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झारखंड सरकार ने केंद्र सरकार को लिखा पत्र, लाख का न्यूनतम समर्थन मूल्य कम करने की मांग

नयी दिल्ली: देश में कृषि संकट को देखते हुए जहां राज्य सरकार फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव डाल रही है, वहीं झारखंड सरकार ने कुछ वन उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में कमी करने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा है. झारखंड के आदिवासी कल्याण विभाग ने […]

नयी दिल्ली: देश में कृषि संकट को देखते हुए जहां राज्य सरकार फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव डाल रही है, वहीं झारखंड सरकार ने कुछ वन उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में कमी करने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा है.

झारखंड के आदिवासी कल्याण विभाग ने केंद्र सरकार से लाख के दो उत्पादों रागिनी और कुसीमी का न्यूनतम समर्थन मूल्य कम करने की मांग की है. ये दोनों उत्पाद वन उत्पाद में शामिल हैं अौर इनका बड़े पैमाने पर झारखंड में उत्पादन किया जाता है. इस बारे में झारखंड के जनजाति कल्याण विभाग के सचिव राजीव अरुण एक्का ने प्रभात खबर से बातचीत में कहा कि राज्य सरकार ने कुछ वन उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य बाजार दर से तय करने की मांग की है, क्योंकि कुछ उत्पादों का समर्थन मूल्य हमेशा बाजार दर से अधिक रहा है.

उन्होंने कहा कि इससे आदिवासियों को फायदा नहीं मिल पा रहा है. केंद्र सरकार ने अभी तक इसका कोई जवाब नहीं दिया है. मौजूदा समय में कुसुमी लाख का न्यूनतम समर्थन मूल्य बाजार भाव से तीन गुणा अधिक है. राज्य सरकार ने बड़े पैमाने पर इसकी खरीदारी की है, लेकिन बाजार दर कम होने से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. झारखंड के अलावा छत्तीसगढ़ ने भी ऐसी ही मांग की है. न्यनूतम समर्थन मूल्य का निर्धारण करने वाली प्राइस फिक्सेशन कमेटी ने भी झारखंड की इस मांग को जायज माना है.

कमेटी ने विस्तार से इस मसले पर चर्चा की और माना कि न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार दर में अंतर को कम करने के लिए एमएसपी कम किया जाना जरूरी है. लेकिन सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय जनजाति मामले के मंत्री जुएल उरांव इस मांग से सहमत नहीं हैं. गौरतलब है कि केंद्र सरकार 12 वन उत्पादों जैसे तेंदू, बांस, महुआ, चिरौंजी, साल के पत्ते, साल के बीज, हरद, लाख, इमली, करंजी और गाेंद का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करती है.

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