रांची : वर्ष 2014-15 में सरकार ने अपने बजट का एक तिहाई हिस्सा भी खर्च नहीं किया. पीएल (पर्सनल लेजर) एकाउंट में 3300 करोड़ जमा है. मध्याह्न भोजन लागू रहने के बावजूद स्कूलों में नामांकन कम हुए. राज्य के प्रधान महालेखाकार(पीएजी) एस रमण ने सीएजी की रिपोर्ट की चर्चा करते हुए बुधवार को संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी दी.
प्रधान महालेखाकारएस रमण ने कहा कि 10 सरकारी लोक उपक्रमों ने 4000 करोड़ के खर्च का हिसाब(एकाउंट) नहीं दिया. रिम्स के डॉक्टरों को अनधिकृत रूप से एनपीए मद में 8.21 करोड़ रुपये की भुगतान किया गया. वहीं रामकृपाल कंस्ट्रक्शन को 4.41 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ पहुंचाया गया. सेवा की गारंटी अधिनियम में समय पर काम नहीं होने के बावजूद किसी ने अपील दायर नहीं की. पर्यटकों के लिए बनाये गये फूड कोर्ट, हेल्थ क्लब का इस्तेमाल नहीं होने से इस पर किया गया खर्च बेकार साबित हुआ.
उन्होंने कहा कि सरकार ने 5000 करोड़ रुपये के सहायता-अनुदान के खर्च का उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया है. वित्तीय वर्ष के अंतिम माह मे अधिक निकासी की परंपरा अब भी जारी है. 2014-15 के मार्च महीने में नगर विकास ने 618 करोड़, पेयजल ने 428 करोड़,खाद्य आपूर्ति ने 400 करोड़ और ऊर्जा ने 782 करोड़ रुपये ट्रेजरी से निकाले.
राजस्व की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य के राजस्व में 53 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार से मिली. शेष 47 प्रतिशत राज्य अपने स्रोतों से जुटाया. वाणिज्य कर से 8000 करोड़ रुपये और माइंस से 3400 करोड़ रुपये मिले थे. पिछले पांच साल के दौरान वाणिज्यकर का व्यापारियों पर टैक्स के रूप में 3300 करोड़ बकाया हो गया था. पीएजी द्वारा इस मामले की जानकारी देने के बाद विभाग ने इसमें से 2200 करोड़ की वसूली कर ली है. टैक्स से जुड़े मामलों के ऑडिट में पाया गया कि सिर्फ 70 व्यापारियों ने 1400 करोड़ रुपये का व्यापार छिपाया. सात जिलों के जिला खनन पदाधिकारियों(डीएमओ) ने खनिजों पर उसके ग्रेड के हिसाब से टैक्स नहीं लगाया.
इससे सरकार के 338.59 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. पैनम सहित कुछ अन्य कंपनियों द्वारा उत्पादित कोयले का ग्रेड घटा कर कम रायल्टी की वसूली की गयी. परिवहन विभाग ने 5374 वाहन मलिकों से टैक्स और दंड की वसूली नहीं की.
इन मालिकों पर 26.51 करोड़ रुपये बकाया है. मार्च 2014 तक राज्य में निबंधित 34.51 लाख वाहनों में से 0.09 लाख वाहन 15 साल की अवधि पूरी कर चुके हैं. लेकिन विभाग ने इन वाहनों को सड़क से हटाने की कोई नीति नहीं बनायी है.
राज्य में योजनाओं के क्रियान्वयन और उपलब्धियों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 2010-15 के दौरान मध्याह्न भोजन के बावजूद स्कूलों में नामांकन कम हुआ है. यह 60.35 लाख से घट कर 50.80 लाख हो गया है. दूसरी तरफ निजी स्कूलों में यह 8.94 लाख से बढ़ कर 13.89 लाख हो गया है.
35435 रसोई सह भंडार गृह निर्माण के लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ 20654 का ही निर्माण पूरा हो सका है. भोजन की जांच के लिए प्रयोगशाला स्थापित नहीं की गयी है. इस कारण बच्चों के दिये जानेवाले भोजन में प्रोटीन निर्धारित मात्रा में है या नहीं का पता नहीं चल पाता. राज्य के जेलों में जैमर लगाने पर किया गया 7.55 करोड़ रुपये का खर्च बेकार साबित हुआ. टू-जी के लिए लगाया गया जैमर टू-जी नेटवर्क को भी जाम नहीं कर सका. जेल में जैमर के मामले में पीएजी ने चुटकी लेते हुए कहा कि यह समझ में नहीं आया कि जहां कैदियों द्वारा मोबाइल के इस्तमाल पर पाबंदी है, वहां जैमर की जरूरत क्यों और कैसे हुई.
स्वास्थ्य के क्षेत्र की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य में एमबीबीएस और पीजी की सीटें भी पूरी तरह नहीं भरती हैं. 2010-15 के बीच एमबीबीएस की कुल 1390 सीटों के विरुद्ध 1297 का ही नामांकन हो पाया. पीजी में 959 की जगह सिर्फ 708 सीटें ही भरी गयीं. पीएमसीएच धनबाद में 22-80 प्रतिशत चिकित्सीय उपकरणों की कमी पायी गयी. रांची नर्सिंग काॅलेज में 72 प्रतिशत उपकरणों का अभाव पाया गया.
उन्होंने कहा कि 10 लोक उपक्रमों ने अपना हिसाब (एकाउंटस) जमा नहीं किया है. इन लोक उपक्रमों में पर्यटन निगम, झालको, बिजली की नयी कंपनियां, राज्य खाद्य निगम, टीवीएनएल शामिल है. इन लोक उपक्रमों को सरकार ने अनुदान के तौर पर 3100 करोड़ और कर्ज के तौर पर 900 करोड़ रुपये प्रदान किया है. एकाउंट नहीं देने की वजह से यह पता नहीं लगाया जा सका कि इन लोक उपक्रमों ने सरकार से मिली राशि कहां और कैसे खर्च की है. पर्यटन विकास निगम के ऑडिट के दौरान पर्यटकों के लिए बनी आधारभूत संरचना के बेकार पड़े होने की जानकारी मिली. निगम ने इन भवनों के बनाने के लिए ऐसी जगहों का चुनाव किया, जहां पर्यटक नहीं जाते हैं.