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निष्ठा टूटी, सत्ता के लिए घमसान

रांची: वर्ष 2013 में झारखंड की राजनीति काफी उथल-पुथल भरी रही. राजनीतिक निष्ठा टूटी. सत्ता-शासन में गंठबंधन टूटे. सत्ता के लिए घमसान हुआ. वर्ष के अंत में आप (आम आदमी पार्टी) ने नयी कहानी लिखी, तो वर्ष की शुरुआत से ही झारखंड की राजनीति में उथल-पुथल मचा. वर्ष 2012 अलविदा कह रही थी, उसी समय […]

रांची: वर्ष 2013 में झारखंड की राजनीति काफी उथल-पुथल भरी रही. राजनीतिक निष्ठा टूटी. सत्ता-शासन में गंठबंधन टूटे. सत्ता के लिए घमसान हुआ. वर्ष के अंत में आप (आम आदमी पार्टी) ने नयी कहानी लिखी, तो वर्ष की शुरुआत से ही झारखंड की राजनीति में उथल-पुथल मचा. वर्ष 2012 अलविदा कह रही थी, उसी समय झामुमो ने भी अर्जुन मुंडा सरकार को अलविदा कह दिया.

वर्ष की शुरुआत में झारखंड की राजनीति ने नयी कहानी लिखनी शुरू कर दी थी. सात जनवरी 2013 को झामुमो ने अर्जुन मुंडा सरकार से नाता तोड़ लिया. इसी दिन झामुमो ने राज्यपाल को मुंडा सरकार से समर्थन वापसी का पत्र सौंप अपना इरादा बता दिया. झामुमो का एजेंडा साफ था. झामुमो के अंदर शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन की ताजपोशी का प्लेटफॉर्म तैयार था. पार्टी के अंदर शिबू युग का यह अंत भी था. दूसरी पीढ़ी नेतृत्व के लिए तैयार थी. झारखंड की राजनीति में यह महत्वपूर्ण घटना थी. 2013 ने राजनीतिक अस्थिरता के साथ दस्तक दी और लगभग छह महीने रही. कांग्रेस-झामुमो की दोस्ती में कभी रंग चढ़ता, तो कभी उतरता.

रांची से दिल्ली तक राजनीतिक गलियारे में नयी स्क्रिप्ट लिखी जा रही थी. पूरे 175 दिन के राष्ट्रपति शासन के बाद झारखंड में एक नये गंठबंधन ने शक्ल लिया. 13 जुलाई को हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. सत्ता का नया गंठबंधन तैयार था. इसमें कई चौंकानेवाली बातें हुईं. कांग्रेस पहली बार सरकार में शामिल हुई. राज्य गठन से लेकर अब तक कांग्रेस ने सत्ता से दूरी बनायी थी, लेकिन हेमंत सरकार में शामिल हुई. कांग्रेस के अंदर मंत्री पद को लेकर खूब किचकिच हुई. पहले चरण में राजेंद्र सिंह मंत्री बने. इसके बाद गीताश्री उरांव मंत्री बनीं. कांग्रेस कोटे से योगेंद्र साव और मन्नान मल्लिक का नाम बतौर मंत्री चौंकानेवाला था. कांग्रेस ने एक -एक कर अपने पत्ते खोले.

पिछली सरकार में निर्दलीय की जो भूमिका रही, वही वर्तमान गंठबंधन में भी दोहराया. राज्य के सभी छह निर्दलीयों ने कांग्रेस, झामुमो, राजद के गंठबंधन को समर्थन किया, लेकिन झारखंड की राजनीति ने थोड़ी राह जरूर बदली. समर्थन के बावजूद निर्दलीय सत्ता से दूर रखे गये. कांग्रेस ने अपनी शर्त पर निर्दलीयों का समर्थन हासिल किया. बंधु तिर्की को लेकर थोड़ी किचकिच जरूर हुई, लेकिन आखिरकार मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किये गये. आजसू पार्टी ने भी सत्ता के नये समीकरण में कोई गोटी नहीं चली. खुद को इस गंठबंधन से दूर रखा. यह पहली बार हो रहा था, जब आजसू का कोई विधायक सरकार में शामिल नहीं हुआ. बहरहाल, वर्तमान सरकार के पांच महीने हो गये हैं. शासन-सत्ता के कामकाज में नया कुछ नहीं है. पहले की तरह यह सरकार भी विवादों में घिरी रही है. सरकार के निर्णय का घटक दल विरोध कर रहे हैं.

टाइम लाइन

3 जनवरी : झामुमो ने अर्जुन मुंडा सरकार को पत्र लिख कर 28-28 महीने सरकार चलाने पर असहमति जताते हुए पत्र भेजा था. स्थानीयता जैसे मुद्दे पर रुख साफ करने कहा था. तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने इस पर झामुमो को जवाब भेजा.

7 जनवरी : झामुमो ने राज्यपाल को समर्थन वापसी का पत्र सौंपा.

8 जनवरी : अर्जुन मुंडा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और विधानसभा भंग करने की मांग की.

12 जनवरी : राज्यपाल डॉ सैयद अहमद ने गृह मंत्रलय को रिपोर्ट भेजी और राज्य में सरकार गठन की संभावना से इनकार किया.

18 जनवरी : झारखंड में तीसरी बार राष्ट्रपति शासन लगा.

12 जुलाई : 175 दिन के बाद राष्ट्रपति शासन खत्म हुआ.

13 जुलाई : हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

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