काम पूरा करने के लिए 17 महीने का समय दिया गया था. ठेकेदारों ने 29 जुलाई 2009 को सड़क निर्माण का काम शुरू किया और 21 जुलाई 2012 को काम बंद कर दिया. समय सीमा समाप्त होने के बाद कंपनी ने और दो साल तक काम किया और 40 प्रतिशत काम करने के बाद काम बंद कर दिया. दस्तावेज में काम के लिए अवधि विस्तार दिये जाने का कोई साक्ष्य नहीं मिला है. इसके बावजूद ठेकेदार को अवधि विस्तार का लाभ दिया गया. काम बंद करने के पांच माह बाद तक ठेकेदार को भुगतान किया जाता रहा. तत्कालीन कार्यपालक अभियंता ने ठेकेदार द्वारा काम अधूरा छोड़े जाने के बावजूद एक करोड़ रुपये की जमानती राशि ठेकेदार को वापस कर दी.
तत्कालीन कार्यपालक अभियंता रामाशीष राय ने पांच सितंबर 2012 को चेक संख्य 120206 के सहारे 50 लाख और 21 सितंबर 2012 को चेक संख्या 120207 के सहारे 50 लाख रुपये वापस कर दिये. करीब दो साल बाद जून 2014 में पथ निर्माण विभाग के अधीक्षण अभियंता ने कार्यपालक अभियंता को एकरारनामे की शर्तों के अनुसार ठेकेदार के विरुद्ध सर्टिफकेट केस करने का निर्देश दिया. इसके बाद ठेकेदारों से 10.65 करोड़ रुपये की वसूली के लिए सिमडेगा में सर्टिफिकेट केस दायर किया.
हालांकि सर्टिफिकेट केस के लिए कोर्ट फीस नहीं जमा की. नीलाम पत्र शाखा ने पांच नवंबर 2015 को पथ निर्माण प्रमंडल को एक पत्र लिखा. इसमें कोर्ट फीस के रूप में 50 हजार रुपये जमा करने का निर्देश दिया गया. साथ ही निर्धारित समय में फीस जमा नहीं करने पर सर्टिफिकेट केस खारिज कर दिये जाने की बात कही गयी. हालांकि दिसंबर 2015 तक कोर्ट फीस नहीं जमा की गयी. इस तरह अब तक यह सड़क अधूरी पड़ी हुई है और सड़क निर्माण पर किया गया 14.94 करोड़ रुपये खर्च बेकार साबित हुआ है.