तक का कमीशन मिलता है़ प्रकाशक तय हाेने के बाद स्कूल दुकानदार भी तय करते है़ं स्कूल से सहमति मिलने के बाद प्रकाशक उक्त दुकानदार को किताब उपलब्ध कराता है़ दुकानदार भी स्कूलों को लगभग 10% कमीशन देता है़ ऐसे में एक किताब पर स्कूल को लगभग 30% तक का कमीशन मिलता है़ अगर एक किताब की कीमत 100 रुपये है, तो 30 रुपया स्कूल को मिलता है़.
मनमाने तरीके से तय होती है किताब की कीमत : प्रकाशक भी मनमाने तरीके से किताब की कीमत तय करते है़ं स्कूल व दुकानदार की कमीशन तय होने के बाद प्रकाशक अपना मुनाफा तय करते हैं. एेसे में बच्चों तक किताब पहुंचते-पहुंचते कीमत लागत मूल्य की तुलना में लगभग 60 से 70% तक अधिक हो जाती है़ यह राशि अभिभावकों से वसूली जाती है़ ऐसे में 100 रुपये की किताब के लिए अभिभावक को 160 से 170 रुपये तक देने पड़ते हैं.
जानिये कमाई का फंडा
राजधानी में मान्यता प्राप्त व गैर मान्यता प्राप्त लगभग 110 सीबीएसइ व आइसीएसइ स्कूल हैं. एक स्कूल में दो हजार से पांच हजार तक बच्चे पढ़ते हैं. एक स्कूल में अगर औसत दो हजार बच्चे भी पढ़ते हैं, तो राजधानी के 110 निजी स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चों की संख्या लगभग 2,20,000 लाख हो जायेगी. कक्षा नर्सरी से आठ तक के बच्चे की किताब के लिए 3000 से 3500 रुपये तक लिये जाते जा रहे हैं. एक बच्चे की औसत किताब व कॉपी की कीमत तीन हजार रुपये भी मान ली जाये, तो किताब की कीमत 66 करोड़ रुपये होगी.
निजी स्कूलों की संख्या 110
एक स्कूल में औसत बच्चों की संख्या 2000
स्कूल में कुल बच्चों की संख्या 2,20,000
एक बच्चे के औसत किताब-कॉपी की कीमत ~3000
दो लाख बच्चों के किताब-कॉपी की कीमत ~66 करोड़
66 करोड़ में 30 फीसदी कमीशन ~19 करोड़
यहां मिलती इन स्कूलों की किताब
दिल्ली पब्लिक स्कूल
एलिट बुक रोस्पा टावर
संत फ्रांसिस बनहोरा
एलिट बुक रोस्पा टावर
बिशप वेस्टकॉट ब्वॉयज स्कूल
प्रेम पुस्तकालय
संत माइकल स्कूल
नारायण पुस्तक भंडार
ऑक्सफोर्ड स्कूल
न्यू बुक सेंटर डोरंडा
टेंडर हार्ट स्कूल
न्यू बुक सेंटर
संत माइकल स्कूल
कैपिटल पुस्तक केंद्र
बिशप वेस्टकाॅट गर्ल्स स्कूल
प्रेम पुस्तकालय
सेक्रेड हार्ट स्कूल
एलिट बुक रोस्पा टावर
संत जेवियर स्कूल डोरंडा
एलिट बुक रोस्पा टावर
लोरेटो कॉन्वेंट डोरंडा
एलिट बुक रोस्पा टावर
सुरेंद्रनाथ सेंटेनरी
बुक हैरिटेज व पुस्तक मंदिर
गुरुनानक स्कूल : बुक हैरिटेज
संत थॉमस स्कूल
स्टूडेंट जेनरल स्टोर धुर्वा
लोयला स्कूल : ग्रंथ भारती
बिशप हार्टमैन स्कूल
जयश्री बुक हाउस
मनन विद्या : पुस्तक मंदिर
कैराली स्कूल : स्टूडेंट जनरल स्टोर धुर्वा
सरला बिरला पब्लिक स्कूल
रंगोली बैंक्वेट हॉल

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