एक बेटा है, वह भी मेदिनीनगर नगर पर्षद में दैनिक वेतनभोगी के रूप में काम करता है. नगर पर्षद की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण कर्मियों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा है. दास बाबू का परिवार इसी के वेतन पर टिका था. तीन महीने से जब मानदेय नहीं मिला, तो वे ठीक तरीके से अपना इलाज भी नहीं करा पाये. कारण बेटा भी नगर पर्षद में ही कर्मी के रूप में काम करता था. उसे भी मानदेय नहीं मिल रहा था. जानकार बताते हैं कि हाल के दिनों में दास बाबू काफी परेशान थे. कई लोगों से जिक्र भी कर रहे थे कि पैसे के अभाव में ठीक से इलाज भी नहीं हो पा रहा है. अंतत: गुरुवार की सुबह करीब छह बजे उनका निधन हो गया.
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न पेंशन मिली, न मानदेय, चल बसे दास बाबू
रांची: दास बाबू नहीं रहे. मेदिनीनगर नगर पर्षद में जाने वाले लोग उन्हें दास बाबू के नाम से ही जानते थे. कार्य में काफी दक्ष, हमेशा सक्रिय रहने वाले, लेकिन जीवन का अंतिम समय उनका आर्थिक बदहाली के बीच कटा. पैसे के अभाव में ठीक ढंग से इलाज भी नहीं हुआ और यही दास बाबू […]
रांची: दास बाबू नहीं रहे. मेदिनीनगर नगर पर्षद में जाने वाले लोग उन्हें दास बाबू के नाम से ही जानते थे. कार्य में काफी दक्ष, हमेशा सक्रिय रहने वाले, लेकिन जीवन का अंतिम समय उनका आर्थिक बदहाली के बीच कटा. पैसे के अभाव में ठीक ढंग से इलाज भी नहीं हुआ और यही दास बाबू के मौत का कारण बना. दास बाबू का पूरा नाम अमरशंकर दासगुप्ता था. वे नगर पर्षद में सहायक के पद पर कार्यरत थे. 2003 में वे सेवानिवृत्त हुए थे. सेवानिवृत्त होने के बाद उनकी कार्य दक्षता व अनुभव को देखते हुए मेदिनीनगर नगर पर्षद बोर्ड ने अनुबंध पर रखा था. जानकारी के अनुसार एक दो माह से वे बीमार चल रहे थे. तीन माह से उन्हें न तो पेंशन मिली था और न ही नगर पर्षद से मिलने वाला मानदेय. यहां किराये की मकान में रहते थे.
एक बेटा है, वह भी मेदिनीनगर नगर पर्षद में दैनिक वेतनभोगी के रूप में काम करता है. नगर पर्षद की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण कर्मियों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा है. दास बाबू का परिवार इसी के वेतन पर टिका था. तीन महीने से जब मानदेय नहीं मिला, तो वे ठीक तरीके से अपना इलाज भी नहीं करा पाये. कारण बेटा भी नगर पर्षद में ही कर्मी के रूप में काम करता था. उसे भी मानदेय नहीं मिल रहा था. जानकार बताते हैं कि हाल के दिनों में दास बाबू काफी परेशान थे. कई लोगों से जिक्र भी कर रहे थे कि पैसे के अभाव में ठीक से इलाज भी नहीं हो पा रहा है. अंतत: गुरुवार की सुबह करीब छह बजे उनका निधन हो गया.
गौरतलब है कि मेदिनीनगर नगर पर्षद में लगभग 170 कर्मी हैं, जिन्हें नियमित वेतन नहीं मिल पा रहा है. कहा जाता है कि मेदिनीनगर का कोष खाली हो गया है. क्योंकि राजस्व उगाही के मामले में मेदिनीनगर नगर पर्षद पीछे है. प्रतिमाह कर्मियों के मानदेय व वेतनमद में करीब 18 लाख रुपये खर्च होते हैं, लेकिन वसूली सात से आठ लाख ही हो रहा है. हर माह 10 लाख की कमी हो रही है. सरकार के स्तर से वेतनमद के लिए जो अंशदान प्राप्त होता है, उससे किसी तरह काम चलाया जा रहा है. हालात ऐसे रहे, तो खासकर नगर पर्षद के सफाईकर्मी के लिए जीवन का गाड़ी चलाना मुश्किल हो जायेगा.
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