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देवघर न्याय सदन का निर्माण कार्य घटिया

रांची: देवघर न्याय सदन का निर्माण कार्य घटिया है. इसके निर्माण में स्पेसिफिकेशन के अनुसार सामग्रियों का इस्तेमाल नहीं हुआ है. प्रधान महालेखाकार(पीएजी) ने निर्माण कार्य के ऑडिट के बाद सरकार को भेजी गयी अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया है. लोक अदालत के कार्यों के निबटारे के लिए न्याय सदन का निर्माण किया गया […]

रांची: देवघर न्याय सदन का निर्माण कार्य घटिया है. इसके निर्माण में स्पेसिफिकेशन के अनुसार सामग्रियों का इस्तेमाल नहीं हुआ है. प्रधान महालेखाकार(पीएजी) ने निर्माण कार्य के ऑडिट के बाद सरकार को भेजी गयी अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया है. लोक अदालत के कार्यों के निबटारे के लिए न्याय सदन का निर्माण किया गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड लिगल सर्विस ऑथरिटी(झालसा) ने जनवरी 2012 में न्याय सदन बनाने का निर्देश दिया था. इसके आलोक में भवन निर्माण विभाग के अभियंता प्रमुख ने मार्च 2013 में 1.40 करोड़ की लागत पर न्याय सदन बनाने की तकनीकी स्वकृति दी. टेंडर निबटारे के बाद मेसर्स भागीरथ चौधरी को 1.29 करोड़ की लागत पर न्याय सदन का निर्माण कार्य दिया गया. जुलाई 2013 में हुए एकरारनामे के तहत ठेकेदार को 11 माह में निर्माण कार्य पूरा करना था, जो नहीं किया गया.
अॉडिट में क्या-क्या गड़बड़ियां मिलीं
ऑडिट के दौरान पाया गया कि ठेकेदार द्वारा काम पूरा किये बिना ही जून 2015 में 1.17 करोड़ रुपये का फाइनल बिल तैयार किया गया. मापी पुस्तिका, एकरारनामा और भुगतान से जुड़े दस्तावेज की जांच पड़ताल के दौरान ठेकेदार द्वारा स्पेसिफिकेशन के अनुरूप काम नहीं करने का मामला भी पकड़ में आया.

स्पेसिफिकेशन में 11 घन मीटर आरसीसी के इस्तेमाल का प्रावधान किया गया था. हालांकि ठेकेदार ने इसके मुकाबले सिर्फ 5.977 घन मीटर आरसीसी का ही इस्तेमाल किया था. इसी तरह 1.34 मिट्रिक टन टीएमटी स्टील के बदले ठेकेदार ने सिर्फ 0.71 मिट्रिक टन का ही इस्तेमाल किया था अर्थात ठेकेदार ने स्पेसिफिकेशन के मुकाबले 46 प्रतिशत कम आरसीसी और 47 प्रतिशत कम स्टील का इस्तेमाल किया.

इसलिए पीएजी ने अपनी रिपोर्ट में निर्माण कार्य को घटिया माना है. इस मामले में अपत्ति किये जाने पर स्थानीय अधिकारियों ने यह जवाब दिया कि एस्टीमेट आवश्यक्ता से अधिक है. स्थानीय अधिकारियों के इस जवाब और स्पेसिफेकेशन के अनुरूप काम नहीं होने के मामले में पीएजी से इस मामले में उच्चाधिकारियों से अपनी राय देने का कहा है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि समय पर निर्माण कार्य पूरा नहीं करने के बावजूद ठेकेदार से 10 प्रतिशत दंड की वसूली नहीं की गयी.

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