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कानूनी दावं-पेच में लटकी तीन आरोपी अभियंताओं पर कार्रवाई
रांची : कानूनी दावं पेच की वजह से सरकार एक करोड़ के घोटाले में फंसे तीन इंजीनियरों पर प्राथमिकी दर्ज नहीं करा पा रही है़ इन पर विभागीय कार्यवाही भी नहीं कर पा रही है़ इनमें कार्यपालक अभियंता संजय कुमार, कनीय अभियंता उमेश कुमार और विनोद कुमार सिंह शामिल हैं.पेयजल विभागके इन इंजीनियरों पर शौचालय […]
रांची : कानूनी दावं पेच की वजह से सरकार एक करोड़ के घोटाले में फंसे तीन इंजीनियरों पर प्राथमिकी दर्ज नहीं करा पा रही है़ इन पर विभागीय कार्यवाही भी नहीं कर पा रही है़ इनमें कार्यपालक अभियंता संजय कुमार, कनीय अभियंता उमेश कुमार और विनोद कुमार सिंह शामिल हैं.पेयजल विभागके इन इंजीनियरों पर शौचालय निर्माण में गड़बड़ी का आरोप है़.
हाइकोर्ट ने इन तीनों के खिलाफ 2014 में पीड़क कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया है़ महाधिवक्ता ने इस निर्देश की व्याख्या करते हुए इन इंजीनियरों पर प्राथमिकी और विभागीय कार्यवाही नहीं करने का सुझाव दिया है़.
फरजी बिल से गबन करने का आरोप : पेयजल विभाग के तत्कालीन कार्यपालक अभियंता संजय कुमार, कनीय अभियंता उमेश कुमार और विनोद कुमार सिंह के खिलाफ लोकायुक्त की अदालत में 2012 में अख्तर हुसैन खान नामक व्यक्ति ने शिकायत (परिवाद संख्या 01/12) की थी. तीनों पर बिना काम किये ही फरजी बिल बना कर सरकारी पैसों के गबन का आरोप लगाया गया था़ . लोकायुक्त ने सरकार को शिकायतों की जांच कर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया. सरकार ने रांची के तत्कालीन उपायुक्त से मामले की जांच करायी़.
4798 की जगह चार-पांच शौचालय ही बने : जांच में पाया गया कि संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत 2008-09 में 1129, 2009-10 में 2002 और 2010-11 में 1667 शौचालय बनाने का आदेश दिया गया था़ इनका निर्माण चान्हो प्रखंड की चोरेया, तरंगा, रोल, ताला, लुंड्री और बलसोकरा पंचायतों में कराया जाना था. जांच में कुल 4798 में से चार-पांच शौचालय ही पूर्ण पाये गये़
जबकि इस मद में करीब एक करोड़ रुपये की निकासी कर ली गयी थी़
लोकायुक्त के फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट गये इंजीनियर : मामले की सुनवाई के बाद लोकायुक्त ने 21 अक्तूबर 2013 को आरोपी इंजीनियरों पर प्राथमिकी दर्ज करने सहित कानून सम्मत अन्य कार्रवाई करने का आदेश दिया. लोकायुक्त कार्यालय ने 13 नवंबर 2013 को सरकार को पत्र लिख कर इंजीनियरों पर की गयी कार्रवाई की जानकारी 21 जनवरी 2014 तक देने का निर्देश दिया़ लोकायुक्त के इस फैसले के खिलाफ तीनों इंजीनियरों ने हाइकोर्ट में अलग-अलग रिट दायर की़ तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनएन तिवारी की अदालत में मामले की सुनवाई हुई.
कोर्ट के आदेश की व्याख्या की सरकारी वकील ने : अदालत में सुनवाई के दौरान सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा. अदालत ने इसे स्वीकार करते हुए 24 मार्च 2014 को इंजीनियरों पर पीड़क कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया. अदालत के निर्देश पर सरकार ने महाधिवक्ता से राय मांगी़ महाधिवक्ता कार्यालय ने कोर्ट के आदेश की व्याख्या की जिम्मेवारी केएम वर्मा (सरकारी वकील-1) को दी. उन्होंने लिखा कि परिस्थितियों के मद्देनजर निश्चत रूप से प्राथमिकी और विभागीय कार्यवाही करना पीड़क कार्रवाई के दायरे में आता है. अगर विभागीय कार्यवाही की जाती है, तो याचिकादाता (इंजीनियरों) को इसमें शामिल होने का लिए बाध्य किया जायेगा, जो पीड़क कार्रवाई है. अगर प्राथमिकी दर्ज की जाती है, तो पुलिस इंजीनियरों को गिरफ्तार करेगी, जो पीड़क कार्रवाई है.
विभाग कर रहा जल्द सुनवाई की कोशिश
अधिवक्ता केएम वर्मा ने 15 सितंबर 2015 को अपनी राय महाधिवक्ता के पास भेज दी. महाधिवक्ता ने उसी दिन इस पर सहमति देते हुए हस्ताक्षर किया. इसके बाद इसे विधि विभाग के माध्यम से पेयजल एंव स्वच्छता विभाग को भेज दिया गया़ महाधिवक्ता की इस राय के बाद शौचालय निर्माण घोटाले में फंसे इन इनजीनियरों पर ना तो प्राथमिकी दर्ज हो सकी है ना ही इन पर विभागीय कार्यवाही शुरू हुई है. विभाग हाइकोर्ट में इस मामले में जल्दी सुनवाई की कोशिश कर रहा है, पर अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है.
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