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3,442 करोड़ खर्च, फिर भी 56 % बच्चे कुपोषित

रांची: समाज कल्याण विभाग बच्चों, किशोरियों तथा गर्भवती व धात्री महिलाअों को पोषाहार उपलब्ध कराता है. आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिये संचालित यह योजना पूरक पोषाहार कार्यक्रम (सप्लिमेंट्री न्यूट्रिशन प्रोग्राम या एसएनपी) कहलाती है. केंद्र प्रायोजित उक्त योजना पर राज्य गठन के बाद से अब तक 3,442 करोड़ रुपये(चालू वित्तीय वर्ष के भी पूरे बजट को […]

रांची: समाज कल्याण विभाग बच्चों, किशोरियों तथा गर्भवती व धात्री महिलाअों को पोषाहार उपलब्ध कराता है. आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिये संचालित यह योजना पूरक पोषाहार कार्यक्रम (सप्लिमेंट्री न्यूट्रिशन प्रोग्राम या एसएनपी) कहलाती है. केंद्र प्रायोजित उक्त योजना पर राज्य गठन के बाद से अब तक 3,442 करोड़ रुपये(चालू वित्तीय वर्ष के भी पूरे बजट को मिला कर) खर्च किये जा चुके हैं. पर कैलोरी व प्रोटीन पर हुए इस खर्च के बावजूद ग्रासरूट पर कुपोषण बरकरार है.

इससे आंगनबाड़ी केंद्रों, उनकी कार्य प्रणाली, सेविका व सहायिका की कार्यशैली सहित महिला पर्यवेक्षिका (लेडी सुपरवाइजर), सीडीपीअो, जिला समाज कल्याण पदाधिकारी व विभाग के मोनिटरिंग सिस्टम (अनुश्रवण तंत्र) पर सवाल खड़े होते रहे हैं.

इन अांकड़ों पर ध्यान दें : नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-तीन की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में कुपोषित बच्चों की संख्या लगभग 56.5 फीसदी (23 लाख) है. इनमें से पांच लाख (12 फीसदी) बच्चे अति कुपोषित हैं. कुपोषित बच्चों के मामले में झारखंड का स्थान देश भर में दूसरा है. राज्य में 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की संख्या 65 लाख (जनगणना-2011) है. इनमें से 67 फीसदी कुपोषित (एनिमियाग्रस्त) हैं. यह आंकड़ा देश भर में सर्वाधिक है. कुपोषित किशोरी या बालिका के विवाह से दूसरी समस्या का जन्म होता है. झारखंड में हर वर्ष करीब आठ लाख बच्चे जन्म लेते हैं. इनमें से अाधे कुपोषित होते हैं. झारखंड के सभी जिलों में गर्भवती के कुपोषित व एनिमिक रहने से कम वजन के बच्चे का जन्म होता है. गुमला व सिमडेगा में 55 फीसदी नवजात कम वजन के होते हैं. यही वजह है कि पांच साल तक में जिन बच्चों की मौत होती है, उनमें से 45 फीसदी मौत का कारण कुपोषण है. झारखंड में हर वर्ष 46 हजार बच्चों की मौत हो जाती है.
आंगनबाड़ी ने सही रोल नहीं निभाया : राज्य के 38,432 आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों, महिलाओं व किशोरियों को पोषाहार उपलब्ध कराया जाता है, पर इन केंद्रों को पोषाहार के लिए मिलनेवाली धन राशि की बंदरबांट होती रही है. प्रधान महालेखाकार की तीन जिलों की ऑडिट रिपोर्ट में इसका खुलासा हो चुका है. गढ़वा, दुमका व धनबाद जिले में की गयी यह जांच (वर्ष 2006 से 2011 के बीच) आंगनबाड़ी केंद्रों में विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन व विभागीय लोगों की कार्यशैली पर आधारित थी. गढ़वा के केंद्रों पर साल में 300 दिन के बदले वर्ष में सिर्फ 21 से 251 दिन तथा धनबाद के आंगनबाड़ी केंद्रों में दो से 42 दिन पोषाहार दिया गया था. अब सरकार केंद्रों पर रेडी-टू-इट पोषाहार उपलब्ध करा रही है.
अब हर रोज मॉनिटरिंग : अांगनबाड़ी केंद्रो के सही संचालन तथा वहां मिल रही सुविधाअों पर नजर रखने का काम विभाग की महिला पर्यवेक्षिका (सुपरवाइजर) का है. सीडीपीअो व जिला समाज कल्याण पदाधिकारी भी इसकी निगरानी करते हैं. इसके बाद मुख्यालय स्तर पर समाज कल्याण निदेशालय में एक स्टेट मोनिटरिंग सेल भी है, जिसका स्थापना सालाना खर्च करीब 30 लाख रुपये है. अब विभाग आंगनबाड़ी केंद्रो पर उपलब्ध सुविधाअों तथा वहां लाभुकों की संख्या पर नजर रखने के लिए दैनिक अनुश्रवण प्रणाली शुरू करने जा रहा है. इसके तहत सेविका व सहायिकाअों से एसएमएस के जरिये सूचनाएं देने को कहा जायेगा. वहीं महिला पर्यवेक्षिका व सीडीपीअो को मॉनिटरिंग के लिए टैब दिया गया है. इससे पहले राज्य पोषण मिशन की शुरुआत भी हुई है. मिशन के लिए पोषण सखी की नियुक्ति हो रही है.
पोषाहार पर खर्च
वित्तीय वर्ष खर्च (करोड़ में)
2001-02 0.87
2002-03 2.18
2003-04 14.79
2004-05 59.67
2005-06 140.85
2006-07 168.56
2007-08 169.65
2008-09 188.97
2009-10 320.00
2010-11 385.00
2011-12 357.00
2012-13 197.00
2013-14 225.00
2014-15 472.00
2015-16 741.00
कुल 3442.54
विडंबना
पांच वर्ष तक के कुल 42 लाख बच्चे
इनमें से 22 लाख बच्चे कुपोषित
18 वर्ष से कम की 65 लाख लड़कियां
इनमें से 67 फीसदी कुपोषित
हर वर्ष आठ लाख बच्चे का जन्म
इनमें से चार लाख होते हैं कुपोषित

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