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इस बार बलमदीना एक्का लेकर आयी पवित्र मिट्टी

परमवीर चक्र विजेता शहीद अलबर्ट एक्का रांची : 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का की पवित्र माटी इस बार उनकी विधवा बलमदीना एक्का लेकर रांची आयी. शनिवार काे रांची में सेना के जवानों और नागरिकों ने उनका स्वागत किया. झारखंड सरकार ने बलमदीना एक्का, उनके परिवार के कुछ सदस्य […]

परमवीर चक्र विजेता शहीद अलबर्ट एक्का
रांची : 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का की पवित्र माटी इस बार उनकी विधवा बलमदीना एक्का लेकर रांची आयी. शनिवार काे रांची में सेना के जवानों और नागरिकों ने उनका स्वागत किया. झारखंड सरकार ने बलमदीना एक्का, उनके परिवार के कुछ सदस्य और रतन तिर्की को अगरतला भेजा था. उनके साथ नोडल ऑफिसर थे जॉर्ज कुमार. अगरतला में इस टीम का स्वागत-सम्मान हुआ. सेना उन्हें उस स्थान पर ले गयी थी, जहां अलबर्ट एक्का की समाधि बनी हुई है.
लगभग डेढ़ माह पहले बलमदीना एक्का ने इच्छा व्यक्त की थी कि उनके पति अलबर्ट एक्का की अस्थि को झारखंड लाया जाये. इस खबर को सबसे पहले प्रभात खबर ने प्रमुखता से छापा था.
इसके बाद पूर्व सैनिक संघ ने भारतीय सेना से संपर्क किया था. उसके बाद सेना-बीएसएफ की पहल पर पवित्र मिट्टी रांची लायी गयी थी. इस घटना के पहले यह जानकारी झारखंड में नहीं थी कि अलबर्ट एक्का की समाधि कहां है. मिट्टी को वाहन से तीन दिसंबर को उनके पैतृक गांव ले जाया गया था. वहां खुद मुख्यमंत्री भी गये थे. लेकिन इस दौरान यह विवाद पैदा कर दिया गया था कि कैसे मान लिया जाये कि यह मिट्टी समाधि की ही है. टीएसी के सदस्य रतन तिर्की ने संवाददाता सम्मेलन कर यह कहा था कि मिट्टी की जांच कर यह पता लगाया जाये कि यह मिट्टी अलबर्ट एक्का की है या नहीं.
विवाद के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने एक टीम को सरकारी खर्च पर अगरतला भेजने की व्यवस्था की. यह टीम वहां गयी. बलमदीना एक्का उस समाधि स्थल पर भी गयी, जिसे सेना ने बनवाया है. वहां उनका स्वागत किया गया.
टीम के सदस्यों को वहां एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा कि 100 मीटर दूर एक घर है, वहां अलबर्ट एक्का को दफनाया गया था. दल ने उसे मान लिया. इसका कोई प्रामाणिक दस्तावेज नहीं मिला. अंतत: उस घर (जो समाधि से कुछ कदम की दूरी पर है) के आंगन से थोड़ी सी मिट्टी निकाली गयी और उसे लेकर बलमदीना एक्का रांची आ गयी. उसी मिट्टी को शनिवार काे जारी गांव ले जाया गया. सवाल आस्था और संतुष्टि का है.
इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार ने जो टीम भेजी, उसका त्रिपुरा में जोरदार स्वागत किया गया, सेना ने सम्मान दिया, मुख्यमंत्री-राज्यपाल ने सम्मान दिया, बलमदीना एक्का और उनका परिवार समाधि का दर्शन कर सका. पर अंतत: यही बात निकली कि यह मिट्टी भी उसी समाधि के पास (एक घर) से ली गयी, जिस समाधि से डेढ़ माह पहले ली गयी थी.
हां, एक फर्क यह रहा कि उस समय अलबर्ट एक्का का परिवार और खुद रतन तिर्की उस समय वहां मौजूद नहीं थे, इस बार ये सभी वहां थे. उस समय भी समाधि की खुदाई संभव नहीं थी और इस बार भी जहां से मिट्टी लायी गयी है, वहां सतह से ली गयी है, खुदाई नहीं की गयी. यह न तो तब संभव था और न अब है. उपलब्धि यही है कि बलमदीना एक्का दर्शन कर सकी, वे संतुष्ट हुई, उनकी इच्छा की पूर्ति हुई.
अनुत्तरित सवाल
रतन तिर्की ने 30 नवंबर को संवाददाता सम्मेलन कर मिट्टी पर सवाल उठाते हुए मिट्टी की जांच की मांग की थी, तो क्या इस बार मिट्टी की जांच कर उसे लाया गया है. क्या यह संभव है कि जमीन से छह-आठ फीट खुदाई कर मिट्टी ली जाये.
अंतत:
प्रभात खबर का मानना है कि ऐसे सवालों का कोई अंत नहीं है. यह पवित्र मिट्टी है. जिसमें अलबर्ट एक्का के परिवार की आस्था हो, जो वे चाहते हैं, वही होना चाहिए, राजनीति नहीं. बेहतर है सब मिट्टी मिला कर उनके गांव में समाधि बने, ताकि परमवीर अलबर्ट एक्का के प्रति श्रद्धा और बढ़े.
प्रोटोकॉल अफसर जॉर्ज कुमार ने कहा
कब्र नहीं मिला, मकान के आंगन से लायी गयी मिट्टी
बलमदीना एक्का के साथ आपकी यात्रा कैसी रही?
टीएसी सदस्य रतन तिर्की के नेतृत्व में बलमदीना एक्का को त्रिपुरा ले जाने के लिए टीम बनी थी. उसमें राज्य सरकार की ओर से मुझे दायित्व दिया गया था. कुल 12 लोगों की टीम थी. सरकार की तरफ से अाठ लोग थे. दो लोग बलमदीना एक्का की बहू और भतीजी अपने खर्च पर गयी थी. दो लाेग सेना की तरफ से थे. हमलोग कोलकाता होते हुए त्रिपुरा गये. सरकार ने जो दायित्व मुझे दिया था, मैंने उसका निर्वहन किया.
कहां -कहां गये?
बलमदीना एक्का की जहां-जहां जाने की इच्छा हुई, उन्हें वहां-वहां ले गये. उनकी इच्छा और अरमान पूरा करने का दायित्व हमारी टीम पर था. सबसे पहले कोलकाता गये. फिर अगरतला गये. वहां असम राइफल्स ने एयरपोर्ट में ही बलमदीना का स्वागत किया. लालबत्ती गाड़ी में स्टेट गेस्ट हाउस तक ले जाया गया. वहीं सारे लोगों को ठहराया गया था.
मिट्टी कहां से लाये?
अगले दिन हमलोग शहीद स्मारक गये. वहां सौ मीटर की दूरी पर ही स्थित वह जगह है, जहां अलबर्ट एक्का को दफनाया गया था. हालांकि वहां पर तो अब पक्का मकान बन गया है.
क्या कहा अापने, पक्का मकान बन गया है?
हां, पहले तो कोई जगह होता नहीं था. युद्ध के समय सामूहिक रूप से प्राइवेट जमीन पर ही दफना दिया गया था, जहां अब पक्का मकान बन चुका है. वहां गांव का एक व्यक्ति सामने आया. बताया कि उन्होंने ही सैनिकाें को इस जमीन पर दफनाया था. फिर हमलोग वहां गये. मकान मालिक ने स्वागत किया. उनके आंगन में बलमदीना एक्का गयी. आंगन की मिट्टी लेकर बलमदीना के आंचल में दी गयी.
क्या कब्र मिल पाया?
नहीं, कब्र तो नहीं मिल पाया. वहां कब्र था भी नहीं. पर कहा गया कि यहीं दफनाया गया था.
क्या कोई प्रामाणिक दस्तावेज मिला था कि इसी स्थान पर अलबर्ट एक्का को दफनाया गया था?
नहीं, कोई दस्तावेज तो नहीं मिला. पर जिसने दफनाया था, वह व्यक्ति जिंदा है आैर उसने ही स्थल दिखाया. उस स्थल पर अब पक्का मकान बन चुका है, इसलिए घर के आंगन की मिट्टी लायी गयी. बलमदीना और उनके परिवार की जो इच्छा थी, वह पूरी हुई. वो संतुष्ट हो गये, यही काफी है.
फिर शहीद स्मारक क्या है?
उसी जगह से थोड़ी दूरी पर शहीद स्मारक है, जहां परमवीर अलबर्ट एक्का का नाम भी खुदा हुआ है. यहां एक साथ कई सैनिकों को दफनाया गया था.
टीम लीडर रतन तिर्की ने कहा
पहले और अब आयी दोनों मिट्टी पूजनीय
आपको बधाई, आप बलमदीना जी को त्रिपुरा तक ले गये?
सबको बधाई मिलनी चाहिए. रक्षा मंत्री, थल सेनाध्यक्ष, अखबार व विशेषकर सेना के जवानों को मैं धन्यवाद देना चाहता हूं. हमलोगों ने जारी तक मिट्टी पहुंचा दी.
शहीद स्मारक आपलोग गये थे, यह क्या है?
शहीद स्मारक अलबर्ट एक्का व अन्य शहीदों की याद में बनाया गया है. इसी से सौ मीटर की दूरी पर गोपाल चंद्र दास का मकान है, जहां अलबर्ट एक्का और अन्य शहीदों को दफनाया गया था.
शहीद अलबर्ट एक्का का कब्र मिला कि नहीं?
मिट्टी गोपाल चंद्र दास के घर के आंगन की है. वहां कोई कब्र तो नहीं है, क्योंकि वह निजी जमीन थी और उस पर पक्का मकान बन गया है. पर ढुलकी गांव के लोगों ने कहा कि अलबर्ट एक्का काे इसी स्थान पर दफनाया गया था. यही वजह है कि हमलोग वहां बलमदीना को ले गये. आंगन में ही उन्होंने कैंडल जलाकर श्रद्धांजलि दी.
कब्र का कोई प्रामाणिक दस्तावेज मिला कि नहीं , जिससे पता चले कि वहीं दफनाया गया था?
कोई दस्तावेज की बात ही नहीं है. ढुलकी गांव के सारे लोगों ने कहा, इसी जमीन पर दफनाया गया था. अलबर्ट एक्का व अन्य शहीदों को दफनानेवाले भुवन दास जिंदा हैं. उन्होंने अपने हाथों से शहीदों को दफनाया था. वहां अब मकान बन गया है. असम राइफल्स के लोगों ने भी शहीद स्थल पर सलामीदेने के बाद कहा कि जहां कब्र था, वहां की जमीन बिक गयी है. उस जमीन पर पक्का मकान बन गया है.
मिट्टी लेने के लिए किसने खुदाई की?
गोपाल चंद्र दास ने अपने हाथों में कुदाल लेकर आंगन की मिट्टी की खुदाई की. फिर विन्सेंट एक्का ने उसी मिट्टी को लेकर बलमदीना की आंचल में भर दिया.
पहले भी मिट्टी आयी थी, आपलोगों ने भी मिट्टी लायी है. दोनों मिट्टी का क्या होगा?
पहले जो मिट्टी आयी थी, उसकी विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठा रहा हूं. हमारा कहना है कि मिट्टी लाने का तरीका गलत था.
पूरे सम्मान के साथ मिट्टी लाना चाहिए था. फिर भी इसे विवाद में नहीं लाना चाहता. दोनों ही मिट्टी सम्माननीय है. परमवीर के नाम की मिट्टी है, वह पूजनीय है. इसे विवाद में लाना शहीद का अपमान होगा. हमारा मुख्य उद्देश्य था कि बलमदीना की इच्छा के अनुरूप उन्हें सैन्य सम्मान मिले, जो बलमदीना को त्रिपुरा से लेकर रांची तक मिला. हम कोई विवाद में नहीं पड़ना चाहते. सबने सहयोग किया. सबका आभार है.
कितने लोग थे, कहां-कहां गये?
टीम में बलमदीना एक्का, विन्सेंट एक्का, उनकी पत्नी रजनी एक्का, जॉय बाखला, नेकी सीआइ लकड़ा, अल्फ्रेड कुजूर, जोसिफा तिर्की, स्टेट प्रोटोकॉल अफसर जॉर्ज कुमार डाडेल, बिहार रेजिमेंट के डीपी सिंह व रेमाई तिग्गा थे. हमलोग नौ जनवरी को त्रिपुरा पहुंचे. रेड कॉरपेट स्वागत हुआ. स्टेट गेस्ट हाउस में हमें ठहराया गया. अगले दिन हमें शहीद स्थल ले जाया गया.
वहां गार्ड अॉफ अॉनर दिया गया. वहां से सौ मीटर की दूरी पर गोपाल चंद्र दास का घर है. उन्हीं के घर के आंगन से मिट्टी ली गयी. दास ने कहा कि अपने घर के आंगन में वह शहीद का स्मारक बना देंगे. फिर मुख्यमंत्री माणिक सरकार से मिले. उन्होंने हम सबको 51-51 हजार रुपये का तैलीय चित्र भेंट किया. सबको महंगे शॉल से सम्मानित किया. हमें तीन-चार गाड़ियां भी मिली थी.
फिर अगले दिन अखौरा बॉर्डर गये, जहां बिटिंग रिट्रीट से हमारा स्वागत किया गया. गंगासागर बॉर्डर भी गये, जहां अलबर्ट एक्का शहीद हुए थे. फिर उदयपुर गये, जहां 14 गार्ड्स के लोग काली मंदिर में पूजा कर युद्ध करने गये थे. बलमदीना ने वहां पूजा भी की. नूर महल भी गये. फिर असम राइफल्स अपने कैंप में ले गयी. वहां बलमदीना को 21 हजार रुपये देकर सम्मानित किया गया. फिर राज्यपाल से मिले.

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